
नई दिल्ली। पूरी दुनिया कोरोना महामारी से जूझ रही है। इस संकट में प्रदूषण स्थिति को और भी ख़राब कर सकता है। ख़ास कर भारत में प्रदूषण तेजी से बढ़ रहा है। दिल्ली और एनसीआर के लिए दोहरी मुसीबत है। प्रदूषण और बढ़ती ठंड के बीच कोरोना ज्यादा खतरनाक हो सकता है। ऐसे लोग जो कोरोना से जंग जीत चुके हैं उन्हें ज्यादा एहतियात बरतने की जरूरत है। डॉक्टरों का मानना है कि जिनके फेफड़े कोरोना से प्रभावित हुए हैं, उन पर दोहरा वार हो सकता है। ऐसे में कोविड से मौतें भी बढ़ सकती हैं। बचाव के लिए डॉक्टर मास्क पहनने की सलाह दे रहे हैं।
इस साल पंजाब में पराली जलाने की घटनाएं सितंबर के महीने में ही शुरू हो गई थी। इस बार घटनाएं भी अधिक दर्ज की गईं। नासा ने पराली जलने की तस्वीरें भी जारी की थीं। पिछले साल के मुकाबले इसी अवधि में पराली जलाने की घटनाएं बढ़ी हैं। रिपोर्ट्स के मुताबिक अक्टूबर के पहले हफ्ते में पराली को आग लगाने के मामले 150 से लेकर 200 के बीच दर्ज किए गए। दिल्ली के आसपास के कृषि प्रधान राज्यों में पराली के जलने से सबसे ज्यादा प्रदूषण फैलता है। किसान अक्टूबर में धान की फसल काट लेते हैं, जो गेहूं की बोआई के अगले दौर से लगभग तीन सप्ताह पहले पराली जलाना शुरू कर देते हैं लेकिन इस बार तो पराली पहले ही जलने लगी।
सेहत के लिए खतरनाक
मौसम के सर्द होने के साथ-साथ कोरोना और प्रदूषण का गठजोड़ लोगों के स्वास्थ्य के लिए बेहद खतरनाक साबित हो सकता है। सांस रोग विशेषज्ञ डॉ पीयूष गोयल के मुताबिक, खराब वायु गुणवत्ता के कारण अस्थमा और क्रॉनिक ऑब्स्ट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (सीओपीडी) जैसी गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं पैदा हो रही हैं। पिछले साल पराली का धुआं आने के बाद सांस लेने में तकलीफ बताने वाले मरीजों की संख्या में बाकी सालों की तुलना में 30 से 35 फीसदी की बढ़ोतरी हुई थी। वायरस का हवा में ज्यादा देर ठहरने का मतलब ज्यादा लोग संक्रमण की चपेट में आ सकते हैं। ऐसे में दिवाली के बाद कोरोना के दूसरी लहर की आशंका जताई जा रही है। पहले से कोरोना की चपेट में आ चुके लोगों के लिए यह ज्यादा खतरनाक साबित होगा।
बढ़ते वायु प्रदूषण को देखते हुए दिल्ली-राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में 15 अक्टूबर से ग्रेडेड रिस्पॉन्स एक्शन प्लान (जीआरएपी) लागू कर दिया गया है। इसके तहत दिल्ली-एनसीआर में डीजल जेनरेटर के इस्तेमाल, होटलों, ढाबों और रेस्तराओं में लकड़ी और कोयला जलाने पर भी रोक लग गयी है। जीआरएपी के निर्देश अगले साल तक लागू रहेंगे। इसके अलावा दिल्ली सरकार द्वारा सर्दियों में प्रदूषण से निपटने के लिए एंटी डस्ट मुहिम की शुरुआत की गई है।
लखनऊ की हवा में प्रदूषण
