लखनऊ। पंडित बृज नारायण चकबस्त की रामायण की उन पंक्तियों से अपनी बात को आगे बढ़ाया, जब वनवास जाने से पहले श्रीराम अंतिम बार अपने माता-पिता से मिलने पहुंचे थे। उन्होंने रुखसत हुआ वो बाप से लेकर खुदा का नाम, राहे वफा की मंजिलें-अव्वल हुई तमाम उन्होंने कहा कि सभी धार्मिक किताबें मोहब्बत का पैगाम देती हैं लेकिन धर्म के ठेकेदारों ने धर्म में मिलावट कर लोगों को गुमराह किया है।अपनी सौतेली मां को दिए पिता के वचन को निभाने के लिये श्रीराम ने ऐश-ओ-आराम की जिंदगी छोड़कर तकलीफों से भरी जिंदगी बिताने को बेझिझक 14 साल के वनवास को अपना लिया।
उन्होंने पैगाम दे दिया कि दुनिया में मां-बाप से बढ़कर दूसरा कोई नहीं होता। हमें श्रीराम से मां-बाप की आज्ञा का पालन करना सीखना चाहिए। ये कहते-कहते वेद, पुराण और कुरान की आयतों की समानता के जरिये मोहब्बत का पैगाम देने वाले मौलाना वहीदुल्लाह अंसारी चतुर्वेदी भावुक हो गए