मुरादाबाद। पुलिस ट्रेनिंग स्कूल में इन दिनों 889 महिला दरोगा प्रशिक्षणरत हैं। इन बेटियों ने खाकी वर्दी पहनने का सपना देखा। कई चरण की परीक्षा पूरी करने के बाद इन्होंने यह मुकाम पाया। इन दिनों यह ट्रेनिंग स्कूल में भी कड़े प्रशिक्षण के दौर से गुजर रही हैं। एक हफ्ते बाद पासिंग आउट परेड होने पर यह बेटियां प्रदेश के अलग-अलग जनपदों में पुलिसिंग का हिस्सा होंगी।
इन बेटियों ने सपना देखा खाकी वर्दी पहनने का। सपने को पूरा करने के लिए जी-तोड़ मेहनत की और कठिन परीक्षाओं के दौर से गुजरीं। ये बेटियां अब पुलिस ट्रेनिंग स्कूल के उपनिरीक्षक (दरोगा) प्रशिक्षण कार्यक्रम का हिस्सा हैं। खास बात यह है कि वर्दी पहनने से पहले के संघर्ष के बाद अब ट्रेनिंग स्कूल में भी कड़े प्रशिक्षण के दौर से गुजर रही हैं। मुरादाबाद के पुलिस ट्रेनिंग स्कूल में इस समय 889 महिला दरोगा प्रशिक्षणरत हैं। महज एक हफ्ते बाद पासिंग आउट परेड होने पर ये बेटियां प्रदेश के अलग-अलग जनपदों में पुलिसिंग का हिस्सा होंगी।
312 दिन की ट्रेनिंग में बेटियों को करीब 2184 किमी की दौड़ लगानी होती है। इसके साथ ही कई और कठिन प्रशिक्षण की प्रक्रियाओं से गुजरने के अलावा आधुनिक दौर के अपराध से जुड़ी कठिन पढ़ाई भी करती हैं। अड़ियल घोड़े की पीठ पर सवारी करने के साथ-साथ अत्याधुनिक हथियारों से निशाना भी दागना होता है। इसके साथ-साथ आतंकी घटनाओं जैसे हालात से निपटने के लिए कमांडो की विशेष ट्रेनिंग भी इन बेटियों को दी जाती है। जंगल में बिना हथियार के छिपना और अपराधियों पर प्रहार करने के गुर भी इसी विशेष प्रशिक्षण का हिस्सा हैं।
कुल 312 दिन की ट्रेंनिग में बेटियों को सुबह शाम मिलाकर सात किमी दौड़ लगानी होती है। इस हिसाब से 312 दिन में 2184 किमी होते हैं। ऐसे ही रोजाना पांच मीटर रस्सी चढ़नी और उतरनी होती है। ये दो बार करना होता है। जो ट्रेनिंग में कुल 1248 मीटर होती है। वहीं तीन मीटर की दीवार दोनों तरफ से फांदनी होती है। जो कुल 624 मीटर होती है। इसके अलावा 30 मीटर के गड्ढों को रस्सी के सहारे दोनों तरफ से पार करनी होती है। जो एक दिन में 60 मीटर होता है। जबकि 312 दिन में 18720 मीटर होता है।
ट्रेनिंग में प्रशिक्षुओं को आईपीसी, सीआरपीसी, भारतीय संविधान, मानवाधिकार, भारतीय साक्ष्य अधिनियम, विवेचना परीक्षण, विधि विज्ञान, साइबर अपराध, कंप्यूटर साइंस, प्रयोगात्मक अध्ययन, भीड़ प्रबंधन, मेला प्रबंधन, आउटडोर में कमांड लीडरशिप, भीड़ नियंत्रण, छेद करना, फील्ड क्राफ्ट और रणनीति, घुड़सवारी प्रशिक्षण, बम निरोधक एवं विस्फोटक, वाहन चलाना, तैरना, फायरिंग, ग्रेनेड फेंकना, किसी भवन में आतंकी घुसे हैं तो उस भवन को कैसे कवर करें, सर्च आॅपरेशन, रेस्क्यू, तत्काल कार्रवाई, मेला ड्यूटी, यातायात प्रबंधन, वीआईपी ड्यूटी, बाधाएं पार करना, रस्सा चढ़ना आदि सिखाया जाता है।
पीटीएस की डीएसपी ज्योति यादव ने बताया कि इंडोर और आउट डोर की ट्रेनिंग के दौरान प्रशिक्षुओं को कोई तनाव न हो। इसके लिए योगा कराया जाता है। टीम भावना के लिए खेल प्रतियोगिताएं भी आयोजित कराई जाती हैं। जिसमें क्रिकेट, फुटबॉल समेत अन्य तरह के खेलों का आयोजन भी कराया जाता है। जिससे प्रशिक्षुओं में टीम भावना बनी रहे।
चूल्हा, चौका तक सीमित रहने वाली महिलाएं अब पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रही हैं। पहले जब पुलिस विभाग में रिक्तियां निकलती थीं तो महिलाओं के लिए निर्धारित पद खाली ही रह जाते थे। पदों के बराबर महिलाएं आवेदन ही नहीं कर पाती थीं, लेकिन अब महिलाओं में जबरदस्त प्रतिस्पर्धा दिख रही है। यह हमारे बदलते समाज की सोच की वजह से ही संभव है। – अनु तोमर, ट्रेनर, पीटीएस
महिलाएं जीवन जीने की कला सिखाती हैं। उनके द्वारा कठिनाइयों में भी अपने परिवार को संभालने की शक्ति, समर्पण, सहनशीलता का कोई मुकाबला नहीं कर सकता है। महिलाओं का किसी भी तरह उत्पीड़न न हो, इसके लिए उन्हें कानून में विशेष अधिकार भी दिए गए हैं। आवश्यकता है कि महिलाएं अपने अधिकारों के प्रति जागरूक हों। -नीरज गहलोत, ट्रेनर, पीटीएस
मैंने कई ऐसी महिलाओं को देखा है कि आज के समय में भी ससुराल में पीड़ित हैं और शर्म की वजह से किसी को बताना नहीं चाहती हैं। इसलिए मुझे लगता है कि उन्हें जागरूक करना चाहिए कि वह अपनी आवाज उठा सकें। उन्हें हर वक्त समाज क्या कहेगा, यह डर सताता है। उन्हें काउंसिलिंग की जरूरत है। इसी दिशा में आगे आकर काम अधिक करना पड़ेगा। -महिमा चौधरी, ट्रेनर, पीटीएस