मुरादाबाद: टाउनहाल पर निगम कार्यालय के पास बने इस आयुर्वेदिक अस्पताल में तमाम बीमार लोगों का एक रुपए में इलाज होता था. नगर निगम के चिकित्सालय में दिखाने की कोई फीस नहीं थी. पर बाद में नि:शुल्क व्यवस्था की बजाय इसमें पर्चे के तौर पर एक रुपया लिया जाने लगा. डॉक्टर व मुफ्त दवा की बदौलत निगम का आयुर्वेदिक दवाखाना गरीबों के लिए संजीवनी बना रहा. एक रुपए से ही हर साल से तीन लाख लोगों का इलाज सालों तक होता रहा. यह क्रम कोरोना काल के पहले तक चला डाक्टरों की तैनाती रही.
सस्ते इलाज में लोगों ने काफी राहत महसूस की. लेकिन निगम की डिस्पेंसरी चार साल से बंद है. सेवाकाल के बाद करीब दो साल तक डॉ. शर्मा डिस्पेंसरी को संभालते रहे. कभी दवा और स्टाफ की कमी नहीं आई. हालांकि आयुर्वेदिक अस्पताल के बंद होने की बड़ी वजह किसी चिकित्सक की तैनाती न होना है. निकाय व शासन स्तर से जनापेयागी अस्पताल की अनदेखी भारी पड़ गई. कोरोना काल से पहले दवाखाना बंद होने लगा. जनसुविधाएं मुहैया कराने वाले निगम ने भी लोगों की सेहत को नजर अंदाज कर दिया.
आयुर्वेदिक चिकित्सक डॉ. सुरेन्द्र शर्मा चिकित्सालय में 34 साल तक कार्यरत रहे. 1989 से जनवरी, 2017 तक कार्यरत डॉ. शर्मा का सबसे लंबा कार्यकाल रहा. वह बताते है कि कभी भी अस्तपताल में मरीजों की कतार कम नहीं हुई. इस डिस्पेंसरी में रोजाना सौ से सवा सौ मरीज आते,दवा लेते थे. निगम के चिकित्सालय तक आने वाले लोग मुरादाबाद जिले तक ही सीमित नहीं रहे. संभल, बहजोई, पाकबड़ा, कुंदरकी, बिलारी आदि जगहों से मरीज आते. 2017 में डा. शर्मा का सेवाकाल पूरा हुआ तो नगर आयुक्त ने उनकी सेवाएं बहाल कर मानदेय पर रख लिया.
नगर निगम का अपना चिकित्सालय पचास साल से भी ज्यादा समय तक गरीबों के लिए मददगार बना रहा. मुरादाबाद में संचालित आयुर्वेदिक चिकित्सालय में सर्दी जुकाम बुखार से लेकर कई प्रकार के रोगों से संबंधित मरीज आते थे. नगर पालिका में करीब 1967 से भी पहले इस चिकित्सालय में वैद्य ओम प्रकाश मिश्रा देखभाल करते. शहर के टाउनहाल पर निगम कार्यालय के पास आयुर्वेदिक अस्पताल था. लंबे चौड़े परिसर में मरीजों के बैठने की जगह थी. निगम में 2002 से रिटायर आरपी शर्मा कहते है कि डिस्पेंसरी में मरीजों के इलाज की अरसे तक मुफ्त सेवा था. हालांकि बाद में इसमें पर्चे के तौर पर एक रुपया लिया जाने लगा.