मुजफ्फरनगर : जनपद देश की राजधानी दिल्ली से 130 किलोमीटर उत्तर की ओर है. यहां से 120 किलोमीटर पश्चिम में खूबसूरत वादियों वाला शहर देहरादून स्थित हैं. यह दिल्ली-देहरादून नेशनल हाईवे-58 पर स्थित है. जनपद के एक ओर बिजनोर में गंगा तो दूसरी ओर शामली में यमुना बहती है. साथ ही मुजफ्फरनगर में गंगा, सलोनी, काली, हिंडन और नागिन नदियां भी बहती हैं. मुजफ्फरनगर लोकसभा में कुल पांच विधानसभाएं हैं, जिसमें चार विधानसभा मुजफ्फरनगर की हैं. एक विधानसभा (सरधना) सीट मेरठ जनपद की हैं. ये चार सीटें हैं- बुढ़ाना, चरथावल, खतौली, सदर, सरधना. इस बार यहां से तीन मुख्य उम्मीदवार मैदान में हैं. भाजपा से डॉ. संजीव बालियान, सपा से हरेंद्र मलिक और बसपा से दारा सिंह प्रजापति.
मुजफ्फरनगर लोकसभा में मुख्य रूप से भाजपा के प्रत्याशी डॉक्टर संजीव बालियान और सपा प्रत्याशी हरेंद्र मलिक के बीच मुकाबला है. बसपा प्रत्याशी दारा सिंह प्रजापति दोनों प्रत्याशियों के गणित को बिगाड़ने की भूमिका में हैं. यानी की भाजपा और सपा प्रत्याशी के मतदाताओं की कुछ संख्या अपनी ओर कर हार-जीत के अंतर प्रभावित कर सकते हैं.
वैसे तो मुजफ्फरनगर लोकसभा क्षेत्र में इस बार कोई स्थानीय मुद्दे नहीं हैं. बस मुद्दा ये है कि एक खास मतदाता वर्ग बदलाव के लिए मत करेगा तो दूसरी ओर मोदी, योगी, कानून, विकास, सुरक्षा के नाम पर वोट पड़ेंगे. इन सबके बीच हिंदू जातियों में कुछ नाराजगी को देखते हुए बार-बार विरोध के स्वर भी उठ रहे हैं. मगर अभी यह नहीं कहा जा सकता कि ये नाराजगी वोट को कितना प्रभावित करेगा.
मुजफ्फरनगर लोकसभा पर इस बार का चुनाव भी 2019 के लोकसभा चुनाव की तरह ही है. बीते चुनाव में भाजपा से डॉक्टर संजीव बालियान और राष्ट्रीय लोकदल गठबंधन से चौधरी अजीत सिंह मैदान में थे. संजीव बालियान लगभग 6000 वोटों से जीत गए थे. अब कहा यह भी जा रहा है कि एक तरफ जहां 2019 में बसपा का कोई प्रत्याशी नहीं था, मगर इस बार बसपा के प्रत्याशी हैं तो भाजपा को दलित वोटों का नुकसान हो सकता है. वहीं दूसरा तर्क यह है कि भाजपा के साथ राष्ट्रीय लोकदल प्रमुख जयंत चौधरी का गठबंधन हो जाने से रालोद का जाट वोट भी बीजेपी को जा सकता है.
ऐसे में यह देखने वाली बात होगी कि भाजपा प्रत्याशी संजीव बालियान को 2019 चुनाव के मुकाबले इस बार 2024 में दलित और जाट मतदाता कितनी अधिक संख्या में वोट करते हैं. उसी से भाजपा की जीत का आंकलन किया जा सकता है. वहीं दूसरी तरफ सपा के प्रत्याशी जाट और अन्य पिछड़ा वर्ग के वोट को अपनी ओर करने में कितना कामयाब होंगे. उसी से सपा प्रत्याशी की भी जीत और हार का आंकलन हो पाएगा. मगर राजनीतिक जानकार इस गुणा भाग के बीच ये जरूर कह रहे हैं कि दोनों प्रत्याशियों के बीच हार और जीत का अंतर ज्यादा नहीं होगा. यहां संजीव बालियान और संगीत सिंह सोम के बीच अदावत भी चुनाव के दौरान झलक गई है. वह जनता के सामने आ गई है. भाजपा के लिए ये चिन्ता की बात हो सकती है.