मुजफ्फरनगर। पश्चिम उत्तर प्रदेश में चुनाव की राजनीति खेत-खलिहान से उपजती है। मसलन धरतीपुत्र चुनावी परिणाम का अहम हिस्सा रहते हैं। यही वजह है कि किसानों बड़े संगठन भाकियू के मुखिया रहे बाबा महेंद्र सिंह टिकैत के इशारे का किसान इंतजार करते थे।
इसी सिलसिले में भाकियू की राजधानी सिसौली में आजकल खासी चहल-पहल देखी जा रही है। तमाम सियासी दिग्गज किसान भवन की परिक्रमा लगा रहे हैं। यह बात दीगर है कि भाकियू को राजनीति कभी रास नहीं आई। राकेश टिकैत ने किसानों को अपने विवेक से मतदान की सलाह दी है।
चुनाव पर भाकियू की पहली छाप 1989 में पड़ी थी। जनता दल के टिकट पर मुजफ्फरनगर लोकसभा से मुफ्ती मोहम्मद सईद और कैराना से हरपाल पंवार सांसद चुने गए। यही नहीं कांधला, खतौली, जानसठ, मोरना, चरथावल और सदर सीट पर जनता दल के विधायक चुने गए थे।
सिर्फ दो साल बाद 1991 में सिसौली के शिक्षक नरेश बालियान ने भाजपा के टिकट पर तत्कालीन गृह मंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद को हरा दिया था। वर्ष 1993 के चुनाव में भाजपा को मिली सफलता के पीछे तत्कालीन भाकियू अध्यक्ष चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत के संदेश को महत्वपूर्ण माना गया था।
भाकियू ने 17 जून 1996 को हरिद्वार किसान पंचायत में राजनीतिक विंग भारतीय किसान कामगार पार्टी का एलान किया। टिकैत ने कहा कि चुनाव से दूर रहेंगे। सिसौली में पंचायत कर विंग की कमान चौधरी अजित सिंह को दी गई। भाकियू कार्यकर्ता राजपाल बालियान को खतौली से टिकट मिला और वह विधायक चुने गए थे। इसके बाद 2004 में किसान भवन से बहुजन किसान दल का गठन किया गया। लेकिन चुनाव के नतीजे पक्ष में नहीं आए।
इस बार मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट से भाजपा के टिकट पर केंद्रीय राज्यमंत्री डॉ. संजीव बालियान और सपा प्रत्याशी हरेंद्र मलिक चुनाव मैदान में हैं। संजीव बालियान के पास दस साल की सांसदी का अनुभव और विकास कार्य कराने का दावा है। वहीं हरेंद्र मलिक मुजफ्फरनगर की राजनीति के दिग्गज माने जाते हैं। जिलेभर में उनका अपना जनाधार और रसूख माना जाता है। संजीव बालियान, बालियान खाप तो हरेंद्र मलिक का संबंध गठवाला खाप से है। इन दोनों प्रत्याशियों की टिकैत परिवार से निकटता है। सबकी निगाह भाकियू रुख पर टिकी है। इन सब हालात के मद्देनजर टिकैत परिवार पूरी तरह तटस्थ नजर आ रहा है।
पंचायतों में बार-बार राजनीति से दूर रहने की बात दोहराई जा रही है। कार्यकर्ताओं के नाम चिट्टी भी जारी कर दी गई। सिसौली पहुंचने वाले सारे प्रत्याशियों को आशीर्वाद दिया गया। टिकैत कह चुके हैं कि वोट मांगना प्रत्याशी का अधिकार है, खुद किसान तय करें कि वह किसे वोट देंगे।
टिकैत परिवार ने अब तक तीन चुनाव लड़े। नब्बे के दशक में दिवंगत चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत के भाई भोपाल सिंह ने कांग्रेस के टिकट पर दिल्ली में चुनाव लड़ा, लेकिन वह हार गए थे। वर्ष 2007 में चौधरी राकेश टिकैत ने खतौली से चुनाव लड़ा, लेकिन पूर्व मंत्री योगराज सिंह के सामने हार का सामना करना पड़ा। मुजफ्फरनगर दंगे के बाद वर्ष 2014 में रालोद के टिकट पर चौधरी राकेश टिकैत ने अमरोहा से लोकसभा चुनाव लड़ा, लेकिन जीत नहीं पाए।