लखनऊ की हवा अत्याधिक दूषित हो चुकी है। राजधानी में 2 नवम्बर को वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) 350 के पार पहुंच गया तथा हवा में पीएम 2.5 की मात्रा 107.9 प्रतिशत तथा पीएम 10 की मात्रा 273.6 प्रतिशत पर पहुंच गई है। जिसे बहुत अधिक खराब माना जाता है। पूरे लखनऊ में प्रदूषण से पैदा हुई धुंध की ये चादर देखने को मिल रही है। पर्यावरण विशेषज्ञों का कहना है कि अगर अभी नहीं चेते तो आने वाले समय में लोगों को सांस लेने में और दिक्कत होगी। बीते करीब 15 दिन से ही लखनऊ की हवा जहरीली होनी शुरू हो गई थी। बीती 17 अक्टूबर को राजधानी का एयर क्वालिटी इंडेक्स 249 था तथा 19 अक्टूबर को यह 300 पर पहुंच गया और 26 अक्टूबर को तो एक्यूआई 341 पर पहुंच गया।
एयर पोल्यूशन और कोरोना से मौत
कोरोना से दुनिया भर जितनी मौतें हुईं है उनमें से 15 फीसदी का सम्बन्ध वायु प्रदूषण से है। अमेरिका में ये आंकड़ा 18 फीसदी मौतों का है। कार्डियोवैस्कुलर रिसर्च पत्रिका में प्रकाशित एक नए अध्ययन ने चेताया है कि वायु प्रदूषण में लम्बे समय तक एक्सपोज़र से कोरोना वायरस से मौत का रिस्क बहुत बढ़ जाता है। इस अध्ययन के एक शोधकर्ता थॉमस मुन्जेल ने कहा है कि वायु प्रदूषण में लम्बे समय तक का एक्सपोज़र और कोरोना वायरस का संक्रमण, ये दोनों जब मिल जाते हैं तो सेहत पर खतरनाक असर पड़ता है। ख़ास तौर पर ह्रदय और खून का प्रवाह बनाये रखने वाली नसों में ऐसा असर होता है कि उनकी कोरोना के खिलाफ संघर्ष करने की ताकत घट जाती है।
अगर किसी व्यक्ति को ह्रदय की बीमारी है और वह ख़राब क्वालिटी वाली हवा में रहता है तो अगर उसे कोरोना संक्रमण हो गया तो इसका नतीजा हार्ट अटैक, हार्ट फेलियर और स्ट्रोक के रूप में सामने आ सकता है। थॉमस मुन्जेल जर्मनी के एक प्रमुख चिकित्सक हैं। रिसर्च से पता चला है कि वायु प्रदूषण से कोरोना वायरस के कारण होने वाली मौतों की संख्या अकाफी ज्यादा रही है। चेक रिपब्लिक में 29 फीसदी, चीन में 27 फीसदी, जर्मनी में 26 फीसदी, फ़्रांस में 18 फीसदी, स्वेदन में 16 फीसदी, इटली में 15 फीसदी, ब्रिटेन में 14 फीसदी, ब्राज़ील में 12 फीसदी, आयरलैंड में 8 फीसदी, इजरायल में 6 फीसदी, आस्ट्रेलिया में 3 फीसदी और न्यूज़ीलैण्ड में 1 फीसदी का आंकड़ा रहा।
विश्व स्वास्थ्य संगठन का अनुमान है कि जहरीली हवा हर साल 70 लाख लोगों की जान ले लेती है। ये जरूरी नहीं कि लम्बे समय तक वायु प्रदूषण के प्रति एक्सपोज़र से ही सेहत पर ख़राब असर हो। एक्सपर्ट्स का कहना है कि कम अवधि के एक्सपोज़र से भी गंभीर जोखिम हो सकता है। अगर किसी व्यक्ति को सांस की कोई बीमारी है तो नतीजे जानलेवा हो सकते हैं। डाक्टरों का कहना है कि भारत जैसे देश में किसे प्रदोषण की वजह से सांस लेने में तकलीफ है और किसे कोरोना की वजह से, ये पता करना अस्पतालों के लिए मुश्किल हो जाएगा।
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