नई दिल्‍ली. जटिल न्‍यायिक प्रक्रिया का एक और मामला सामने आया है. उत्‍तर प्रदेश के एक नाबालिग बेटे की दर्दभरी दास्‍तान सामने आई है. 17 वर्षीय एक किशोर के पिता नोएडा के एक निजी अस्‍पताल में भर्ती थे. उनका लिवर ट्रांसप्‍लांट किया जाना था. उनका नाबालिग बेटा लिवर डोनेट करने के लिए तैयार था, लेकिन नाबालिग होने के कारण कानूनन वह ऐसा नहीं कर सकता था. ऐसे में किशोर पिता की जान बचाने के लिए सुप्रीम कोर्ट पहुंचा. शीर्ष अदालत ने इस पर तत्‍काल संज्ञान भी लिया.

शुक्रवार को भारत के मुख्‍य न्‍यायाधीश जस्टिस यूयू ललित ने उत्‍तर प्रदेश के स्‍वास्‍थ्‍य विभाग के जिम्‍मेदार अधिकारी को कोर्ट में मौजूद रहने का निर्देश दिया था. दरअसल, सुप्रीम कोर्ट यह जानना चाह रहा था कि क्‍या ऐसी परिस्थितियों में अंगदान से जुड़े कानून को लचीला बनाया जा सकता है. कानूनन सिर्फ वयस्‍क ही अंगदान कर सकते हैं. मामले की सुनवाई सोमवार को होनी थी. इस बीच उत्‍तर प्रदेश की अतिरिक्‍त महाधिवक्‍ता गरिमा प्रसाद ने बुधवार को जस्टिस संजय कौल और जस्टिस एएस ओका की पीठ को बताया कि नाबालिग के पिता की शनिवार को ही मौत हो गई.

सुप्रीम कोर्ट द्वारा इस मामले में व्‍यवस्‍था देने से पहले ही नाबालिग के पिता की मौत हो गई. इसकी सूचना मिलने पर कोर्ट रूम का माहौल गमगीन हो गया. हालांकि, इस मामले पर फैसला देने से पहले मुख्‍य न्‍यायाधीश ने किशोर का मेडिकल टेस्‍ट करने का निर्देश दे दिया था. हालांकि, किस्‍मत को कुछ और ही मंजूर था. तमाम कोशिशों के बावजूद भी किशोर अपने पिता को नहीं बचा सका. दरअसल, किशोर के पिता को लिवर संबंधी गंभीर दिक्‍कत थी. उनका अविलंब लिवर ट्रांसप्‍लांट किया जाना था. नाबालिग बेटा अपने पिता को लिवर डोनेट करने के लिए भी तैयार था, लेकिन इसमें कानूनी अड़चन सामने आ रही थी. इसे देखते हुए किशोर ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर अविलंब हस्‍तक्षेप करने की मांग की थी.

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, वेंटिलेटर पर चल रहे किशोर के पिता को तत्‍काल लिवर ट्रांसप्‍लांट कराने की जरूरत थी. नाबालिग की मां लिवर डोनेट करने के लिए तैयार थीं. डॉक्‍टरों की टीम ने किशोर की मां का मेडिकल टेस्‍ट किया, लेकिन वह लिवर डोनेशन के लिए फ‍िट नहीं पाई गईं. इससे मामला और जटिल हो गया. इसके बाद नाबालिग ने अपने पिता के लिए लिवर दान करने की इच्‍छा जताई. भारतीय कानून के अनुसार, सिर्फ वयस्‍क ही अंगदान कर सकते हैं. इसके बाद किशोर सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया. तमाम कोशिशों के बावजूद भी वह अपने पिता को नहीं बचा सका.