नई दिल्ली. राष्ट्रपति चुनाव 2022 के परिणाम ने भारतीय राजनीति में एक नया इतिहास रच दिया है। एनडीए की उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू, भारी मतों के साथ देश की पहली आदिवासी और दूसरी महिला राष्ट्रपति चुनी गई हैं। द्रौपदी मुर्मू से पहले भी भाजपा दो आदिवासी नेताओं को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बना चुकी है। अगर भाजपा की रणनीति कामयाब हो जाती तो देश को 30 वर्ष पहले ही पहला आदिवासी राष्ट्रपति मिल जाता।
एनडीए की उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू ने गुरुवार को राष्ट्रपति चुनाव में 64 फीसद मत पाकर बड़े अंतर से जीत दर्ज की है। उन्हें कुल 540 सांसदों का वोट मिला है। वहीं विपक्ष के राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार यशवंत सिन्हा को केवल 208 सांसदों ने वोट दिया है। परिणाम बताते हैं कि विपक्ष के 17 सांसदों ने पार्टी लाइन से अलग जाकर द्रौपदी मुर्मू को वोट किया। वहीं, 13 राज्यों में विपक्षी दलों के 113 विधायकों ने यशवंत सिन्हा की जगह द्रौपदी मुर्मू के पक्ष में मतदान किया।
द्रौपदी मुर्मू से पहले आदिवासी नेता पीए संगमा भी राष्ट्रपति चुनाव में उम्मीदवार बन चुके हैं। मेघालय से आने वाले पीए संगमा को 2012 के राष्ट्रपति चुनाव में बीजद और एआइओडीएमके की तरफ से उम्मीदवार घोषित किया था, जिन्हें भाजपा का समर्थन प्राप्त था। इस चुनाव में राजग उम्मीदवार पीएम संगमा का मुकाबला यूपीए उम्मीदवार प्रणव मुखर्जी से था। इस चुनाव में पीए संगमा को हार का सामना करना पड़ा था। पीए संगमा को कुल 3,15,987 वोट वैल्यू (30.7 फीसद मत) प्राप्त हुए थे। वहीं प्रणव मुखर्जी को 7,13,763 वोट वैल्यू (69.3 फीसद मत) मिले थे। तब पीएम संगमा ने भविष्यवाणी की थी कि जल्द ही कोई आदिवासी देश का राष्ट्रपति बनेगा। द्रौपदी मुर्मू की जीत के साथ उनकी ये भविष्यवाणी महज एक चुनाव बाद ही सही साबित हो गई। हालांकि, इस ऐतिहासिक पल का साक्षी बनने के लिए पीएम संगमा और पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी दोनों अब इस दुनिया में नहीं हैं।
वर्ष 1992 के राष्ट्रपति चुनाव में भाजपा ने अपने सहयोगी दलों के साथ मिलकर जॉर्ज गिल्बर्ट स्वेल को उम्मीदवार बनाया था। राष्ट्रपति पद के लिए वह पहले आदिवासी उम्मीदवार थे। स्वेल और संगमा दोनों मेघालय राज्य से आते थे। तब केंद्र में कांग्रेस नेतृत्व वाली यूपीए सरकार थी और भाजपा विपक्ष में थी। इस चुनाव में यूपीए की तरफ से शंकर दयाल शर्मा राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार थे। इस चुनाव में जॉर्ज गिल्बर्ट स्वेल को 3,46,485 वोट वैल्यू प्राप्त हुए थे, जबकि शंकर दयाल शर्मा को 6,75,864 वोट वैल्यू हासिल हुए थे। स्वेल अगर इस चुनाव में जीत जाते तो देश को 30 वर्ष पूर्व ही पहला आदिवासी राष्ट्रपति मिल चुका होता।