आगरा. समाजवादी पार्टी के संरक्षक मुलायम सिंह यादव काे आखिर अपने गढ़ में बेटे अखिलेश यादव के लिए समर्थन मांगने क्यों आना पड़ा। यह सवाल जिले में बहुतों के मन में चल रहा है। भाजपा भी इसे अपनी ताकत बढ़ने से जोड़कर उछाल रही है। हकीकत में गढ़ कहे जाने वाले इस जिले, विशेषकर करहल में मुकाबला कड़ा हो चुका है। सरकार बनाने की उम्मीद लगाने वाली सपा एक-एक सीट जीतना चाहती है, उससे भी ज्यादा मैनपुरी में वर्चस्व को बरकरार रखना चाहती है। माना जा रहा है इन दो लक्ष्यों के चलते ही मुलायम सिंह को मैदान में उतारने का दांव खेला गया। सपा को आशंका है कि यदि मैनपुरी में उसका दबदबा कमजाेर हुआ तो इसका संदेश पूरे प्रदेश में जाएगा। पार्टी का मानना है मुलायम सिंह यादव के आने से करहल तो सधेगा ही अन्य सीटों पर भी सपा को बड़ा फायदा होगा। यही वजह है कि अखिलेश यादव भी पहले करहल में जनसभा कर चुके थे। गुरुवार को उन्होंने जिले की सभी सीटों पर फिर जनसभा की। जबकि संगठन और बड़े नेता पहले अखिलेश यादव से केवल नामांकन के लिए आने का अनुरोध कर रहे थे।
जीवन के 83 वसंत देख चुके हैं मुलायम
करहल में ही कुश्ती करने वाले मुलायम सिंह 83 वसंत देख चुके हैं और उम्र के इस पड़ाव का असर उनकी शारीरिक ऊर्जा पर साफ नजर आ रहा था। परंतु जब जिला महासचिव रामनाराण बाथम ने उनसे कुर्सी पर बैठकर ही संबोधन आग्रह किया तो जनता को पता चला कि जोश और जज्बा जवानी के दिनों का ही है। मुलायम सिंह ने अनुरोध को अस्वीकरा और संबोधन देने पोडियम पर पहुंच गए। बेटे सपा के राष्ट्रीय अखिलेश यादव के चुनावी रणक्षेत्र करहल में सियासी पहलवान मुलायम सिंह ने तीसरी लाइन में ही अपना दांव चल दिया। किसान, नौजवान और व्यापारी। अपने 11 मिनट के संबोधन में छह बार इसे दोहराया। वजह साफ थी। सपा के निशाने पर इन्हीं वर्गों के मतदाता है। इनके ही वर्तमान सरकार से नारागी की दुहाई दी जाती है।
जिसका नाम मुलायम है…
मुलायम सिंह का संबोधन समाप्त होने के बाद भीड़ नारे लगाने लगी, जिसका नाम मुलायम है, उसका जलवा कायम है। न मोदी, न योगी, न भाजपा। चुनावी सभाओं में अखिलेश यादव भले ही भाजपा और उसके नेताओं पर हमलावर हों, परंतु सियासी समझ महारथी मुलायम सिंह यादव ने अपने संबोधन में कोई सीधा हमला नहीं बोला। न भाजपा का नाम लिया, न प्रधानमंत्री मोदी का और न ही योगी आदित्यनाथ का।