नई दिल्ली. बीते कुछ दिनों से अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी सुर्खियों में है। मामला उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया के घर पर पड़े सीबीआई से जुड़ा छापे है। दरअसल, दिल्ली की नई शराब नीति में हुए घोटाले पर बवाल हो रहा। भाजपा केजरीवाल और आप पर निशाना साध रही है। वहीं, आप इसे दिल्ली के शिक्षा मॉडल पर हमला बता रही है।
इसके साथ ही आप नेता दावा कर रहे हैं कि 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव में भाजपा का मुकाबला आम आदमी पार्टी से होगा। चर्चा ये भी होने लगी है कि क्या गुजरात चुनाव से पहले आम आदमी पार्टी पूरे देश में कांग्रेस का विकल्प बनने की कोशिश कर रही है?
क्या ये दिल्ली-पंजाब की तरह अन्य राज्यों से भी कांग्रेस को खत्म करने की कोशिश है? क्या भाजपा के कांग्रेस मुक्त अभियान को आप आगे बढ़ा रही है? आइए इसे विशेषज्ञों से समझने की कोशिश करते हैं…
कांग्रेस देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी है। अभी लोकसभा में उसके 53, राज्यसभा में 31 सदस्य हैं। देशभर में कांग्रेस के 692 विधायक और 43 एमएलसी हैं। वहीं, आम आदमी पार्टी अपने जन्म के बाद महज 10 साल में दो राज्यों में सरकार बन चुकी है। कई राज्यों में उसकी मजबूत दावेदारी है। अभी आप के 10 राज्यसभा सांसद हैं। 156 विधायक हैं।’
राजनीति विज्ञान के प्रोफेसर डॉ. अजय सिंह कहते हैं, ‘जहां भी कांग्रेस सत्ता में रही है, वहां आम आदमी पार्टी की मजबूत विकल्प के तौर पर उभरी है। दिल्ली, पंजाब इसके उदाहरण हैं। गुजरात, हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश, उत्तराखंड जैसे राज्यों में कांग्रेस की सीधी लड़ाई भाजपा से होती है। यहां भी आम आदमी पार्टी ने खुद का तेजी से विस्तार करना शुरू किया। उत्तराखंड में आप को सफलता नहीं मिली, लेकिन पूरे चुनाव में आप की चर्चा खूब रही। अब केजरीवाल की नजर हिमाचल प्रदेश और गुजरात पर है। यहां भी आप ने कांग्रेस को किनारे करके मुख्य लड़ाई आप और भाजपा के बीच में करने की कोशिश शुरू कर दी है।’
इसे समझने के लिए हमने वरिष्ठ पत्रकार प्रमोद कुमार सिंह से बात की। उन्होंने तीन बिंदुओं में बताया कि आखिर क्यों आम आदमी पार्टी का बढ़ना कांग्रेस के लिए खत्म होने का संकेत है।
1. पंजाब में आप ने कांग्रेस से छीनी सत्ता : पंजाब में भारतीय जनता पार्टी की स्थिति पहले भी ज्यादा अच्छी नहीं थी। यहां की क्षेत्रीय पार्टी शिरोमणि अकाली दल भी कुछ खास नहीं कर पाई। आम आदमी पार्टी ही यहां कांग्रेस का विकल्प बनी। वह भी ऐसी कि कांग्रेस पूरी तरह से साफ ही हो गई। इस बार चुनाव में पंजाब की 117 में से 92 सीटों पर आम आदमी पार्टी ने कब्जा जमाया, जबकि कांग्रेस 77 से 18 पर आकर सिमट गई। भाजपा को दो और शिरोमणिक अकाली दल को तीन सीटों पर जीत मिली। 2017 में पंजाब में आम आदमी पार्टी को 20 सीट पर जीत मिली थी। ये आंकड़े साफ बता रहे हैं कि कैसे अरविंद केजरीवाल ने पंजाब में कांग्रेस को साफ कर दिया।
2. गोवा-मध्य प्रदेश में चला झाडू़: गोवा-मध्य प्रदेश में भी आम आदमी पार्टी मजबूत होती दिखी। गोवा में पहली बार आम आदमी पार्टी के दो विधायक चुनाव जीते। इनमें एक सीट पर 2017 में कांग्रेस जबकि दूसरे पर एनसीपी की जीत हुई थी। मतलब ये दोनों सीटों पर गैर भाजपाई दलों को नुकसान हुआ। गोवा की करीब 25 ऐसी सीटें थीं, जहां आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस का ही वोट काटा। इसका फायदा भाजपा को मिल गया।
वहीं, मध्य प्रदेश की बात करें तो यहां पहली बार आम आदमी पार्टी का मेयर बना है। सिंगरौली में आप प्रत्याशी रानी अग्रवाल ने भाजपा के उम्मीदवार को हराया। रानी भाजपा की नेता रह चुकी हैं। हालांकि, जब ओवरऑल आंकड़ों को देखते हैं तो यहां भी आम आदमी पार्टी ने करीब 60 से ज्यादा वार्डों में कांग्रेस का खेल बिगाड़ा।
बुरहानपुर, खंडवा और उज्जैन में मेयर सीट पर भाजपा की जीत हुई। इन तीनों सीटों पर भी आम आदमी पार्टी और एआईएमआईएम की वजह से ही कांग्रेस की हार हुई। बुरहानपुर में एआईएमआईएम प्रत्याशी को 10 हजार से ज्यादा वोट मिले। इसी तरह उज्जैन में भाजपा उम्मीदवार केवल 736 वोटों से जीती।
3. जहां कांग्रेस लड़ाई में, वहां आप की एंट्री : आमतौर पर कई राज्यों में कांग्रेस को आसानी से मुस्लिम वोटर्स का साथ मिल जाता है। अब एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी और अरविंद केजरीवाल इसी को तोड़ने में जुटे हैं। जहां-जहां कांग्रेस का सीधा मुकाबला भाजपा से है, वहां आम आदमी पार्टी की एंट्री होती है। ऐसी स्थिति में भाजपा की तरफ से भी कांग्रेस को छोड़कर आम आदमी पार्टी पर ही निशाना साधा जाता है। मतलब कुल मिलाकर कांग्रेस को लड़ाई से ही गायब कर दिया जाता है।