भाकियू प्रवक्ता चौधरी राकेश टिकैत ने कार्यकर्ताओं को चुनाव प्रचार से दूर रहने के लिए कहा गया है। किसी भी राजनीतिक दल के प्रचार में शामिल नहीं होंगे। भाकियू अराजनैतिक रूप से किसानों की आवाज उठाती रहेगी।
पहली बार 11 अगस्त 1987 को तत्कालीन मुख्यमंत्री वीर बहादुर सिंह जनता इंटर कॉलेज के मैदान पर हुई रैली में पहुंचे थे। किसानों की मांगों पर मुख्यमंत्री ने कहा कि कैबिनेट में विचार करेंगे। किसान आंदोलन में चौधरी टिकैत की भूमिका पुस्तक के लेखक अशोक बालियान बताते हैं कि यहीं से संवाद बिगड़ गया। किसान चाहते थे कि मौके पर ही कोई घोषणा होगा। मुख्यमंत्री को देशी अंदाज में करवे से पानी पिलाने का मामला आज भी खूब चर्चा में रहता है।
वर्ष 1986 में जनता इंटर कॉलेज बड़ौत में पश्चिम के खाप चौधरियों की बैठक। अध्यक्ष पद पर चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत के नाम पर मंथन।
-17 अक्तूबर 1986 सिसौली में खाप चौधरी और किसानों की बैठक। बालियान खाप के चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत को भाकियू का अध्यक्ष बनाया।
-17 जनवरी 1987 को सिसौली में मासिक पंचायत।
-27 जनवरी को शामली के करमूखेड़ी बिजलीघर पर धरने का फैसला। चार दिन धरना चला।
17 फरवरी 1987 को सिसौली में पंचायत। एक मार्च को शामली के करमूखेड़ी बिजलीघर पर महापंचायत का एलान किया। nएक मार्च 1987 को करमूखेड़ी में महापंचायत, पुलिस की फायरिंग में दो किसानों का बलिदान।
नेताओं की सिसौली परिक्रमा
11 अगस्त 1987 : तत्कालीन सीएम वीर बहादुर सिंह,
29 मई 1990 : तत्कालीन उप प्रधानमंत्री देवीलाल,
11 दिसंबर 1990 : तत्कालीन प्रधानमंत्री चंद्रशेखर,
15 सितंबर 1994 : सीएम मुलायम सिंह पहुंचे,
09 अगस्त 1996 : तत्कालीन प्रधानमंत्री देवगौड़ा,
04 मार्च 2001 : पूर्व प्रधानमंत्री वीपी सिंह।
मेरठ कमिश्ननरी का घेराव : भाकियू ने 27 जनवरी से 19 फरवरी 1988 तक तक लंबा धरना प्रदर्शन किया। टिकैत की पहली बार गिरफ्तारी के प्रयास असफल रहे।
रजबपुर सत्याग्रह : रजबपुर में पांच किसानों की मौत के बाद भाकियू ने छह मार्च 1988 से 23 जून 1988 तक सत्याग्रह किया। जेल भरो आंदोलन किया।
वोट क्लब का धरना : किसानों के मुद्दे पर 25 से 31 अक्तूबर 1988 तक दिल्ली के वोट क्लब पर धरना दिया। देशभर के किसानों का सैलाब उमड़ा।
अलीगढ़ के खैर का आंदोलन : खैर में किसानों के मुद्दे पर भाकियू ने बड़ी पंचायत की। गेहूं और अन्य फसलों का मुद्दा उठाया।
नईमा अपहरण कांड : तीन अगस्त 1989 से 10 अक्तूबर 1989 तक भोपा में आंदोलन। सीकरी की नईमा की बरामदगी के लिए हुआ था आंदोलन।
दिल्ली बॉर्डर पर आंदोलन : संयुक्त किसान मोर्चा के साथ भाकियू प्रवक्ता राकेश टिकैत आंदोलन का बड़ा चेहरा बने।