नई दिल्ली : अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की नई नीतियों से दुनियाभर के देशों के माथे पर बल पड़ने लगा है। अमेरिका की यूएस एजेंसी फॉर इंटरनेशनल डेवलपमेंट (यूएसएआईडी) के जरिए की गई सख्ती की जद में भारत आ सकता है। ट्रंप की नीतियों के चलते भारत में चल रही अपनी तमाम सहायता परियोजनाओं को अस्थायी रूप से रोक दिया है। इस फैसले के बाद उन संगठनों में हलचल मच गई है, जो अमेरिकी फंडिंग के सहारे सामाजिक और विकास कार्यों को अंजाम दे रहे थे।
टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, सबसे ज्यादा मार स्वास्थ्य क्षेत्र पर पड़ने की आशंका है। अब तक यूएसएआईडी के पैसों से जमीनी स्तर पर स्वास्थ्य सेवाओं को तकनीकी सहयोग मिलता रहा है। इसके अलावा, शिक्षा, लैंगिक समानता और जलवायु परिवर्तन से जुड़े कई अहम प्रोजेक्ट भी इस रोक से प्रभावित हो सकते हैं। हालांकि, भारत में यूएसएआईडी का दायरा सीमित है, लेकिन ग्लोबल लेवल पर विदेशी सहायता में कटौती का असर भारतीय एनजीओ पर भी साफ दिखने लगा है।
यूएसएआईडी ने अपने साझेदार संगठनों और सरकार के साथ मिलकर काम करने वाली संस्थाओं को खर्च को न्यूनतम रखने के निर्देश दिए हैं। साफ कहा गया है कि जब तक समझौता अधिकारी यूएसएआईडी की तरफ से लिखित मंजूरी नहीं मिलती, तब तक परियोजनाओं को फिर से शुरू नहीं किया जा सकता।” सूत्रों की मानें तो 90 दिनों की समीक्षा अवधि तय की गई है। यानी यह रोक पूरी तरह से स्थायी नहीं है, लेकिन इस अनिश्चितता की वजह से विकास कार्यों में लगी संस्थाएं घबराई हुई हैं।
एक एनजीओ कार्यकर्ता ने मशहूर अखबर को नाम न बताने की शर्त पर कहा कि उनकी संस्था को अन्य स्रोतों से भी फंडिंग मिल रही है, इसलिए फिलहाल उनका काम बाधित नहीं हुआ है। मगर कई ऐसी संस्थाएं हैं, जिनके लिए यह रोक भारी साबित हो सकती है।
यूएसएआईडी की वेबसाइट के मुताबिक, जनवरी 2021 तक यह एजेंसी भारत में छह राज्यों में मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य कार्यक्रमों को सहयोग दे रही थी। इसके अलावा, स्वच्छ पेयजल, सैनिटेशन और हाइजीन से जुड़े प्रोजेक्ट्स में भी इसका योगदान रहा है। साथ ही, राज्य सरकारों और निजी एजेंसियों के साथ मिलकर लैंगिक हिंसा रोकने और दिव्यांगों के सशक्तिकरण से जुड़े कामों को भी फंडिंग मिल रही थी। अब जब इन प्रोजेक्ट्स पर यूएसएआईडी की मदद बंद हो रही है, तो कई संगठनों को अपना काम धीमा या बंद करना पड़ सकता है।
विकास कार्यों के जानकारों का कहना है कि भारत में विदेशी फंडिंग पहले ही काफी कम हो गई है। खासतौर पर विदेशी अंशदान विनियमन अधिनियम (FCRA) के नए नियमों के चलते स्थानीय एनजीओ को विदेशी धन जुटाने में पहले से ही दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है।
स्वैच्छिक संगठनों के नेटवर्क ‘वॉलंटरी एक्शन नेटवर्क इंडिया’ के सीईओ हर्ष जैतली ने बताया कि यह संकट सिर्फ यूएसएआईडी तक सीमित नहीं है। स्वीडन, जर्मनी और यूके जैसे कई देशों की एजेंसियां भी अलग-अलग देशों में सहायता राशि में कटौती कर रही हैं। हालांकि, छोटे एनजीओ पर इस रोक का सीधा असर कम पड़ सकता है, क्योंकि यूएसएआईडी मुख्य रूप से बड़ी परियोजनाओं जैसे टीबी उन्मूलन और जल एवं स्वच्छता कार्यक्रमों को ही फंड करता है।
डोनाल्ड ट्रंप के प्रशासन ने कई देशों के लिए विदेशी मदद के दरवाजे बंद करने शुरू कर दिए हैं। अब इस लिस्ट में भारत का नाम भी शामिल हो सकता है। यह अमेरिका की नई वैश्विक रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है, जिसमें विकासशील देशों को दी जाने वाली सहायता को कड़ी समीक्षा के बाद मंजूरी दी जाएगी।