नई दिल्ली : अपना चंद्रयान चांद को छूने के लिए तैयार है। चंद्रयान-3 को 14 जुलाई को लॉन्च करने की तैयारियां मुकम्मल हैं। इस बार चंद्रयान चांद पर लैंडिंग से ठीक पहले के ‘दहशत के 15 मिनट’ को मात देने के लिए तैयार हैं। 4 साल पहले चंद्रयान-2 के लैंडर की क्रैश लैंडिंग से चांद को छूने का सपना अधूरा रह गया था लेकिन इस बार कोई कसर नहीं रहने वाला। आखिर इसरो को इस बार क्यों है इतना भरोसा, खुद इसरो चीफ एस. सोमनाथ ने बताया है। अंग्रेजी अखबार हिंदुस्तान टाइम्स को दिए इंटरव्यू में इसरो चीफ ने बताया कि चंद्रयान-3 की डिजाइन ‘असफलताओं पर आधारित’ है जबकि चंद्रयान-2 ‘सक्सेज-बेस्ड’ था। उन्होंने बताया कि पिछली बार की 3 बड़ी गलतियों को इस बार सुधारा गया है।

एस. सोमनाथ ने बताया कि चंद्रयान-3 को उन सभी बातों को ध्यान में रखकर बनाया गया है जो गलत हो सकती हैं। उनके मुताबिक पिछली बार के ‘सक्सेज बेस्ड’ अप्रोच की जगह इस बार ‘फेल्योर बेस्ड’ डिजाइन तैयार किया गया है। फोकस इस बात पर है कि मिशन के दौरान क्या-क्या गड़बड़ हो सकता है, कहां-कहां क्या दिक्कत आ सकती है। सभी संभावित गड़बड़ियों को दूर किया गया है।

सोमनाथ ने बताया, ‘चंद्रयान-2 में हमने जो सक्सेज-बेस्ड डिजाइन तैयार की थी, उसके उलट हम चंद्रयान-3 में हमने फेल्योर-बेस्ड डिजाइन पर काम किया है। हमने उन सभी संभावित स्थितियों का विश्लेषण किया है जो गड़बड़ हो सकती हैं और हमने उसे रोकने की तैयारी की है।’

अपना चंद्रयान-2 चार साल पहले 22 जुलाई 2019 को लॉन्च हुआ था और 6 सितंबर को उसके लैंडर को चांद की सतह पर उतरना था। लैंडिंग के बाद लैंडर के भीतर से रोवर प्रज्ञान को बाहर निकलना था और वो एक चंद्रदिवस यानी पृथ्वी के 14 दिन-रात तक चांद की सतह पर चलता और वैज्ञानिक अध्ययन करता। लेकिन वो हो न सका। 7 सितंबर को तड़के पौने 3 बजे के करीब लैंडर की क्रैश लैंडिंग हो गई।

इसरो चीफ एस. सोमनाथ ने बताया कि चंद्रयान-2 मिशन के दौरान 3 बड़ी गलतियां हुई थीं। उन्हें इस बार सुधारा गया है। उन्होंने कहा, ‘पहली चुनौती ये थी कि लैंडर की स्पीड कम करने के लिए जो 5 इंजन लगाए गए थे, उन्होंने जरूरत से थोड़ा ज्यादा थ्रस्ट यानी दबाव पैदा किया।’ इस वजह से जब लैंडर को स्थिर होना चाहिए था ताकि वह तस्वीरें ले सके, वह अस्थिर हो गया।

दूसरी गड़बड़ी ट्रैजेक्टरी से जुड़ी थी। ज्यादा थ्रस्ट की वजह से ऐसी स्थितियां बनीं, जिन्हें समय रहते नियंत्रित नहीं किया जा सका। क्राफ्ट तेजी से मुड़ने लगा।

इसरो चीफ ने चंद्रयान-2 के दौरान तीसरी बड़ी गड़बड़ी लैंडिंग स्पॉट से जुड़ी बताया। उन्होंने बताया कि लैंडर चांद की सतह पर उतरने के लिए जगह की तलाश कर रहा था। लैंडिंग की जगह नहीं मिल रही थी जबकि लैंडर पहले ही चांद की सतह के बहुत करीब पहुंच चुका था। लैंडिंग स्पॉट 500 मीटर गुना 500 मीटर के क्षेत्रफल तक सीमित था और उसे खोजने के सिलसिले में क्राफ्ट अपनी रफ्तार बढ़ा रहा था। एस. सोमनाथ बताते हैं, ‘बहुत चैलेंजिंग स्थिति थी। एक तरफ तो लैंडिंग के लिए सही जगह की पहचान कर वहां पहुंचना था तो दूसरी तरफ धीमी रफ्तार को बरकरार भी रखना था।’ उन्होंने कहा कि चंद्रयान-3 में इस गलती को सुधारा गया है। इसरो चीफ ने बताया कि इस बार लैंडिंग साइट के लिए 500×500 मीटर के छोटे पैच के बजाय 4.3 किमी x 2.5 किमी के बड़े इलाके को टारगेट किया जाएगा।

इसके अलावा ईंधन की क्षमता भी बढ़ाई जाएगी ताकि अगर लैंडर को लैंडिंग स्पॉट ढूंढने में मुश्किल हो तो वह किसी वैकल्पिक लैंडिंग साइट तक पहुंच जाए। इसमें ईंधन की कमी जैसी बाधा न आए।

चंद्रयान-3 के साथ भी देसी लैंडर जाएगा। उसके भीतर रोवर रहेगा। लैंडर चांद की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग करेगा और उसके बाद रोवर को तैनात करेगा। रोवर चांद की सतह पर मौजूद केमिकल और तत्वों का अध्ययन करेगा।

इसरो चीफ ने बताया कि इस मिशन से एक अन्य चंद्रयान मिशन की बुनियाद पड़ेगी जिसके डीटेल के बारे में बाद में ऐलान किया जाएगा। उन्होंने कहा कि चंद्रयान-3 के बाद इसरो जापान के साथ मिलकर नए मून मिशन पर काम करेगा। उन्होंने बताया कि अगले मून मिशन के लिए इसरो की जापान ऐरोस्पेस एक्सप्लोरेशन एजेंसी (JAXA) के साथ बातचीत चल रही है, जल्द ही इसके बारे में जानकारी दी जाएगी।

भारत ने 2008 में चंद्रयान-1 मिशन लॉन्च किया था। उस मिशन में चांद पर उतरना शामिल नहीं था। चंद्रयान-1 ने चांद की सतह पर पानी की मौजूदगी के सबूत ढूंढे थे। उसके बाद 22 जुलाई 2019 को चंद्रयान-2 मिशन लॉन्च हुआ। 47 दिनों की यात्रा के बाद चंद्रयान-2 के साथ गया लैंडर चांद की सतह पर लैंडिंग करने वाला था लेकिन सॉफ्टवेयर में गड़बड़ी की वजह से ऐन वक्त पर उसकी क्रैश लैंडिंग हो गई थी और ग्राउंड स्टेशन से उसका संपर्क टूट गया था।