नई दिल्ली. रोशनी और दीपों के पर्व दीपावली को लेकर हर वर्ग ने अपनी अपनी तैयारियां शुरू कर दी है. जहां एक तरफ धन लक्ष्मी के आगमन की तैयारियों को लेकर गृहलक्ष्मी घर की सफाइयों में जुटी हुई है वहीं दुकानदार भी अपने-अपने प्रतिष्ठानों को सजाने में लगे हुए हैं. घरों को रोशन करने के लिए कुम्भकार भी मिट्टी को दीयों का आकार देने में जुटे हुए है. हालांकि इलैक्ट्रॉनिक युग ने मिट्टी के दीपक की महत्ता को कुछ कम कर दिया है.
परम्परा का निर्वहन करने के लिए लोग अपने घरों को दीपक से रोशन जरूर करते हैं, लेकिन जहां पहले एक घर में औसतन हर वर्ष 20 से 50 नए दीपक की खरीद की जाती थी. वहीं अब उनकी खरीदारी की संख्या में कुछ कमी आ गई है. बढ़ रही महंगाई के कारण इस बार दीपक की कीमत में तेजी रहने की संभावना है.
बाजार में अनेक प्रकार के बिजली के दीये जैसे लड़िया अन्य सजावट इलैक्ट्रॉनिक आइटम मिलते है, लेकिन मिट्टी के दीपक के सामने उनका कोई महत्व नहीं रह जाता है. आधुनिक युग के बाजारी बिजली वाले दीपक मिट्टी के दीपकों की लौ नहीं बुझा सकते है क्योंकि दीपावली की रात को दीयों का इस्तेमाल लक्ष्मी पूजन के समय भी किया जाता है.
पिछले 35 वर्षों से मिट्टी के बर्तन बनाने का काम करने वाले 70 वर्षीय वृद्ध हाकम राम ने बताया कि उनकी चौथी पीढ़ी मिट्टी से बर्तन बनाने का कार्य कर रही है. पिछले 35 वर्षों से मिट्टी के दीपक बनाने में काम में बहुत उतार-चढ़ाव देखे है. कुछ वर्षों पूर्व मिट्टी के दीपक की मांग बिल्कुल कम हो गई थी.
लोग अपने घरों में इलैक्ट्रानिक लड़ियों से घरों को रोशन करने लगे थे हालांकि चाइनीज वस्तुओं के बहिष्कार करने के अभियान के बाद से मिट्टी के दीपक की मांग एक बार फिर बढ़ गई है लेकिन सरसों के तेल व दीपक के बढ़ते हुए भावों के कारण इनकी मांग अपेक्षाकृत कम है. उन्होंने बताया कि मिट्टी के बर्तन बनाने में लगात पहले की अपेक्षा काफी बढ़ गई है. कुछ समय पूर्व तक मिट्टी नि:शुल्क मिल जाती थी. बैलगाड़ी पर जाकर मिट्टी ले आते थे तो उस पर लागत नहीं आती थी. आज बर्तन बनाने वाली मिट्टी के भाव 700 रुपए प्रति ट्रॉली हो गए है.
जी मीडिया आपसे अपील करता है इस दीपावली इलेक्ट्रॉनिक लड़ियो के साथ साथ दीपक अवश्य खरीदें जिससे कुम्भकारों का रोजगार भी चलता रहे और भारतीय संस्कृति का निर्वाह भी होता रहे.