यह इसलिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में मुजफ्फरनगर सीट से बीजेपी प्रत्याशी डॉ. संजीव बालियान ने आरएलडी प्रमुख चौधरी अजित सिंह को हराया था। वहीं, 2014 के लोकसभा चुनाव में भी वह भारी बहुत से विजयी हुए थे। इसी वजह से एनडीए की केंद्र में सरकार बनने पर डॉ. संजीव बालियान को मंत्री भी बनाया गया। अब जब आरएलडी के एनडीए में शामिल होने की प्रबल संभावना है और सीटों के बंटवारे को भी लेकर लगभग बहुत बातें तय हो चुकी हैं, उसमें मुजफ्फरनगर सीट आरएलडी को दिए जाने की उम्मीद है।
राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि यदि मुजफ्फरनगर सीट आरएलडी को मिली तो डॉ. संजीव बालियान कहां जाएंगे? राज्यसभा या दूसरी लोकसभा सीट पर। यह भी उम्मीद है कि पार्टी उन्हें बिजनौर भेज सकती है। हालांकि बिजनौर से भाजपा का टिकट पाने के कई दावेदार मैदान में ताल ठोंक चुके हैं और काफी दिनों से तैयारी कर रहे हैं। इनमें भाजपा प्रदेश उपाध्यक्ष मोहित बेनीवाल, पूर्व विधायक उमेश मलिक, मौसम चौधरी और पूर्व मंत्री अनुराधा चौधरी भी प्रयासरत हैं।
इसलिए महत्वपूर्ण है मुजफ्फरनगर
इसी सीट पर सपा-आरएलडी में शुरू हुई अनबन
सपा-आरएलडी गठबंधन ने पंद्रह दिन पहले ही लोकसभा चुनाव में सीटों के बंटवारे का गणित तैयार कर लिया था। उसमें आरएलडी को सात सीटें देने पर सहमति बनी थी, लेकिन कैराना, मुजफ्फरनगर और बिजनौर सीट पर सपा अपने प्रत्याशी देकर आरएलडी के सिंबल पर चुनाव लड़वाना चाहती है। इनमें मुजफ्फरनगर से सपा राष्ट्रीय महासचिव हरेंद्र मलिक को लड़ाने की बात थी, जबकि आरएलडी खेमा तैयार नहीं था। बिजनौर सीट पर भी ऐसा ही पेंच था। यहीं से दोनों पार्टियों में अनबन शुरू हो गई थी। यही स्थिति कैराना लोकसभा सीट पर बनी, क्योंकि यहां से सपा इकरा हसन को लड़ाने की इच्छुक है तो आरएलडी में टिकट की आस लगाए बैठे पूर्व सांसद अमीर आलम के पुत्र नवाजिश आलम असहज हो गए थे।