मुजफ्फरनगर। भाजपा और रालोद के बीच गठबंधन का नाता करीब पांच दशक पुराना है। साल 1977 में जनसंघ के नेता पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई जनता पार्टी का हिस्सा बने थे। यूपी में भाजपा और रालोद ने साल 2002 का विधानसभा और 2009 का लोकसभा चुनाव साथ मिलकर लड़ा। चौथी बार दोनों दल फिर करीब आए हैं।
इमरजेंसी के बाद किसान मसीहा चौधरी चरण सिंह के नेतृत्व में जनता पार्टी का गठन किया गया। तब जनसंघ भी जनता पार्टी का हिस्सा बना था और भारतीय किसान दल के सिंबल पर दिवंगत प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई चुनाव जीते थे। लेकिन इसके बाद दोनों दलों की राह जुदा हो गई।
जनसंघ से भाजपा बनीं और भारतीय किसान दल से रालोद का गठन हुआ। साल 2002 में भाजपा-रालोद का यूपी विधानसभा के चुनाव में गठबंधन हुआ। रालोद ने अपने हिस्से में आई सभी 14 सीटों पर जीत दर्ज की। लेकिन चुनाव के बाद दोनों दलों की राह फिर अलग हो गई। लेकिन 2009 के लोकसभा चुनाव में फिर गठबंधन हुआ। भाजपा ने रालोद को सात सीटें दी थी, जिनमें पांच पर रालोद ने जीत दर्ज की। केंद्र में कांग्रेस की सरकार बनीं और करीब ढाई साल बाद रालोद भी सरकार का हिस्सा बन गया। चौधरी अजित सिंह को केंद्रीय उड्डयन मंत्री बनाया गया था।
भाजपा से गठबंधन में रालोद ने 2009 में पांच सीटें जीत ली थी। बागपत से अजित सिंह, बिजनौर से संजय चौहान, मथुरा से जयंत सिंह, हाथरस सुरक्षित सीट से सारिका बघेल, अमरोहा से देवेंद्र नागपाल सांसद चुने गए थे। जबकि नगीना से मुंशीराम पाल और मुजफ्फरनगर से अनुराधा चौधरी चुनाव हार गई थीं।
साल 2013 में मुजफ्फरनगर दंगा हुआ और 2014 में लोकसभा चुनाव। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा नई ताकत बनकर उभरी। चुनाव से पहले रालोद ने भाजपा के साथ गठबंधन में जाने से इन्कार कर दिया था। असल में दंगे के बाद दिवंगत अजित सिंह ने कांग्रेस सरकार से केंद्र में जाटों को आरक्षण दिलाने का दांव चला था। आरक्षण मिला और उन्होंने कांग्रेस के साथ रहकर ही चुनाव लड़ा। लेकिन 2014 और 2019 में रालोद को एक भी सीट नहीं मिली। 2017 के विधानसभा चुनाव में सिर्फ छपरौली में सहेंद्र सिंह रमाला जीते थे। राज्यसभा चुनाव में क्रॉस वोटिंग के मामले में उन्हें भी रालोद से हटा दिया गया था।
रालोद ने 2022 के विधानसभा चुनाव में दमखम दिखाया। सपा के साथ गठबंधन में पश्चिम यूपी की नौ सीटों पर जीत दर्ज की। इनमें मुजफ्फरनगर जिले में मिली सियासी कामयाबी को बेहद अहम माना गया। सदर सीट को छोड़कर चार सीटों पर वर्तमान में रालोद के विधायक हैं और एक सीट पर सपा से पंकज मलिक चुनाव जीते थे। इससे रालोद अध्यक्ष जयंत सिंह का सियासी कद बढ़ा। हालांकि 2022 में भी उनके रालोद में जाने की चर्चा तेज हुई थी।