मेरठ. चार साल के अग्निवीर लेकर कहीं रेगुलर कैडर खत्म तो नहीं हो जाएगा। चार साल में प्रशिक्षण के बाद ड्यूटी का वक्त ही कितना बचेगा। चार साल के लिए हम इतनी मेहनत करेंगे तो उसके बाद क्या करेंगे। सेना की नौकरी महज नौकरी नहीं बल्कि पूरे परिवार की सुरक्षा है, इसे ऐसा कैसे कर सकते हैं। चार साल बाद हम करेंगे क्या और जाएंगे कहां।
युवा मन इसी तरह के प्रश्नों और आशंकाओं से घिर गया है। गांव के मैदान से लेकर शहर के कैलाश प्रकाश स्पोर्ट्स स्टेडियम तक सेना भर्ती की तैयारी में जुटे युवाओं में यही चर्चा चल रही है। पहले ही बिना किसी भर्ती में शामिल हुए योग्यता के दो साल कम हो चुके हैं। अब चार साल के अग्निवीर बनने के बाद क्या बनकर घर लौटेंगे। पुलिस व आइएएस में ऐसा प्रयोग क्यों नहीं करते? सेना की राजपुताना रेजिमेंट में कार्यरत कर्नल नरेंद्र सिंह के अनुसार खर्च कम करने के उद्देश्य से सेना की संख्या कम करना चाहते हैं तो कर सकते हैं लेकिन सेना की मजबूत नींव को बरकरार रखने की जरूरत है। हर सैनिक नाम, नमक और निशान के लिए लड़ता है और यह जज्बा चार साल में नहीं आ सकता। यह प्रयोग सेना में ही क्यों, पुलिस, आइएएस-पीसीएस सहित अन्य विभागों में भी क्यों नहीं करते।
पश्चिम यूपी सब-एरिया कमांडर रहे ले. जनरल आरएन सिंह के अनुसार इस योजना में अब तक सरकार का लक्ष्य स्पष्ट नहीं है। कुछ दिखा रहा है तो खर्च कम करने की मंशा। इससे सेना को लाभ नहीं मिलेगा। संभव है कि बड़ी संख्या में प्रशिक्षित युवाओं के लिए कोई आंतरिक संगठन बनाई जाए लेकिन चार साल बाद हर युवा रोजगार मांगेगा। देश में बेरोजगारी अधिक है इसलिए इस भर्ती में भी युवा आएंगे लेकिन उन्हें उम्मीद परमानेंट नौकरी की ही रहती है।
पूठा गांव के युवाओं संग भर्ती रैली की तैयारी कर रहे सचिन बसूटा ने कहा कि रैली में शामिल होने के लिए उनके पास महज छह महीने ही शेष हैं। दो साल कोविड में चले गए। अब कहीं ऐसा न हो कि इस चार साल की व्यवस्था में रेगुलर कैडर को ही खत्म कर दिया जाए। ऐसा हुआ तो लाखों युवाओं की उम्मीद खत्म हो जाएगी।