नई दिल्ली. फ्लाइट से लेकर बस तक में इमरजेंसी गेट बनाए जाते हैं. लेकिन आज हम केवल हवाई जहाज के इमरजेंसी गेट की बात कर रहे हैं कि हवाई जहाज में आखिरी इमरजेंसी गेट क्यों बनाए जाते हैं वो तो हवा में ही रहता है. दरअसल इमरजेंसी गेट लगाने का मकसद किसी भी आपात स्थिति में ज्यादा से ज्यादा और जल्दी सहायता मिल सके इसलिए बनाए जाते हैं. प्लेन के खाई में गिरने, क्रैश-लैंडिंग, आग लगने, केबिन में धुआं भर जाने, या कोई अन्य घटना जिसमें पैसेंजर और केबिन क्रू की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए तत्काल निकासी की जरूरत हो सकती है, के लिए होता है.
अगर कोई आपात स्थिति बन जाती है तो ऐसे में प्लेन के इमरजेंसी गेट खोलने के लिए खास इंस्ट्रक्शन दिए जाते हैं. जिसके बाद उन्हें खोला जाता है. एक प्लेन में कितने इमरजेंसी गेट हों यह तय उस प्लेन की क्षमता के हिसाब से तय किया जाता है. दरअसल हवाई जहाज बनाने वाली कंपनियों को यह सुनिश्चित करना होता है कि किसी आपात स्थिति में प्लेन को 90 सेकेंड में खाली कराया जा सके. उसी के हिसाब से इमरजेंसी गेटों की संख्या और जगह तय की जाती है.
पैसेंजर या केबिन क्रू द्वारा हवा में ऐसा करना असंभव है. ऐसा इसलिए है क्योंकि इंसान के पास दबाव वाले केबिन में दरवाजे को जबरदस्त वायु दबाव को दूर करने की ताकत नहीं है. ऊंचाई पर, जहां बाहर की हवा पतली होती है और इसमें कम ऑक्सीजन होती है, विमान के केबिनों को समुद्र तल से लगभग 8,000 फीट की ऊंचाई पर मौजूद स्थितियों के लिए दबाव डाला जाता है, ताकि यात्री सामान्य रूप से सांस ले सकें. दरवाजों को इलेक्ट्रिक या मैकेनिकल कुंडी की एक सीरीज द्वारा सुरक्षित रखा जाता है.