पाकिस्तानी| पाकिस्तानी सेना ने बीबीसी संवाददाता शुमायला जाफ़री से उनके निधन की पुष्टि की है और कहा है कि जनरल परवेज़ मुशर्रफ़ के निधन पर दुख है.
पाकिस्तानी सेना ने “अल्लाह उनकी आत्मा को शांति दे और उनके परिवार को इस सदमे को बर्दाश्त करने की ताकत दे.”
समाचार एजेंसी रॉयटर्स ने ख़बर दी है कि 79 साल के मुशर्रफ़ का लंबी बीमारी के बाद दुबई के एक अस्पताल में देहांत हुआ.
बीते साल ये ख़बर आई थी कि उन्हें एमीलॉयडोसिस नाम एक जटिल बीमारी है. इस बीमारी में इंसान के शरीर के अंग निष्क्रिय होने लगते हैं.
ब्रिटेन के स्वास्थ्य विभाग (एनएचएस) के अनुसार, एमीलॉयडोसिस एक बीमारी है जो इंसान के शरीर में एक प्रकार के प्रोटीन की वृद्धि के कारण होती है जिसे अमीलॉयड कहा जाता है.
विशेषज्ञों के मुताबिक़ इस प्रोटीन की अधिक मात्रा इंसान के शरीर के लिए हानिकारक है और इससे अंग काम करना बंद कर सकते हैं.
उनके परिवार ने कहा था कि वो पाकिस्तान आना तो चाहते हैं लेकिन पाकिस्तान में इसकी दवा मिलना मुश्किल होता है. पाक प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ ने जनरल परवेज़ मुशर्रफ़ के निधन पर दुख जताया है.
सोशल मीडिया पर उन्होंने लिखा है, “मेरी संवेदनाएं जनरल परवेज़ मुशर्रफ़ के परिवार के साथ हैं. अल्लाह उनकी आत्मा को शांति दे.”
राष्ट्रपति आरिफ़ अल्वी ने भी पूर्व पाक राष्ट्रपति के निधन पर शोक जताया है और कहा है कि दुख की इस घड़ी में उनके परिवार को अल्लाह ताक़त दे.
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परवेज़ मुशर्रफ़ का जन्म 11 अगस्त 1943 को अविभाजित भारत की पुरानी दिल्ली में हुआ था. विभाजन के बाद वो 1947 में पाकिस्तान के कराची चले गए थे.
मुशर्रफ़ के पिता सैय्यद मुशर्रफ़ राजनयिक थे. वो 1949-56 तक तुर्की में रहे और 1964 में उन्होंने सेना ज्वाइन कर ली. उन्होंने क्वेटा में आर्मी कमांड एंड स्टाफ़ कॉलेज से ग्रेजुएशन की थी. उन्होंने लंदन के रॉयल कॉलेज ऑफ़ डिफेंस स्टडीज़ से भी पढ़ाई की थी.
उन्होंने आर्टिलरी, इंफेंट्री और कमांडों यूनिट्स में कई पदों पर काम किया. वो भारत के ख़िलाफ़ 1965 और 1971 की लड़ाई में भी शामिल थे. 1965 में युद्ध में हिस्सा लेने के लिए उन्हें गैलेन्टरी अवॉर्ड से नवाज़ा गया था. वहीं 1971 में उन्होंने एक कमांडो कंपनी का नेतृत्व किया था.
परवेज़ मुशर्रफ वर्ष 1999 में तख़्तापलट के बाद उन्होंने खुद को पाकिस्तान का चीफ़ एक्ज़ीक्यूटिव घोषित कर दिया. उन्होंने बहुदलीय राजनीतिक व्यवस्था और संविधान को निलंबित कर दिया था. इसके बाद साल 2002 में वो राष्ट्रपति पद के लिए हुए जनमत संग्रह के बाद राष्ट्रपति बने थे और अक्टूबर 2007 में फिर से राष्ट्रपति चुने गए थे.
लेकिन, उनके सत्ता से हटने पर पाकिस्तान में बड़े स्तर पर विरोध प्रदर्शन हुए थे. इसके बाद साल 2008 में वो पाकिस्तान छोड़ लंदन चले गए थे.
परवेज़ मुशर्रफ़ साल 2013 के आम चुनाव के लिए फिर से पाकिस्तान लौटे थे लेकिन उन्हें चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य घोषित कर दिया गया. उन्हें साल 2017 में भगोड़ा घोषित कर दिया गया था.
परवेज़ मुशर्रफ़: सेना प्रमुख बनने से लेकर तख़्तापलट और फिर पाकिस्तान छोड़ने तक का सफ़र
नवाज़ शरीफ़ और परवेज़ मुशर्रफ़
उन पर पूर्व राष्ट्रपति बेनज़ीर भुट्टो की हत्या में कथित तौर पर हाथ होने का आरोप था. उन्हें आपातकाल लगाने और संविधान निलंबित करने के लिए दिसंबर 2019 में मौत की सज़ा भी सुनाई गई थी.
उनके ख़िलाफ़ गंभीर देशद्रोह का मामला चलाया गया था. इस पर खुद मुशर्रफ़ का कहना था कि “यह मामला मेरे विचार में पूरी तरह से निराधार है. देशद्रोह की बात छोड़ें, मैंने तो इस देश की बहुत सेवा की, युद्ध लड़े हैं और दस साल तक देश की सेवा की है.”