गोरखपुर. वैसे तो उत्तर प्रदेश को चावल का कटोरा कहा जाता है. यहां पर विभिन्न किस्म के चावल का उत्पादन होता है. साथ ही अलग-अलग जनपदों में विभिन्न प्रकार के चावल का उत्पादन किया जाता है. लेकिन आज हम आपको ऐसे चावल के बारे में बताने जा रहे हैं जिसे सुनकर लोगों के मन में उसे खाने की नहीं देखने की इच्छा सबसे पहले जागृत होती है. क्योंकि इसका नाम ही कुछ ऐसा है. जी हां हम बात कर रहे हैं काला नमक चावल की जो कि यूपी के गोरखपुर मंडल सहित आसपास के मंडल में काफी प्रसिद्ध है. लेकिन लोगों की जागरूकता के अभाव में यह प्रायः विलुप्त होता चला जा रहा है.
इसकी ख्याति को पुनः वापस लाने के लिए अंतर्राष्ट्रीय कृषि वैज्ञानिक डॉ राम चेत चौधरी लगातार प्रयासरत हैं. उन्होंने इस पर एक पुस्तक भी लिखी है. जिसमें उन्होंने काला नमक की प्रजातियों और उसके इतिहास के बारे में जानकारी दी है. उनके द्वारा लिखी गई यह किताब देश ही नहीं विदेशों की पहली ऐसी किताब होगी. जिसमें काला नमक चावल के बारे में विस्तार पूर्वक जिक्र किया गया है. अभी तक इस तरह की कोई भी किताब न लिखी गई है ना ही प्रकाशित हुई है.
इस पुस्तक में उन्होंने काला नमक चावल के इतिहास के बारे में और उसके पर जातियों के साथ ही इसे खाने से होने वाले लाभ के बारे में विस्तार पूर्वक जिक्र किया है. डॉ राम चेत काला नमक चावल पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कई देशों में काम कर चुके हैं. लेकिन भारत में विलुप्त हो रही इस प्रजाति को लेकर वह काफी चिंतित थे. तो इसी को लेकर उन्होंने भारतीयों को जागरूक करने के उद्देश्य से काला नमक चावल पर पुस्तक लिखी. जिसमें उन्होंने विस्तार पूर्वक अपने रिसर्च के बारे में और चावल से होने वाले लाभ एवं उसकी प्रजातियों का भी वर्णन किया है.
अंतर्राष्ट्रीय कृषि वैज्ञानिक डॉ रामचेत चौधरी ने बताया कि विलुप्त हो रहे काला नमक चावल पर हमने लोगों को जागरूक करने के उद्देश्य से एक पुस्तक लिखी है. जिसका नाम स्टोरी ऑफ काला नमक राइस है. इस पुस्तक में उन्होंने काला नमक चावल के बारे में विस्तार पूर्वक जानकारी दी है की इसको खाने से क्या लाभ है और इसका इतिहास क्या है. काला नमक चावल पर पुस्तक लिखने के लिए प्रदेश के राज्यपाल आनंदीबेन पटेल द्वारा हमें प्रोत्साहित भी किया जा चुका है.