नई दिल्ली. मानसून आते-आते फलों के बागों में कीड़े और बीमारी लगने की चिंता बढ़ जाती है. ऐसे में किसान भी प्रबंधन कार्य तेजी से करने लगते हैं, ताकि फलों का उत्पादन प्रभावित न हो. खासकर बारिश का मौसम अमरूद के बागों के लिये बड़ी मुसीबत लेकर आता है.
इस दौरान अमरूद के पेड़ की टहनियां और फलों में फफूंदी रोगों की समस्या बढ़ जाती है, जिसके कारण पत्तियां काली-भूरी, पेड़ की टहनियों पर धब्बे और फल भी सड़ने लगते हैं. समय पर इसका समाधान न किया जाये तो बागों में नुकसान की संभावना काफी बढ़ जाती है.
जाहिर है कि बारिश के मौसम में अमरूद के पेड़ से नई पत्तियां निकलती हैं. ये पत्तियां काफी छोटी, कोमल और कमजोर होती हैं. यही कारण है कि फफूंदी रोग की संभावना बढ़ने पर सबसे पहले इन पत्तियों पर ही काले-भूरे रंग के धब्बे बन जाते हैं. इस कारण पत्तियां कमजोर होकर गिर जाती है और संक्रमण डालियों तक फैल जाता है.
इस रोग के कारण पेड़ की टहनियां भी सूख जाती हैं और फल-फूल देना बंद कर देती हैं.
इस रोग के कारण टहनियों पर खिली कलियां और फूल भी कमजोर हो जाते हैं और पेड़ से नीचे गिरने लगते हैं.
टहनियों पर लगे फलों के ऊपर भी छोटे-छोटे काले धब्बे पड़ जाते हैं, जिससे फलों के अंदर सड़न पैदा हो जाती है.
इस रोग के कारण फलों का उत्पादन बुरी तरह प्रभावित होता है और फल बिकने लायक नहीं रहते.
अकसर ये समस्या फलों के बाग में जल भराव और नमी बने रहने के कारण ज्यादा बढ़ जाती है.
कोलेटोट्राईकम/ एन्थ्रेक्नोज नामक फफूंदी रोग की रोकथाम के लिये पहले से ही प्रबंधन कार्य और निगरानी बढ़ा देनी चाहिये, जिससे शुरुआती लक्षण दिखने पर ही समाधान किया जा सके. इस तरह अमरूद के बागों में अधिक नुकसान से बच सकते हैं.
मानसून की शुरुआत में ही बागों में जल निकासी का प्रबंध करना चाहिये, जिससे पेड़ की जड़ों में पानी का जमाव ना हो.
जल भराव के कारण ही अमरूद के बागों में बीमारियों की संभावना बढ़ जाती है, इसलिये बागों से पानी बाहर निकालने के लिये नालियां बनायें.
पेड़ की सूखी टहनियों और पत्तियों पर काले-भूरे धब्बे दिखते ही रोगग्रस्त हिस्से को चाकू या सिकेटियर से काटकर अलग कर दें.
टहनी पर कटाई-छंटाई की जगह पर कॉपर ऑक्सीक्लोराइड का गाढ़ा पेस्ट लगा देना चाहिये.
अमरूद के बाग में फफूंद रोग के नियंत्रण के लिये 2 मिली हेक्साकोनाजोल या प्रोपिकोनाजोल नामक सिस्टमिक फफूंदनाशक दवा प्रति लीटर पानी मे घोलकर पेड़ों पर छिड़काव भी कर सकते हैं.
रोगनाशी दवा का पहला छिड़काव फूल लगने के 15 दिन के अंदर और फल लगते समय दूसरी छिड़काव करने पर फफूंदी रोगों की संभावना काफी कम हो जाती है.