नई दिल्ली. 2024 के लोकसभा चुनाव लिए भारतीय जनता पार्टी ने अभी से तैयारियां शुरू कर दी हैं। राज्यवार सर्वे करवाया जा रहा है। सांसदों की रिपोर्ट कार्ड तैयार हो रही है। राज्यों के प्रभारियों का भी एलान हो चुका है। भाजपा नेता 2024 में 350 से ज्यादा सीटें जीतने का दावा कर रहे हैं। दावा करने वालों में केंद्रीय मंत्री भी शामिल हैं।

2024 के लोकसभा चुनाव के लिए भाजपा ने ज्यादातर राज्यों के प्रभारी और सह प्रभारियों की सूची जारी कर दी है। लोकसभा सीटों पर सर्वे का काम भी चल रहा है। खासतौर पर उन सीटों पर जहां, 2014 और 2019 चुनाव में भाजपा ने जीत हासिल की थी या फिर दूसरे नंबर पर रही।

भाजपा के सभी सांसदों का रिपोर्ट कार्ड भी तैयार किया जा रहा है। इसके जरिए ही लोकसभा चुनाव के दौरान टिकट बंटवारे का काम होगा। कुछ दिनों पहले ही केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह और पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा ने इन सीटों पर योजना को लेकर मंत्रियों के साथ समीक्षा बैठक की थी। इसमें भी व्यापक स्तर पर रणनीति बनाई गई।

इसे समझने के लिए हमने भाजपा के एक वरिष्ठ भाजपा नेता से बात की। उन्होंने कहा, ‘लोकसभा चुनाव के लिए हमारी पूरी तैयारी है। इस बार 350 से ज्यादा सीटें मिलेंगी और रिकॉर्ड कायम होगा।’ उन्होंने तीन बिंदुओं में पार्टी की रणनीति बताई।

2014 और 2019 में भाजपा को जिन-जिन सीटों पर हार मिली थी, उन सीटों की पार्टी ने समीक्षा की है। इसके मुताबकि इन सीटों पर विपक्ष की जीत की वजह जातीय और धार्मिक फैक्टर के साथ विपक्ष का चेहरा रहा था। इस बार अभी से उन सभी सीटों पर भाजपा फोकस कर रही है।

दावा किया जा रहा है भाजपा 2019 में हारी हुई 100 सीटों पर जीत दर्ज करने की रणनीति पर काम कर रही है। 2019 में जीती सीटों में से जितनी सीटें कम होंगी उससे ज्यादा सीटें पार्टी हारी सीटों पर जीत दर्ज करके इस आकंड़े को हासिल करना चाहती है।

आने वाले दिनों में भाजपा जातीय और धार्मिक समीकरण भी साधेगी। इन सीटों पर केंद्रीय मंत्री, राज्य सरकार के मंत्रियों का दौरा ज्यादा से ज्यादा होगा। स्थानीय लोगों की हर समस्या का निस्तारण करने की कोशिश होगी और उन्हें सरकार के
देशभर में भाजपा ने बूथ स्तर पर पार्टी को मजबूत बनाने का काम शुरू किया है। खासतौर पर उन बूथ पर ज्यादा फोकस है, जहां से पिछले दो लोकसभा चुनावों में कम वोट मिले थे। देखा जा रहा है कि कहां से वोट बढ़ने की संभावना ज्यादा है और कहां कम? जहां थोड़ी सी भी संभावना दिख रही है, वहां भाजपा के नेताओं और कार्यकर्ताओं को दोगुनी मेहनत के साथ काम करने को कहा जा रहा है। बूथ स्तर पर वोटर्स की सूची तैयार हो रही है। फिर वह भाजपा के वोटर्स हों या नहीं। विपक्ष को वोट देने वालों से भी अच्छे रिश्ते बनाने के लिए कहा गया है।

बीते दिनों ही भाजपा पिछड़े मोर्चे की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक हुई। इसमें तय हुआ कि हर तरह से पिछड़े वर्ग के लोगों को भाजपा से जोड़ने का काम जारी रहेगा। ज्यादा से ज्यादा पिछड़े वर्ग के लोगों को सरकारी योजनाओं का फायदा दिलाया जाए और लाभांवित लोगों को पार्टी से जोड़ा जाए। इसी तरह दलित और आदिवासी वोटर्स के बीच यह संदेश देने की भी रणनीति है कि भाजपा दलित और आदिवासी हित में काम करती है। द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति बनाए जाने का भी जिक्र दलित और आदिवासी वोटर्स के बीच में किया जा रहा है।

बिहार से जेडीयू, पंजाब से शिरोमणि अकाली दल और राजस्थान से राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी के एनडीए से अलग होने से होने वाले नुकसान को लेकर समीक्षा की जा रही है। जातीय समीकरण देखे जा रहे हैं, ताकि समय रहते इसकी भरपाई की जा सके। ऐसे में अलग-अलग जातियों के नेताओं को आगे बढ़ाने की कोशिश की जा रही है।

पश्चिम उत्तर प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान और दिल्ली में जाट वोटर्स की संख्या काफी अधिक है। जाट वोटर्स को साधने के लिए जाट समुदाय से आने वाले जगदीप धनखड़ को उपराष्ट्रपति बनाया गया है। इसी तरह उत्तर प्रदेश भाजपा का अध्यक्ष भूपेंद्र सिंह चौधरी को बनाया गया है। भूपेंद्र भी जाट हैं। मुस्लिम मतदाताओं को साथ लाने के लिए भी भाजपा ने पिछड़े मुस्लिमों को अपने साथ जोड़ने की रणनीति पर काम शुरू कर दिया है।