नई दिल्ली। देशभर में दशहरे का त्योहार बुधवार को बड़ी ही धूमधाम से मनाया जा रहा है। इस मौके जगह-जगह पर रावण के पुतले जलाएं जाएंगे। इसे बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक माना जाता है। भगवान श्री राम ने दशहरा यानी विजयादशमी के दिन ही रावण का वध किया था।
रावण से जुड़ी कई कथाएं प्रचलित हैं, जो बेहद रोचक हैं। इन्हीं में से एक हैं रावण के दस सिर का रहस्य। 10 सिर की वजह से ही रावण को दशानन भी कहा जाता है। वह ना तो देव थे और ना ही दानव तो फिर एक मनुष्य के दस सिर कैसे हो सकते हैं। आज हम आपको बताएंगे कि रावण साधारण मनुष्य से दशानन कैसे बना।
जिसके 10 सिर हों उसे दशानन कहा जाता है। पौराणिक कथाओं के मुताबिक, रावण भगवान शिव का परम भक्त था। भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए लंकापति रावण ने कई वर्षों तक कठोर तप किया। कहा जाता है कि रावण की इतनी कठिन भक्ति देखकर भी भगवान शिव प्रसन्न नहीं हुए। इसके बाद भक्ति में लीन रावण ने अपना सिर ही काटकर भगवान भोलेनाथ को अर्पित कर दिया।
बता दें कि, इस दौरान उसकी मृत्यु नहीं हुई बल्कि नया सिर आ गया। एक-एक करके रावण ने 9 सिर भगवान शिव को अर्पित कर दिए। जब 10वीं बार उसने अपना सिर भगवान को अर्पित करना चाहता तभी भोलेनाथ प्रकट हो गए। रावण के तप से भगवान काफी प्रसन्न थे।
रावण के 10 सिर बुराइयों के प्रतीक माने जाते हैं। पहला काम, दूसरा क्रोध, तीसरा लोभ, चौथा मोह, पांचवां मादा (गौरव), छठां ईर्ष्या, सातवां मन, आठवां ज्ञान, नौवां चित्त और दसवां अहंकार।
रामचरितमानस में दशानन का व्याख्यान है। भगवान राम से युद्ध के लिए रावण आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या को निकला था। हर दिन रावण का एक सिर कट जाता था। 10वें दिन यानी आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की दशमी को उसका वध हुआ था। इसी कारण दशमी वाले दिन दशहरा मनाया जाता है।