चंडीगढ़. देश के अलग-अलग हिस्सों में कहीं पानी की कमी है तो कहीं पानी है तो दूषित है. फिर भी लोग मजबूरी में उसका सेवन करते हैं. खराब पानी के सेवन से लोगों को कई संक्रामक बीमारियों के साथ कैंसर का खतरा भी अधिक होता है. पंजाब के कुछ इलाकों में खेती के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले पेस्टिसाइड से पानी (pesticides in water) इतना दूषित हो चका है कि वह लोगों के इस्तेमाल करने लायक बिल्कुल नहीं है. इसके सेवन से लोगों को कैंसर भी हो रहा है.इस संकट पर कुछ हद तक नियंत्रण पाने के लिए डॉक्टर नेहा सिंगला, डॉक्टर रवि प्रताप बरवाल, डॉक्टर विशाल अग्रवाल और डॉक्टर गुरपाल सिंह की टीम ने एक डिवाइस बनाया है जो पानी में पेस्टिसाइड की मात्रा को तुरंत जांच लेगा. इसके लिए पानी को लैब भेजे जाने की जरूरत नहीं है. इन वैज्ञानिकों को इनके डिवाइस पर पेटेंट भी मिल चुका है.

हिन्दी अखबार दैनिक भास्कर के अनुसार वैज्ञानिकों में से एक डॉक्टर सिंगला ने कैंसर के चलते अपने भांजे को खो चुकी हैं. इसके बाद ही उन्होंने फैसला किया कि वह पेस्टिसाइड का पता लगाने पर काम करेंगी.

रिपोर्ट के अनुसार यह डिवाइस 5-7 रुपये में उपलब्ध होगी. डॉक्टर सिंगला ने पीएचडी के दौरान ब्रेन कैंसर और न्यूरो जेनेरेटिव बीमारियों पर शोध किया तो उन्हें पता चला कि बड़ी वजह पेस्टिसाइड थी. शोध के दौरान ही उनकी मुलाकात डॉक्टर गुरपाल सिंह से हुई. एक ओर जहां पंजाब यूनिवर्सिटी के डॉक्टर रवि प्रतार बरवाल ने केमिकल फाइनल करने में हेल्प की तो वहीं डॉक्टर अग्रवाल बाइंडिंग के लिए आगे आए. चारों डॉक्टर एक साथ आए और तीन साल में डिवाइस का पेटेंट हासिल किया.

रिपोर्ट के अनुसार इस डिवाइस का इस्तेमाल करने के लिए मिट्टी को पानी में घोलकर इसकी किट उसमें रखनी होगी या फिर इसी पानी का एक बूंद भी इस पर गिराई जा सकती है. पानी या मिट्टी में पेस्टीसाइड की मात्रा अधिक होगी तो उस पर सफेद बबल बन जाएंगे. अगर मात्रा कम भी होगी तब भी रिजल्ट आने में कम से कम 5 मिनट लग सकते हैं. इस बाबत डॉक्टर सिंगला ने कहा कि सिर्फ पंजाब ही नहीं बल्कि देश के कई और राज्य जैसे- हरियाणा और महाराष्ट्र में भी पेस्टिसाइड का इस्तेमाल होता है. उनके मुताबिक अगर यह पता चल जाए कि कौन से इलाके में पेस्टिसाइड ज्यादा है तो वहां खाने के सामना या पानी समेत अन्य वस्तुओं को ट्रीट किया जा सकता है.