नई दिल्ली. दिल्ली-एनसीआऱ में बढ़ते वायु प्रदूषण ने एक बार फिर लोगों की चिंताएं बढ़ा दी हैं. दरअसल, वायु प्रदूषण हमारे शरीर को कई तरह से प्रभावित करता है. इससे कई तरह की बीमारियां हो सकती हैं. खराब हवा से सबसे ज्यादा खतरा श्वसन संक्रमण, हृदय रोग और फेफड़ों के कैंसर का रहता है. वायु प्रदूषण के अल्पकालिक और दीर्घकालिक दोनों तरह के जोखिम स्वास्थ्य से जुड़े हैं. वायु प्रदूषण सबसे अधिक उनको प्रभावित करता है जो पहले से ही बीमार हैं. बच्चे, बुजुर्ग इसके ज्यादा शिकार होते हैं.
वायु प्रदूषण से लड़ना हम सबकी जिम्मेदारी है. वायु प्रदूषण को कम करने और इसके खतरे से बचने के लिए हम सभी को और भी बहुत कुछ करने की जरूरत है. इसमें हर वर्ग को सक्रिय भागीदारी निभानी होगी. सभी वर्ग में सरकार (राष्ट्रीय, राज्य और स्थानीय सरकारें), शहर, बड़े पैमाने पर समुदाय और इंडिविजुअल व्यक्ति शामिल हैं.
सरकारों क्या कर सकती हैं : केंद्र औऱ राज्य सरकार को मिलकर ऐसे फैसले लेने चाहिए जिससे वायु प्रदूषण कम हों. उस वायु गुणवत्ता पर ध्यान देना जो डब्ल्यूएचओ के अनुसार बेहतर है. इसके अलावा ऐसी चीजों पर काम हो जिससे हवा साफ हो सके, प्रदूषण का खतरा कम हो. लोगों को भी जागरूक करना चाहिए ताकि वे प्रदूषण न फैलाएं.
लोकल कम्यूनिटी कर सकती है : सभी क्षेत्रों में सार्वजनिक नीतियों को शुरू से ही सार्वजनिक स्वास्थ्य पर ध्यान देना चाहिए, समय-समय पर उनका आकलन करने के लिए पर्याप्त डेटा और उपकरणों पर ध्यान देना चाहिए, ताकि खतरे से निपटने के साधन विकसित हो सकें.
इंडिविजुअल के लिए : प्रदूषण रोकने के लिए सरकार की तरफ से जो गाइडलाइंस तय की गईं हैं उनका पालन करना चाहिए. उन गलतियों को नहीं करना चाहिए जिससे प्रदूषण फैले. जैसे- खुले में कूड़ा जलाना, खुले में कंस्ट्रक्शन मटीरियल रखना और धूल-मिट्टी उड़ाना.
हम सभी क्या करें : यहां हम सभी को मिलकर जवाबदेह बनने की जरूरत है. जिस तरह हम अपने और अपने बच्चों के लिए चिंतित रहते हैं, जिस तरह अपने घर को साफ रखते हैं, उसी तरह हमें शहर के लिए और यहां रहने वाले अन्य लोगों के लिए चिंतित होना होगा. घर से बाहर निकलकर भी नियमों का पालन करना होगा.
एयर पलूशन को मापने के 8 मानक (प्रदूषक तत्व पीएम-2.5, पीएम-10, कार्बन मोनोऑक्साइड, ओजोन, सल्फर डाईऑक्साइड, एल्युमिनियम व लेड) होते हैं. इनमें सबसे अधिक महत्वपूर्ण पीएम-2.5 और पीएम-10 होते हैं. इन्हीं का आंकड़ा सर्वाधिक होता है. एयर क्वॉलिटी इंडेक्स नापते समय पीएम-2.5, पीएम-10 और किसी एक अन्य मानक को शामिल किया जाता है. इसका केवल स्टैंडर्ड होता है, कोई मापक इकाई नहीं होती, जबकि पीएम-2.5 और पीएम-10 को माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर में मापा जाता है. किसी भी चीज के जलने से जो प्रदूषण होता है, उसमें पीएम-2.5 और धूल कणों में पीएम-10 होता है.
पार्टिकुलेट मैटर (पीएम) हवा में पाए जाने वाले कणों के लिए बना एक शब्द है, जिसमें धूल, गंदगी, कालिख, धुआं और तरल बूंदें शामिल होती हैं. पीएम की बड़ी सांद्रता आमतौर पर डीजल वाहनों और कोयले से चलने वाले बिजली संयंत्रों जैसे स्रोतों से उत्सर्जित होता है. 10 माइक्रोमीटर व्यास (पीएम10) से कम के कण स्वास्थ्य के लिए चिंता का विषय होते हैं क्योंकि वे सांस के जरिए शरीर के अंदर जा सकते हैं और श्वसन प्रणाली में जमा हो सकते हैं. 2.5 माइक्रोमीटर व्यास (पीएम2.5) से कम के कण सबसे बड़ा स्वास्थ्य जोखिम पैदा करते हैं. अपने छोटे आकार (मानव बाल की औसत चौड़ाई का लगभग 1/30वां) के कारण, महीन कण फेफड़ों में गहराई से प्रवेश कर सकते हैं.
वायु प्रदूषण कम करने के उपायों में शहरों में स्थायी और बेहतर पब्लिक ट्रांसपोर्ट सिस्टम विकसित करने की जरूरत है ताकि वाहनों का बोझ कम हो और कम प्रदूषण निकले. सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट को लागू करने की जरूरत है, चूल्हे तक स्वच्छ घरेलू ईंधन पहुंचाने की जरूरत है. रिन्युअल एनर्जी पर काम करना और इसके लिए बाजार विकसित करना, एनर्जी इफसिएंसी पर काम करना. इसके अलावा औद्योगिक उत्सर्जन में कमी लाने की भी जरूरत है.