कुरुक्षेत्र। कृषि एवं किसान कल्याण विभाग हरियाणा की तरफ से कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के ऑडिटोरियम में आयोजित कृषि कार्यशाला में 14 फीट लंबे गन्ने आकर्षण का केंद्र रहे। खास बात यह है कि गुरुकुल कुरुक्षेत्र की ओर से इस गन्ने की किस्म का जीरो बजट खेती से उत्पादन किया जा रहा है। इस गन्ने की किस्म का प्राकृतिक तरीके से उत्पादन किया जा रहा है। गुरुकुल इसके उत्पादन में किसी तरह के जैविक और रासायनिक पदार्थों का इस्तेमाल नहीं करता है।
गुरुकुल कुरुक्षेत्र के प्राचार्य शमशेर सिंह ने बताया कि यह गन्ने की किस्म सी 0585 किस्म है। इसके अलावा गुरुकुल की ओर से गन्ने की एक अन्य किस्म सी 0239 का भी उत्पादन किया जा रहा है। इस गन्ने की किस्म भी 12 फीट तक बढ़ती है। गन्ने की इन दोनों किस्म के साथ गुरुकुल दूसरी फसल भी साथ-साथ प्राप्त कर रहा है। प्राकृतिक तरीके से गुरुकुल प्रति एकड़ सी 0585 किस्म के गन्ने की साढ़े चार सौ से 500 क्विंटल फसल प्राप्त कर रहा है। इसी तरीके से गन्ने की चार से पांच साल तक पैदावार मिलती है, जबकि अन्य किसान दो साल तक ही गन्ना प्राप्त करते थे। बताया कि आमतौर किसान गन्ने के उत्पादन के लिए खेत में 32 से 33 क्विंटल बीज का इस्तेमाल करते हैं। वहीं उन लोगों का इससे आधा बीज ही लगता है। किसान दो से सवा फीट पर बीज की बिजाई करते हैं, जबकि वे हर चार फीट पर बीज डालते हैं। अन्य किसान जहां फसल पर कीटनाशक व रसायनों का खूब इस्तेमाल करते हैं वहीं वे किसी भी तरह के रसायन और कीटनाशक का छिड़काव नहीं करते। इस कारण उनकी फसल से 95 फीसदी बीमारियां दूर रहती है।
गन्ने के साथ लेते है मूंग की फसल
शमशेर सिंह ने बताया कि चार फीट पर बीज डालने के कारण वे गन्ने के साथ मूंग की फसल भी प्राप्त करते हैं। गन्ने को बढ़ाने के लिए नाइट्रोजन की जरूरत होती है। मूंग से गन्ने को नाइट्रोजन की प्राप्ति होती है। इस तरह वे गन्ना की जीरो बजट से खेती करते हैं।
20 साल से दे रहे जीरो बजट प्राकृतिक खेती का प्रशिक्षण
प्राचार्य ने बताया कि गुरुकुल पिछले 20 साल से किसानों को जीरो बजट प्राकृतिक खेती का प्रशिक्षण दे रहा है। इस प्रशिक्षण शाला के लिए गांव कैंथला में गुरुकुल कुरुक्षेत्र की तरफ से 180 एकड़ भूमि पर गन्ना, सब्जियां व फलों की खेती की जा रही है।