मुजफ्फरनगर। खतौली उप चुनाव के रण में सियासी महारथी एक-दूसरे पर खूब शब्दबाण चला रहे हैं। मतदान का दिन नजदीक आने के साथ-साथ जातीय समीकरण साधने के लिए भाजपा और सपा-रालोद-आसपा गठबंधन ने पूरी ताकत झोंक दी है। दलित मतदाता उप चुनाव के नतीजों में निर्णायक भूमिका निभाएंगे। बसपा चुनाव नहीं लड़ रही है, ऐसे में सवाल है कि दलित मतदाता किसके साथी बनेंगे।
खतौली विधानसभा के उप चुनाव में तीन लाख 12 हजार 446 मतदाता अपने मताधिकार का प्रयोग करेंगे। मुस्लिमों के बाद दूसरे नंबर पर करीब 50 हजार दलित मतदाता हैं। बसपा की चुनाव से दूरी बनाने के कारण सबकी निगाह अनुसूचित जाति के मतदाताओं पर टिकी हुई है। रालोद-सपा गठबंधन में आजाद समाज पार्टी के शामिल हो जाने के बाद नया सियासी मोड़ आ गया है। देखने वाली बात यह होगी कि आसपा के समर्थन से गठबंधन को अनुसूचित जाति के कितने वोटों का लाभ मिल सकेगा। खतौली की जनसभा में आसपा अध्यक्ष चंद्रशेखर ने अनुसूचित जाति और अति पिछड़े वर्ग के वोटरों को साधने की खूब कोशिश की। यह भी वादा करके गए कि दो से पांच दिसंबर तक वह खतौली के लोगों के बीच रहेंगे और घर-घर जाएंगे।
भाजपा ने समाज कल्याण मंत्री असीम अरुण को चुनाव मैदान में उतारा। तिसंग की जनसभा में उन्होंने भी अनुसूचित जाति के मतदाताओं को लुभाने की कोशिश की। रालोद अध्यक्ष जयंत सिंह ने भी मंच से ही कहा कि सपा-रालोद और आसपा गठबंधन नए समीकरण बनाने के लिए तैयार किया गया है। यह भाईचारे का गठबंधन है और चुनावी नतीजे बदल देगा। इस चुनावी हलचल के बीच साफ हो गया है कि इस बार अनुसूचित जाति के मतदाता ही नतीजे तय करेंगे, इसलिए राजनीतिक दलों ने दलितों की बस्ती की राह पकड़ ली है।
वर्ष निर्वाचित विधायक पार्टी
1967 सरदार सिंह सीपीआई
1969 वीरेंद्र वर्मा बीकेडी
1974 लक्ष्मण सिंह बीकेडी
1977 लक्ष्मण सिंह जनता पार्टी
1980 धर्मवीर सिंह कांग्रेस
1985 हरेंद्र मलिक लोकदल
1989 धर्मवीर सिंह जनता दल
1991 सुधीर बालियान भाजपा
1993 सुधीर बालियान भाजपा
1996 राजपाल बालियान भाकिकापा
2002 राजपाल बालियान रालोद
2007 योगराज सिंह बसपा
2012 करतार भड़ाना रालोद
2017 विक्रम सैनी भाजपा
2022 विक्रम सैनी भाजपा