ईरान / इस्राइल : इस वक्त ईरान और इस्राइल आमने-सामने हैं। दोनों देशों के बीच बढ़ा तनाव दुनिया में एक और युद्ध की आहट दे रहा है। इस्राइली हवाई हमले में हिजबुल्ला प्रमुख हसन नसरल्ला की मौत के बाद ईरान ने इस्राइल के सैन्य ठिकानों पर मिसाइलें दागी हैं।
इस वक्त ईरान और इस्राइल आमने-सामने हैं। दोनों देशों के बीच बढ़ा तनाव दुनिया में एक और मोर्चे पर संघर्ष की आहट दे रहा है। 27 सितंबर को इस्राइली हमले में हिजबुल्ला प्रमुख हसन नसरल्ला की मौत के बाद ईरान ने इस्राइल के प्रमुख सैन्य ठिकानों पर 180 से अधिक बैलेस्टिक मिसाइलें दागी हैं। वहीं ईरानी मिसाइल हमले के बाद इस्राइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने ईरान को कड़ी चेतावनी दी है। यरुशलम में सुरक्षा कैबिनेट की बैठक में प्रधानमंत्री नेतन्याहू ने कहा कि ईरान ने एक बड़ी गलती की है और उसे इसकी कीमत चुकानी पड़ेगी।
इससे पहले इसी साल अप्रैल में सीरिया में ईरानी दूतावास पर हुए हमले के बाद ईरान ने इस्राइल पर हवाई हमले किए थे। ईरान ने उस वक्त इस्राइल पर 330 मिसाइलें दागी थीं। इस दौरान ड्रोन हमले भी किए गए थे।
अब नए हमले के बाद इस्राइल भी ईरान पर जवाबी कार्रवाई की चेतवानी दे रहा है। उधर ईरान के राष्ट्रपति मसूद पेजेशकियन ने इस हमले को जायज ठहराया है। पेजेशकियन ने चेतवानी देते हुए कहा कि ईरान किसी भी खतरे के खिलाफ मजबूती से खड़ा है। इस्राइल ईरान के साथ संघर्ष में न पड़ें। इससे संकेत मिल रहा है कि क्रिया-प्रतिक्रिया का सिलसिला जल्द थमने वाला नहीं है। आज ईरान और इस्राइल भले ही आमने-सामने हैं लेकिन ये कभी दोस्त हुआ करते थे। रिश्तों में खटास की वजह ईरान की क्रांति को माना जाता है।
आइये जानते हैं कि ईरान और इस्राइल के शुरुआती रिश्ते कैसे थे? रिश्तों में खटास कब से आनी शुरु हुई? मित्र देशों के बीच दुश्मनी क्यों बढ़ी? ईरानी क्रांति की भूमिका क्या रही है? अब क्या हालात हैं?
पिछले 27 सितंबर को इस्राइली सेना ने हिजबुल्ला के प्रमुख हसन नसरल्ला को मार गिराया। गाजा और लेबनान पर भीषण हमलों के बीच इस्राइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने 27 सितंबर को ही संयुक्त राष्ट्र महासभा में अपना वार्षिक भाषण भी दिया। इस दौरान उन्होंने दो नक्शे भी दिखाए। नेतन्याहू के दाहिने हाथ में जो नक्शा था उसमें ईरान, इराक, सीरिया और यमन को काले रंग में रंगा गया था और इसे ‘अभिशाप’ बताया गया था। इसी तरह उनके बाएं हाथ वाले नक्शे मेंं मिस्र, सूडान, सऊदी अरब और यहां तक कि भारत को भी हरे रंग में दिखाया गया था। इस पर इन देशों को नेतन्याहू ने ‘वरदान’ बताया था।
