
मंसूरपुर। पुनर्जन्म की एक कहानी क्षेत्र में चर्चा का विषय बनी हुई है। भारतीय दर्शन में पुनर्जन्म की अवधारणा है, लेकिन आमतौर पर किसी को पिछल जन्म की याद नहीं रहती है। सिर्फ किस्से कहानियों पर इसका जिक्र रहता है। लेकिन बेलड़ा और जौहरा गांव में ऐसा ही एक मामला सामने आया है। सबने देखा और यकीन किया। चौंकाने वाली बात यह है कि पुनर्जन्म वाले कुलदीप का फिर 41 साल की उम्र में ही निधन हो गया। दोनों परिवार गमजदा हैं।
मामला शुरू हुआ वर्ष 1982 में। भोपा थाना क्षेत्र के बेलड़ा गांव में किसान रामपाल सिंह (41) का निधन हो गया। पांच साल का वक्त गुजरा। बेलड़ा निवासी व्यक्ति वर्ष 1987 में किसी काम से मंसूरपुर क्षेत्र के जौहरा गांव में पहुंचा। मैदान पर खेल रहे पांच साल के कुलदीप ने उसे नाम से पुकारा तो सब हैरान रह गए। यहीं से पुनर्जन्म की कहानी ने नया मोड़ लिया। जौहरा में सब हैरान थे। कुलदीप ने कहा कि उसका पहला जन्म बेलड़ा में हुआ था। पहले किसी ने यकीन नहीं किया, लेकिन कुलदीप रोज जिद करने लगा तो सैकड़ों लोग उसे लेकर बेलड़ा पहुंचे तो सब हकीकत साबित हुआ।
उस दिन से कुलदीप दोनों घरों का चिराग बन गया। पिछले 36 साल से दोनों परिवार में उसे बराबर का सम्मान मिला। दोनों परिवार एक-दूसरे के सुख-दुख का हिस्सा बन गए। कुलदीप ने बताया था कि इस बार भी उसका निधन (41) साल की उम्र ही होगा। सच भी यही हुआ। बीमारी के चलते परिजनों ने उसे मेरठ के अस्पताल में भर्ती कराया था, जहां शुक्रवार देर रात उसका निधन हो गया।
जौहरा के कुलदीप का बेलड़ा में नाम रामपाल था। उनकी पत्नी अतरकली का निधन हो चुका है। बेटे रमेश, बिट्टू, बेटी प्रेमवती ओर संतरेश हैं। परिवार ने हमेशा कुलदीप को ही मुखिया माना। यही नहीं पिछले दिनों जमीन का बंटवारा करने के लिए भी कुलदीप को ही बुलाया गया था।
जौहरा के कुलदीप के बड़े भाई प्रदीप ने बताया कि उनके पूर्व जन्म के बेटे, बेटियां, अपने पिता रामपाल की हैसियत से देखते थे। कुलदीप ने ही जाकर उन बेटों के बीच संपत्ति का बंटवारा किया था। दूसरे जन्म में कुलदीप की शादी गांव बोपाड़ा से हुई। एक बेटा तथा एक बेटी है। बेटा 12वीं क्लास में मंसूरपुर में शिक्षा ग्रहण कर रहा है। भतीजे सोनू का कहना है यह जीती जागती पुनर्जन्म की कहानी थी। उनके चाचा उत्तराखंड से पीएचडी कर रहे थे।
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