गोरखपुर. टीबी की दवा बीच में छोड़ना खतरनाक है. पूरा कोर्स करना जरूरी है, तभी टीबी से मुक्ति मिल सकती है. टीबी रोगियों को इलाज में काफी सतर्कता बरतने की जरूरत है. इन रोगियों के लिए सरकारी अस्पतालों में निशुल्क उपचार की सुविधा है. ऐसे में डाक्टरों की सलाह है कि बीच में दवा न छोड़ें, पूरा कोर्स करना जरूरी है. डॉक्टर का कहना है कि मरीज एक महीने की दवा खाने के बाद स्वस्थ महसूस करने लगते हैं और ऐसे में कई मरीज दवा बीच में छोड़ देते हैं. बीच में दवा छोड़ देने से वे ड्रग रेसिस्टेंट टीबी के शिकार बन जाते हैं, जिनका उपचार मुश्किल हो जाता है.
डॉक्टर गणेश यादव ने बताया कि विश्व के 27 प्रतिशत टीबी रोगी भारत में और देश के 20 प्रतिशत उत्तर प्रदेश में हैं. शासन ने विशेष अभियान चलाने का दिशा-निर्देश दिया है. दो अप्रैल से शुरू हो रहे विशेष संचारी रोग नियंत्रण अभियान और 15 अप्रैल से प्रस्तावित दस्तक पखवाड़ा में भी टीबी रोगी खोजे जाएंगे. इस बीमारी के प्रति लोगों को जागरूक किया जाएगा. सरकार वर्ष 2025 तक टीबी उन्मूलन के लिए प्रतिबद्ध है. प्रत्येक ढाई लाख से पांच लाख की आबादी पर एक टीबी यूनिट है.
50 हजार से एक लाख की आबादी पर एक डायग्नोस्टिक सेंटर बनाया गया है. टीबी की समस्त जांचें और दवाएं राजकीय चिकित्सालयों में निशुल्क मिलती हैं. दो सप्ताह से अधिक की खांसी टीबी हो सकती है, मगर प्रत्येक खांसी टीबी नहीं होती है. अगर यह दिक्कत है तो टीबी की जांच अवश्य कराएं. शरीर में टीबी फेफड़ों को ही प्रभावित करती है. लेकिन शरीर के अन्य अंगों में भी टीबी होती है. नाखून और बाल छोड़कर शरीर के सभी अंगों की टीबी रिपोर्टेड है.
डॉक्टर गणेश यादव डीटीओ गोरखपुर ने बताया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2025 तक भारत को टीवी मुक्त बनाने का संकल्प लिया है. जिसके लिए विभिन्न कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं. प्रत्येक घर में जाकर टीम लोगों को प्रेरित करती है. रोग के लक्षण दिखने पर उनकी जांच कराई जाती है. अधिकतर प्रोटीन की कमी से ही टीवी रोग होता है. जिसके लिए सरकार द्वारा मरीजों को 500 रुपए महीने दिया जाते हैं, जब तक उनका इलाज चलता है. मरीजों का पूरा ख्याल रखा जाता है और मरीजों की अन्य जांच भी कराई जाती है की उनको कोई दिक्कत न हो.