सोनीपत। रवि दहिया को अंतरराष्ट्रीय पहलवान बनाने के पीछे उनके पिता का लंबा संघर्ष है। दिल्ली के छत्रसाल स्टेडियम में कुश्ती के गुर सीख रहा बेटा कहीं कमजोर न पड़ जाए, इसलिए पिता राकेश दहिया रोजाना गांव से 70 किलोमीटर की दूरी तय कर उसे दूध-मक्खन पहुंचाते रहे और उसकी सभी जरूरतों को पूरा करते रहे।
राकेश दहिया खुद ही पहलवान रहे हैं। वे राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्वर्ण पदक हासिल करना चाहते थे, किंतु घर के आर्थिक हालात अच्छे न होने के कारण वे घर का गुजर-बसर करने में जुट गए। भले ही वे कुश्ती से दूर हो गए हों लेकिन उनके अंदर का खिलाड़ी हमेशा जीवित रहा। उन्होंने अपने सपने को पूरा करने के लिए बेटों को कुश्ती के लिए प्रेरित किया। पिता की मेहनत व उनके संघर्ष को आज बेटे ने न सिर्फ सफल किया, बल्कि उन्हें एक ऐसा तोहफा दिया, जिसका वे युवावस्था से इंतजार कर रहे थे।
पहलवान रवि दहिया के पिता राकेश दहिया के पास खुद की चार बीघे जमीन है। वहीं, वह 20 एकड़ जमीन पट्टे पर लेकर खेती करते हैं और परिवार का पालन पोषण करते हैं। बेटे की तैयारियों पर किसी प्रकार का असर न पड़े, इसलिए राकेश ने रवि को इस बात का कभी अहसास नहीं होने दिया कि घर की आर्थिक स्थिति बेहद नाजुक है।
रवि दहिया मैट पर कुश्ती लड़े और जीते, इसके लिए उनके पिता राकेश दहिया ने असल जीवन में लड़ते हुए आर्थिक हालात व हर मुश्किल को हराया है।
खेतों में काम करने वाले राकेश दहिया रोजाना नाहरी से 70 किलोमीटर दूर दिल्ली के छत्रसाल स्टेडियम में बेटे के लिए दूध व मक्खन लेकर जाते थे। वे रोजाना सुबह 3ः30 बजे उठ जाते और पांच किलोमीटर पैदल चलकर रेलवे स्टेशन पहुंचते। आजादपुर स्टेशन पर उतरकर दो किलोमीटर का रास्ता फिर पैदल तय कर छत्रसाल स्टेडियम में पहुंचते थे। उनकी इस दिनचर्या ने लाडले को विश्व पटल पर चमका दिया।