सहारनपुर. पश्चिमी यूपी में सूअरों की मौत होने से पश्चिमी यूपी में अफ्रीकन स्वाइन फ्लू की आशंका जाहिर की जा रही है। ऐसा इसलिए, क्योंकि देश के कई राज्यों में ये बीमारी सूअरों को अपनी चपेट में ले चुकी है। पश्चिमी यूपी के मेरठ, सहारनपुर, मुजफ्फरनगर, शामली, बागपत, बुलन्दशहर सहित कई जिले प्रभावित हैं।
एक महीने के अंदर करीब 510 सूअरों की मौत हो चुकी है। सहारनपुर मंडल में ही 100 से ज्यादा सूअरों की मौत हो चुकी है। पशुपालन विभाग ने सूअरों को शव को पोस्टमार्टम के लिए भेजा है। ताकि बीमारी का पता लगाया जा सके।
पशुपालक अजय का कहना है की शुरुआत मे सूअरों की मौत हमें सामान्य प्रतीत हुई लेकिन जब आंकड़ा दिन पर दिन बढ़ता गया तो आभास हुआ कोई बहन बीमारी फैल गई है। अजय का कहना है कि अभी तक इस बीमारी से जेल चुंगी क्षेत्र में करीब 50 से 60 सूअर फेंके जा चुके हैं।
सूअर पालक बीमारी से मरने वाले सूअरों के शव को ढमोला नदी में फेंक रहे हैं। जिससे आसपास के मोहल्लों में रहने वाले लोगों को परेशानी हो रही है। सुअरों के मौत को लेकर मुख्य पशु चिकित्सा अधिकारी डॉ. आरके सक्सेना ने 3 डॉक्टरों की टीम गठित की है। रिपोर्ट आने के बाद ही मौत के कारणों का पता चल सकेगा।
मुख्य पशु चिकित्सा अधिकारी डॉ. आरके सक्सेना का कहना है कि पशुपालकों ने जो लक्षण बताए हैं, उसमें अफ्रीकन स्वाइन फ्लू नहीं दिखाई दे रहा है। क्योंकि अफ्रीकन स्वाइन फ्लू से सूअर की नाक बहना, बुखार रहना, सांस लेने में परेशानियां जैसी समस्याएं आती है।
पशु पालकों का कहना है कि सूअरों की मौत अचानक से हुई जा रही है।
यूपी ही नहीं देश के कई राज्यों में अफ्रीकन स्वाइन फ्लू का खतरा बढ़ता जा रहा है। यह बीमारी खासकर सूअरो में पाई जाती है। इस बीमारी के कारण सूअर तंदुरुस्त दिखाई देता है। नजला जुकाम और बुखार के साथ ही सूअर दम तोड़ देता है।
यह एक संक्रामक और खतरनाक पशु रोग है, जो घरेलू और जंगली सूअरों को संक्रमित करता है। इसके संक्रमण से सूकर एक प्रकार के तीव्र बुखार से पीड़ित होते हैं। इस बुखार का अभी तक कोई इलाज नहीं है। इसके संक्रमण को फैलने से रोकने का एकमात्र तरीका जानवरों को मारना है। वहीं जो लोग इस बीमारी से ग्रसित सूअरों के मांस का सेवन करते हैं, उनमें तेज बुखार, अवसाद सहित कई गंभीर समस्याएं शुरू हो जाती हैं।
इस बीमारी को पहली बार 1920 के दशक में अफ्रीका में देखा गया था। इस रोग में मृत्यु दर 100 प्रतिशत के करीब होती है और इस बुखार का अभी तक कोई इलाज नहीं है। इसके संक्रमण को फैलने से रोकने का एकमात्र तरीका जानवरों को मारना है। वहीं जो लोग इस बीमारी से ग्रसित सूअरों के मांस का सेवन करते हैं उनमें तेज बुखार, अवसाद सहित कई गंभीर समस्याएं शुरू हो जाती हैं। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक 25 मई 2022 को जारी पशुपालन और पशु चिकित्सा विभाग के आंकड़ों से पता चला है कि मार्च, 2021 से इस बीमारी के कारण 37, 000 से अधिक सूअरों की मौत हो गई है।