हिजबुल्ला प्रमुख नसरल्ला की मौत के बाद एक बार फिर ईरान ने इस्राइल पर हमले की चेतावनी दी। इसके बाद ईरान ने इस्राइल पर बड़ा हमला करते हुए मंगलवार रात उसके प्रमुख सैन्य ठिकानों पर 180 से अधिक बैलेस्टिक मिसाइलें दागीं। धमाकों के बीच पूरे देश में अलर्ट घोषित कर दिया गया और चेतावनी के सायरन बजने लगे। सरकार ने मोबाइल फोन और टीवी पर संदेश देकर लोगों से बम शेल्टर में जाने के लिए कहा। कम से कम तीन मिसाइलों को तेल अवीव और यरूशलम पर गिरते देखा गया, हालांकि हमले में नुकसान की जानकारी नहीं मिल पाई है। ईरान ने कहा कि उसने हिजबुल्ला और हमास नेता की हत्या का बदला लेने के लिए इस्राइल पर दर्जनों मिसाइलें दागीं।
ईरान और इस्राइल रिश्तों की शुरुआत साल 1948 से होती है। दरअसल, 1948 में दुनिया के नक्शे में इस्राइल नाम के देश का जन्म होता है। इस्राइल की स्थापना के बाद उसे मान्यता देने वाला ईरान तुर्की के बाद दूसरा मुस्लिम-बहुल देश था। उस वक्त ईरान में पहलवी राजवंश का शासन था। इस राजवंश ने आधी सदी से अधिक समय तक शासन किया गया था। पहलवी राजवंश अमेरिका का समर्थक था जबकि इस्राइल अमेरिका का समर्थन करता था।
दिलचस्प है कि आज जिस फलस्तीन के साथ ईरान खड़ा है उस फलस्तीन ने ईरान द्वारा इस्राइल को दी गई मान्यता को ‘नकबा’ यानी तबाही बताया था। फलस्तीन ने इसे तबाही की एक मौन अंतर्राष्ट्रीय स्वीकृति के रूप में देखा। यह सब 1948 में इस्राइल बनने के समय 7,00,000 से अधिक फलस्तीनियों की जबरन बेदखली और विस्थापन की वजह से हो रहा था।
देश बनने के बाद इस्राइल गैर-अरब राष्ट्रों के साथ संबंध स्थापित करने में तत्पर था। आगे बढ़ते हुए इस्राइल ने ईरान की राजधानी तेहरान में एक दूतावास की स्थापना की। दोनों ने एक दूसरे के यहां अपने राजदूत नियुक्त किए। व्यापारिक संबंध भी बढ़े और जल्द ही ईरान इस्राइल के लिए तेल आपूर्ति का प्रमुख स्त्रोत बन गया। दोनों ने 1968 में एक पाइपलाइन शुरु की जिसका उद्देश्य ईरान के तेल को इस्राइल और फिर यूरोप भेजना था।
दोनों देशों के बीच संबंधों में खटास कैसे आई?
अब वक्त आता है ईरान में इस्लामी क्रांति का और यहीं से शुरु होती है इस्राइल और ईरान की अदावत। ईरान की 1979 में हुई इस्लामी क्रांति ने दोनों देशों के बीच संबंधों में खटास ला दी। शिया उलेमा अयातुल्ला रुहोल्लाह खोमैनी ने ईरान की सत्ता से शाह मोहम्मद रजा पहलवी को बेदखल कर दिया।
इसके साथ एक नए इस्लामी गणतंत्र ईरान का जन्म हुआ और सत्ता पर क्रांति के नेता अयातुल्ला रुहोल्ला खोमैनी आ गए। ईरान के नए सर्वोच्च नेता खोमैनी ने उस वक्त विश्व शक्तियों को ‘अहंकारी’ करार दिया और उनके खिलाफत की नीति अपनाई। खोमैनी ने विश्व शक्तियों के क्षेत्रीय सहयोगियों के खिलाफ खड़े होने का एलान जिसे वह मानते थे कि ये अपने हितों को साधने के लिए फलस्तीनियों सहित दूसरों पर अत्याचार करेंगे।
नई ईरानी सत्ता ने अमेरिका को ईरान में ‘महान शैतान’ और इस्राइल को ‘छोटा शैतान’ की संज्ञा दे दी। क्रांति के बाद ईरान ने इस्राइल के साथ सभी संबंध तोड़ दिए। नागरिक अब यात्रा नहीं कर सकते थे और उड़ान सेवा रद्द कर दी गई और तेहरान में इस्राइली दूतावास को फलस्तीनी दूतावास में बदल दिया गया।
