नई दिल्ली. क्या फैमिली प्लान करने के बारे में सोचते ही आपको आपके ऑफिस के टारगेट, इन्क्रीमेंट और प्रमोशन की चिंता सताने लगती है? क्या प्रोफेशनल फ्रंट पर पिछड़ने के डर से आप अभी तक बेबी प्लान करने या शादी करने की हिम्मत नहीं जुटा पाईं हैं? या क्या बहुत कोशिश के बावजूद आप बेबी प्लान नहीं कर पा रहीं हैं? तो इन समस्याओं से जूझने वाली आप अकेली नहीं हैं। आप जैसी लाखों महिलाएं भारत में प्रोफेशनल बर्डन के कारण मानसिक और यौन स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का सामना कर रहीं हैं।
विश्व बैंक के आंकड़ों के अनुसार , COVID-19 के प्रकोप के बाद से, 2022 में भारत में महिला रोजगार में 9% की गिरावट आई है। महिलाओं के लिए तनाव बढ़ाने वाले कई कारणों में से एक यह भी है।
जैसे-जैसे काम का तनाव बढ़ता है, महिलाओं के यौन स्वास्थ्य पर इसका प्रभाव गंभीर रूप से बढ़ जाता है। पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम, एंडोमेट्रियोसिस जैसे विकार कामकाजी महिलाओं में बांझपन का कारण बनते हैं।
हाल के केंद्रीय बजट के आंकड़ों के अनुसार, 51.44% महिलाओं में रोजगार की योग्यता है। जबकि कॉरपोरेट्स मातृत्व कवरेज, पीरियड लीव्स आदि में वृद्धि के साथ महिला रोजगार को बढ़ावा देने और प्रोत्साहित करने के लिए कई उपाय अपना रहे हैं।
एनसीबीआई ने 2018 में “कामकाजी महिलाओं के प्रजनन और यौन स्वास्थ्य” पर एक रिपोर्ट जारी की है। जिसमें कंपनियों से महिलाओं के स्वास्थ्य के अनकहे पहलुओं पर ध्यान देने का आग्रह किया गया है। इस रिपोर्ट के अनुसार सर्वेक्षण में शामिल 52% महिलाओं का कहना है कि वे काम के साथ अपनी हेल्थ मैनेज करने के लिए संघर्ष करती हैं।