लखनऊ: उत्तर प्रदेश में निकाय चुनाव को लेकर अभी कयासों का दौर जारी है. पिछड़ा वर्ग आयोग की रिपोर्ट में सबसे अधिक खामियां रैपिड सर्वे को लेकर गिनाई गई हैं. बताया जा रहा है कि पिछड़ों के आंकड़ों में काफी अंतर देखने को मिला है. कई निकायों में बिना आधार के आंकड़ों में फेरबदल किया गया है. निकाय चुनाव की प्रक्रिया से जुड़े सूत्रों का कहना है कि अगर दोबारा रैपिड सर्वे कराने का फैसला लिया गया तो चुनाव की प्रक्रिया 15 से 20 दिन और टलेगी. रैपिड सर्वे के लिए टीम बनाने में और सर्वे कराने में कम से कम 20-25 दिन का समय लग सकता है. इसके बाद आपत्तियों के निस्तारण के लिए भी एक सप्ताह का समय दिया जाएगा.
रैपिड सर्वे की कमियों को दूर करके चुनाव कराने के निर्देश दिए गए हैं. कई निकायों के वार्डों की सीमा पूर्वक रहने के बाद भी रैपिड सर्वे में पिछले वर्ग की आबादी में काफी कमी दिखाई गई है. 2011 की जनगणना के बाद पिछड़ों की आबादी में काफी बढ़ोत्तरी हुई है.
ऐसे में इस श्रेणी की आबादी कम कैसे हो गई. अब दोबारा सर्वे कराने पर आंकड़ों में अंतर आया तो निकाय के अधिकारियों द्वारा आबादी की गिनती में गड़बड़ी किए जाने की शिकायतों की पुष्टि होगी. अधिकारी डरे हुए हैं कि यदि सुप्रीम कोर्ट ने दोबारा रैपिड सर्वे कराने का निर्देश दे दिया तो कई अफसरों की गर्दन फंस जाएगी.DM की देख रेख में नगर निकाय का रैपिड सर्वे अधिकारी करते हैं. इसमें गणना करने वालों के साथ पर्यवेक्षक भी शामिल होते हैं. डीएम द्वारा नॉमिनेट किए गए अधिकारी से क्लियरेंस मिलने के बाद ही इसे अंतिम रूप देते हुए वार्डवार आबादी का आंकड़ा पेश किया जाता है. उत्तर प्रदेश में 17 नगर निगम 200 नगर पालिका और 546 नगर पंचायत हैं.