खोमैनी ने रमजान के हर आखिरी शुक्रवार को ‘कुद्स दिवस’ के रूप में घोषित किया। तब से पूरे ईरान में फलस्तीनियों के समर्थन में उस दिन बड़ी रैलियां आयोजित की जाती रही हैं। दरअसल, जेरूसलम को अरबी भाषा में अल-कुद्स कहा जाता है।
इस तरह से दशकों के दौरान दुश्मनी बढ़ती गई। इस बीच दोनों पक्षों ने पूरे क्षेत्र में अपनी शक्ति और प्रभाव को मजबूत करने और बढ़ाने की भी कोशिश की। बाद में दोनों देशों के संबंध और खराब होते गए क्योंकि इस्राइल ने आरोप लगाया कि ईरान ने सीरिया, इराक, लेबनान और यमन में राजनीतिक और सशस्त्र समूह खड़े किए और उन्हें आर्थिक मदद दी।
ईरान पर आरोप लगता रहा है कि यह लेबनान, सीरिया, इराक और यमन सहित पूरे क्षेत्र के कई देशों में प्रॉक्सी नेटवर्क का समर्थन करता है। इस समूह को ‘प्रतिरोध की धुरी’ के रूप में जाना जाता है जो फलस्तीनी मुद्दे का समर्थन करने के साथ-साथ इस्राइल को एक प्रमुख दुश्मन मानते हैं। ये सशस्त्र समूह इस्राइल के साथ-साथ अमेरिकी सेना को भी निशाना बनाते हैं। इनमें से मुख्य है लेबनान में मौजूद हिजबुल्ला, जिसका गठन 1982 में दक्षिणी लेबनान में इस्राइली कब्जे से लड़ने के लिए किया गया था। पिछले कुछ वर्षों में ईरान और इस्राइल के बीच प्रॉक्सी युद्ध बढ़ता गया।
अक्तूबर 2023 में हमास और इस्राइल के बीच युद्ध शुरु हुआ। इसके बाद से हिजबुल्ला उत्तरी इस्राइल में रॉकेट से हमले कर रहा है। ईरान सशस्त्र हमास का भी समर्थन करता है, जिसने 7 अक्तूबर 2023 को दक्षिणी इस्राइल पर हमला किया था। वहीं मध्य पूर्व में ईरान ने यमन में हूती विद्रोहियों को भी सहायता प्रदान की है। इस समूह ने लाल सागर पर इस्राइली रिसॉर्ट शहर इलियट पर बैलिस्टिक मिसाइलें दागी हैं और शिपिंग जहाजों पर हमला किया है।
इस साल विवाद 1 अप्रैल को सीरिया में ईरानी दूतावास पर हुए हमले से उत्पन्न हुआ। दरअसल, इस्राइल का आरोप है कि ईरान लेबनान में हिजबुल्ला को मिसाइलें और अन्य हथियार भेजने के लिए सीरियाई क्षेत्र का उपयोग करता है। वहीं इस्राइल ने हथियारों की आवाजाही को रोकने के लिए सीरिया में कई हवाई हमले किए हैं। इसी कड़ी में 1 अप्रैल 2024 को युद्धक विमानों से सीरियाई राजधानी दमिश्क में ईरानी वाणिज्य दूतावास पर हमला किया गया था। हमले में ईरानी रिवोल्यूशनरी गार्ड्स कॉर्प्स (आईआरजीसी) के अल-कुद्स बल के एक वरिष्ठ कमांडर सहित कम से कम 11 लोगों की मौत हो गई। ये सभी दमिश्क दूतावास परिसर में एक बैठक में भाग ले रहे थे। हमले का आरोप इस्राइल पर लगाया गया, जिसने इसकी जिम्मेदारी नहीं ली थी।
वहीं इसके जवाब में ईरान ने 14 अप्रैल को इस्राइल पर 330 मिसाइलों से हमला किया। इस दौरान ड्रोन हमले भी किए गए। इस हमले को ईरान ने ऑपरेशन ट्रू प्रॉमिस नाम दिया था। इस हमले को इस्राइल-हमास युद्ध के परिणाम के रूप में देखा गया और यह ईरान द्वारा इस्राइल पर उसके प्रॉक्सी संघर्ष की शुरुआत के बाद से पहला सीधा हमला था। इस्राइल ने कहा कि 99 प्रतिशत हथियारों को नष्ट कर दिया और उसे कोई नुकसान नहीं हुआ।