इंदौर। आम धारणा है कि पुरुषों के मुकाबले महिलाओं को हृदयरोग या हृदयाघात जैसी समस्या बहुत कम होती है। यह पूरी तरह से सच नहीं है। यह जरूर है कि महिलाओं को पुरुषों की अपेक्षा 10 वर्ष बाद हृदयरोग होते हैं। इसके कई कारण हैं। भारतीय महिलाएं पुरुषों की अपेक्षा शारीरिक श्रम अधिक करती हैं इसलिए उन्हें यह परेशानी जल्दी नहीं होती। मुख्य वजह यह भी है कि मासिक धर्म के दौरान एस्ट्रोजन हार्मोन स्रावित होता है। यह हार्मोन धमनियों में कोलेस्ट्राल को अपेक्षाकृत कम जमा होने देता है।
रजोनिवृत्ति के बाद यह हार्मोन स्रावित होना बंद हो जाता है। इसलिए पुरुष की तुलना में महिलाओं को हृदय रोग एक दशक बाद होता है। वर्तमान में युवा भी हृदय रोग की चपेट में आ रहे हैं। भारत में बीते एक-डेढ़ दशक में यह समस्या बढ़ी है और इसकी बड़ी वजह शहरीकरण भी है। यह बात वरिष्ठ हृदय रोग विशेषज्ञ व एमडी मेडिसिन डा. एडी भटनागर ने बुधवार को नईदुनिया के हेलो डाक्टर कार्यक्रम में पाठकों से कही।
‘कैसे रखें दिल की सेहत का ख्याल’ विषय पर हुए कार्यक्रम में पाठकों के प्रश्नों के उत्तर देते हुए डा. भटनागर ने बताया कि अक्सर लोग चिकित्सकीय परामर्श लिए बिना ही दवाई लेना या तो शुरू कर देते हैं या अपनी दवाई बंद कर देते हैं। यह दोनों ही स्थिति सेहत के लिए हानिकारक है। रोग पहले भी होता था लेकिन वर्तमान में जागरूकता और सुविधाएं बढ़ने से ऐसे मामले ज्यादा सामने आने लगे हैं।
अक्सर देखा गया है कि हार्ट अटैक आने पर दर्द बाएं हाथ या पीठ में भी दर्द होता है। अमूमन छाती के बीच में दर्द होना ही हार्ट अटैक की पहचान है लेकिन बहुत अधिक ठंड होने पर, ज्यादा श्रम करने पर, भोजन के दौरान या तनाव अधिक लेने पर दर्द हाथ और पीठ में भी होने लगता है। कई बार दर्द गर्दन और दाएं हाथ की ओर भी होता है, इसलिए इन लक्षणों को पहचान तुरंत जांच कराएं।