लखनऊ। जेल में रहकर भाजपा विधायक कृष्णानंद राय की हत्या कराने का दुस्साहस करने वाले माफिया मुख्तार अंसारी से तमाम बड़े अफसर भी खौफ खाते थे। जेल में रहने के बावजूद उसकी डीजीपी मुख्यालय में सीधी एंट्री होती थी। मऊ दंगे में मुख्तार जब खुली जीप पर असलहा लेकर निकला तो पूरे देश की नजरें उस पर टिक गईं। इससे पहले किसी दंगे में कोई अपराधी इतनी हिम्मत नहीं जुटा सका था। हालांकि मुख्तार कहता रहा कि वह लोगों को शांत कराने गया था।
एक समय ऐसा भी आया कि मुख्तार के सियासी संरक्षक के तौर पर रहे मुलायम सिंह यादव भी मुख्तार से नाराज हो गए। वाकया 2006 में मऊ दंगा से जुड़ा है। दंगा शांत होने के बाद जब झाड़ियों में कुछ दूध की केन पड़े मिले तो पता चला कि दंगे में मरने वालों में सबसे अधिक संख्या यादवों की है। यह खबर मुलायम के पास पहुंची तो वह नाराज हो गए और तभी से मुख्तार से दूरी बना ली। इसके बाद ही मुख्तार मायावती के संपर्क में आया। अलबत्ता मुलायम के निधन के बाद अंसारी परिवार फिर से सपा के नजदीक पहुंच गया।
सपा और बसपा जैसे दलों की नजर में मुख्तार की छवि ‘रॉबिनहुड’ की हो गई। लेकिन, मुख्तार को यह तगमा बसपा सुप्रीमो मायावती ने सरेआम मंच से दिया था। उस समय मुख्तार बसपा में था और मऊ सदर से विधानसभा चुनाव लड़ रहा था। मायावती ने मुख्तार को ‘रॉबिनहुड’ को यह नाम आजमगढ़ और मऊ की मुस्लिम बहुल सीटों पर समीकरण साधने के उद्देश्य से दिया था।
बसपा सरकार में मुख्तार का डीजीपी मुख्यालय में कुछ इस कदर जलवा था कि वह जेल से आकर अधिकारियों से मिलता था और उनको पुलिसकर्मियों के तबादले की फेहरिस्त सौंप देता था। आगरा जेल में बंद रहने के दौरान वह विधानसभा की कार्यवाही में हिस्सा लेने आता था और लखनऊ जेल उसका ठिकाना बन जाता था। हालांकि पुलिस अफसरों की मानें तो वह अधिकतर समय अपने घर पर ही गुजारता था। केवल डीजीपी मुख्यालय ही नहीं, अपने काम के लिए वह कई विभागों में अफसरों के पास सीधे चला जाता था।
यूपी अंडरवर्ल्ड के दो बड़े नाम मुख्तार अंसारी और अतीक अहमद की आपस में खूब बनती थी। रेलवे के ठेकों को हासिल करने के लिए दोनों एक-दूसरे की मदद लेते रहे। अतीक ने अपने दुश्मनों को ठिकाने लगाने के लिए मुख्तार के शूटरों का कई बार इस्तेमाल किया। दोनों ने अपना प्रभाव यूपी और बिहार के साथ कोलकाता और मुंबई तक फैलाया और तमाम कारोबारियों से जमकर वसूली की।
मुख्तार का खौफ इस कदर था कि वर्ष 2017 से पहले प्रदेश पुलिस के बड़े अफसर उस पर कार्रवाई करना तो दूर, नाम लेने तक से कतराते थे। संगठित अपराध का खात्मा करने के लिए बनाई गयी एसटीएफ मुख्तार और उसके शूटरों पर शिकंजा कसने में बेबस थी। मुख्तार के शूटरों के ठिकानों का पता चलने पर भी बड़े अफसर कार्रवाई करने की अनुमति देने से कतराते थे।
मुख्तार की हत्या कराने के लिए माफिया ब्रजेश सिंह ने छह करोड़ रुपये की सुपारी भी दी थी। इसका खुलासा दिल्ली में गिरफ्तार हुए बिहार के अपराधी लंबू शर्मा ने किया था। वहीं दो साल पहले भी मुख्तार ने एमपी-एमएलए कोर्ट में गुहार लगाई थी कि जेल में तमाम संदिग्ध लोगों की आमद हो रही है। उसे मारने के लिए पांच करोड़ रुपये की सुपारी दी गयी है। हालांकि इसकी पुष्टि नहीं हुई।