हर साल करवाचौथ मनाया जाता है. हिंदू धर्म में इस व्रत को बेहद महत्वपूर्ण समझा जाता है. अनेक महिलाएं इस दिन अपने पति की लंबी आयु के लिए निर्जला व्रत रखती हैं. माना जाता है कि सावित्री अपने पति को मृत्यु के मुंह से निकाल लाई थी और तभी से इस दिन को मनाने की शुरूआत हुई है. बता दें कि इस साल करवाचौथ 13 अक्टूबर के दिन पड़ रहा है. इस दिन खास संयोग बनता हुआ भी माना जा रहा है.
13 अक्टूबर की शाम को शाम 6 बजकर 41 मिनट तक कृतिका नक्षत्र माना जा रहा है जिसके बाद रोहिनी नक्षत्र आरंभ होगा. इसके साथ ही ज्योतिषनुसार करवाचौथ के दिन चंद्र देव वृष राशि में संचार करेंगे. इस गोचर और रोहिणी नक्षत्र के संयोग को ही करवाचौथ के दिन बेहद शुभ माना जा रहा है जो व्रत रखने वाली सुहागिनों के लिए भी अच्छा साबित होगा.
13 अक्टूबर के दिन 5 बजकर 54 मिनट से 7 बजकर 9 मिनट तक का समय करवाचौथ पूजा के लिए शुभ माना जा रहा है. इसके बाद चंद्रोदय होने पर महिलाएं पति के साथ पूजा करके अपना व्रत तोड़ पाएंगी.
करवाचौथ की शुरूआत महिलाओं के सुबह उठकर निवृत्त होने से होती है. कई महिलाएं पिछली रात 12 बजे के बाद से ही कुछ खाती-पीती नहीं हैं. सुबह के समय ही लौटे में जल और करवे में गेंहू भरकर रखा जाता है. इसके बाद महिलाएं इकट्ठा होकर करवाचौथ व्रत की कथा सुनती हैं और साथ ही हाथ में चावल लेकर बैठती हैं जिसे बाद में पूजा करते समय अर्क के लिए इस्तेमाल किया जाता है. आखिर में चांद निकलने के बाद पूजा करके, चांद को और फिर पति को देखा जाता है और फिर पति के हाथ से पानी पीकर व्रत तोड़ा जाता है.