नई दिल्ली. मनुष्य जीवन के प्रमुख संस्कार में से एक है विवाह संस्कार। इसके बिना संतति पैदा करना और वंश बढ़ाना संभव नहीं है। ज्योतिष शास्त्र के लगभग सभी ग्रंथों में विवाह को लेकर कई सूत्र दिए गए हैं। आज इस लेख में हम समझने की कोशिश करेंगे की विवाह में देरी होने के कारण क्या हैं?
ज्योतिष में दूसरे भाव से कुटुम्ब का, पंचम से प्रेम और सप्तम से विवाह का विचार किया जाता है। इन तीनों भावों के स्वामी अगर बली होकर विराजमान हों तो विवाह में देरी नहीं होती और सुख भी मिलता है।
ग्रह की बात करें तो पुरुष के लिए शुक्र स्त्री का कारक है, वहीं स्त्री की कुंडली में गुरु पति का कारक है। मंगल स्त्री के लिए रक्त, सौभाग्य और गर्भ धारण के लिए देखा जाता है। अगर सप्तम, भाग्येश और दूसरे भाव में स्वामी पाप प्रभाव में हो तो कुटुंब सुख, विवाह और संतान सुख में देरी होगी और परिवार में कलह बनी रहती है।
इसके अलावा कुंडली के लग्न, चौथे, सप्तम, आठवें और बारहवें भाव में कमजोर मंगल हो तो मांगलिक दोष के कारण 28वें वर्ष तक विवाह नहीं होता है। वहीं कुंडली में अष्टम में मंगल या गुरु पाप पीड़ित हो तो वैधव्य योग भी बनता है। इसके लिए भगवान शालिग्राम और पीपल के पेड़ से पूजा का विधान है।
अब एक उदाहरण कुंडली से समझते हैं कि कैसे एक पुरुष का विवाह 30 वर्ष की अवस्था के बाद भी नहीं हो रहा है। जातक डॉक्टर है और बड़े परिवार से जुड़ा है। उसके बाद भी विवाह तय होने में सालों का समय लग रहा है। इस कर्क लग्न की कुंडली में कुटुंब भाव का स्वामी सूर्य चौथे भाव में अपनी नीच राशि में विराजमान है। भाग्येश गुरु भी नीच के सूर्य के साथ बैठकर कमजोर हो गए हैं। पुरुष की कुंडली में स्त्री सुख का कारक ग्रह शुक्र है। इस कुंडली में शुक्र तीसरे भाव में अपनी नीच राशि में विराजमान होकर स्त्री सुख में कमी कर रहा है। इस कर्क लग्न की कुंडली में शनि प्रबल कारक है और सप्तम भाव में ही विराजमान है। सप्तम में बैठे पाप ग्रह शनि पर केतु की दृष्टि है। जातक की कुंडली में नीच के सूर्य के साथ चौथे भाव में मंगल होने के कारण मांगलिक भी हो गया है। मंगल की सप्तम भाव पर दृष्टि से विवाह की संभावना न्यून है। अगर हम इस कुंडली को गौर से देखे तो दूसरे, नवें, सप्तम भाव के स्वामी और उन भाव पर पाप प्रभाव और शुक्र के नीच होने के कारण जातक का विवाह तय नहीं हो रहा है।
गुरु के कमजोर होने पर उसका व्रत, जाप, पूजन तो करें। साथ ही में सवा 5 रत्ती का पुखराज पहनें।
गुरुवार का व्रत करे और केले के पेड़ का पूजन करें।
सोमवार को शिवलिंग पर दूध से मिला जल लेकर शिव का रूद्र मंत्र से अभिषेक करें।
पुरुष जातक मंगलवार हनुमान जी का ध्यान करें और उन्हें 21 मंगलवार तक चोला चढ़ाएं।