मुजफ्फरनगर। शहर की जनता जहां रात को नींद के आगोश में थी वहीं, सरकुलर रोड पर रात दो बजे के बाद से एक नई सुबह की शुरूआत हो रही थी। किसान एकता जिंदाबाद के नारे तेज होते जा रहे थे। जीआईसी के गीले मैदान पर कोई बैठे-बैठे सो रहा था तो कोई सुबह होने का बेसब्री से इंतजार कर रहा था। सैकड़ों किलोमीटर दूर से आए युवाओं की टोलियां मंच के सामने सेल्फी लेने में जुटी थीं। इन युवाओं में किसान भी थे। इंजीनियरिंग और मैनेजमेंट की पढ़ाई करने वाले भी। रह-रहकर भीड़ के जत्थे पहुंच रहे थे।
हरियाणा, राजस्थान, पंजाब, बिहार, मध्य प्रदेश, उत्तराखंड और पूर्वी यूपी का कोई ऐसा जिला नहीं बचा था, जहां से किसानों की भीड़ यहां नहीं आई हो। युवा तो जोश में थे ही, 80 साल के बुजुर्ग तक महापंचायत का हिस्सा बनने के लिए बेताब नजर आए। मंच के सामने का मैदान रात तीन बजे तक ही पूरा भर गया। गीली जमीन पर क्या रात को नींद आएगी, सवाल किया तो हर कोई यही बोला… यहां सोने के लिए थोड़े आए हैं। एक दिन का कष्ट तो सह लेंगे, लेकिन यह काले कानून नहीं हटे तो आने वाली पीढ़ी को बहुत कुछ खोना पड़ेगा। म्हारे बालक यही पूछेंगे कि जब यह कानून लागू हुए तो तुमने क्या किया। पूंजीपति की लड़ाई तो सरकार लड़ लेती है। हम तो किसान हैं, हमारी लड़ाई तो खुद हमें ही लड़नी पड़ेगी।
मुजफ्फरनगर की सरजमीं पर बरसों बाद सांप्रदायिकता से ऊपर उठकर हर कोई एक नजर आया। सबकी जुबां पर एक ही नारा किसान एकता जिंदाबाद… किसान एकता जिंदाबाद। न नींद की फिक्र न खाने की इच्छा। जिसको जहां जगह मिली सड़क पर, फुटपाथ पर, गीली जमीन पर, बसों की छत पर, वहीं लेट गया।
रात को 2:00 बजे एक किसान से पूछा, इतनी जल्दी कैसे आ गए, रैली तो कल 11 बजे से है। इस पर 70 साल के सतनाम बेबाकी से जवाब देने लगे। बोले अमृतसर से यहां आया हूं ,सुबह पहुंचता तो मैदान मैं बैठने के लिए जगह नहीं मिलती। इसलिए रात में ही सब आ गए। एक रात नहीं सोएंगे तो जिंदगी कम नहीं हो जाएगी। लोगों के आने का सिलसिला रात भर चलता रहा। एक जिले के लोगों का पहुंचना खत्म होता नहीं कि दूसरे जिले के लोग आने शुरू हो जाते। जगह-जगह लंगर चल रहे थे। मेले जैसा माहौल।
महापंचायत में आयोजकों की उम्मीद से ज्यादा भीड़ पहुंची। रात में जहां दूरदराज के जिलों से बसें आ रही थीं, वहीं बहुत से ऐसे युवा थे जो बाइक और साइकिल से भी पंचायत का हिस्सा बनने पहुंचे। सुबह से ही मुजफ्फरनगर हाईवे ट्रैक्टरों की लंबीलाइन से अट गया। ढोल और डीजे की थाप पर किसान रात से सुबह तक नाचते-गाते रहे। बाबा का हुक्का और चिलम भी खूब चला। पूरे शहर की धर्मशाला होटल तो फुल हो ही गए आसपास के गांवों में भी शादी समारोह जैसा माहौल रहा।
सुबह 11 बजे किसान महापंचायत शुरू हुई तो जीआईसी मैदान में पैर रखने की भी जगह नहीं बची। लोगों को सड़कों पर खड़े होकर जगह-जगह लगी स्क्रीन पर ही किसान नेताओं का भाषण सुनना पड़ा। जिस किसान से भी बात हुई उसका यही कहना था कि ये तीन काले कानून किसानों को बर्बाद कर देंगे। ये वापस नहीं हुए तो आने वाली किसान पीढ़ी बर्बाद हो जाएगी। रात से ही जुटे किसानों का जुनून इस कदर था कि पंचायत खत्म होने के बाद भी उनके चेहरों पर रात भर की थकान नजर नहीं आई। जोश दुगना हो गया। हर कोई यही बोला कि अब 27 सितंबर को भारत बंद में शामिल होंगे। काले कानूनों को कतई स्वीकार नहीं किया जाएगा। या तो ये कानून वापस होंगे या फिर हम शहीद होंगे।