कीव। दुनियाभर के देशों की आशंका को सच साबित करते हुए रूस ने आखिरकार यूक्रेन पर बड़ा हमला कर दिया है। रूस ने यूक्रेन पर मिसाइल हमला करते हुए उसके एयर डिफेंस को नष्ट करने का दावा किया है। वहीं, यूक्रेन ने भी रूस के कई विमान और हेलीकॉप्टर को मार गिराने की बात कही है। हालांकि, यह बात दुनियाभर को पता है कि अगर यह युद्ध ज्यादा दिन तक चला, तो यूक्रेन की सेना रूस के आगे ज्यादा समय तक टिक नहीं पाएगी।
इसकी वजह यह है कि रूस की सेना यूक्रेन के मुकाबले कहीं ज्यादा विशालकाय है। रूस के पास छह हजार से अधिक की संख्या में परमाणु हथियारों का जखीरा मौजूद है, जिससे उसके विरोधी देशों में भय की स्थिती बनी रहती है। हालांकि, एक वक्त ऐसा भी था जब यूक्रेन के पास भी अच्छी-खासी संख्या में परमाणु हथियार थे।
दूसरे विश्वयु्द्ध के खत्म होते ही अमेरिका और सोवियत संघ के बीच शीत युद्ध की शुरुआत हो गई थी। इस दौर में यूक्रेन सोवियत संघ (वर्तमान में रूस) का हिस्सा हुआ करता था। इस वक्त अमेरिका और रूस के बीच परमाणु बम बनाने की होड़ भी मची थी। जब दोनों देशों के रिश्तों में खटास बढ़ी तो अमेरिका और नाटो सहयोगी देशों के खिलाफ रूस ने यूक्रेन में हजारों की संख्या में परमाणु हथियारों की तैनाती कर दी थी।
साल 1991 में सोवियत संघ के विघटन के साथ ही शीत युद्ध की समाप्ति मान ली गई। इसके साथ ही यूक्रेन ने भी सोवियत संघ से अलग होने की घोषणा कर दी, लेकिन हजारों की संख्या में परमाणु हथियारों का जखीरा यूक्रेन के पास ही रह गया था। रूस और उसके समर्थक देशों की आर्थिक स्थिती बेहद खराब हो चली थी। इस कारण उन्हें पश्चिमी देशों से कारोबारी रिश्ते और सहयोग की जरूरत पड़ी। यहीं से यूक्रेन के परमाणु हथियारों को त्यागने की कहानी की शुरुआत हुई।
विभिन्न जानकारों और मीडिया रिपोर्टों की ओर से यह दावा किया जाता है कि सोवियत संघ के विघटन के बाद यूक्रेन में परमाणु बमों की संख्या 1800 से 2000 के करीब थी। यह संख्या अमेरिका और रूस के जखीरे के बाद सबसे बड़ी थी। आधिकारिक डाटा के अनुसार, वर्तमान में भी अमेरिका और रूस के अलावा किसी भी देश के पास में इतनी बड़ी संख्या में परमाणु बम मौजूद नहीं हैं।
5 दिसंबर, 1994 – यह वह दिन था जब हंगरी की राजधानी बुडापेस्ट में यूक्रेन, बेलारूस और कजाखस्तान, रूस, ब्रिटेन और अमेरिका के नेताओं ने एक बैठक की थी। इस बैठक में एक समझौते पर हस्ताक्षर किया गया, जिसके अनुसार यूक्रेन, बेलारूस और कजाखस्तान को उनकी स्वतंत्रता, संप्रभुता और मौजूदा सीमाओं के सम्मान का आश्नासन दिया गया। इन देशों को यह भी भरोसा दिया गया कि विदेशी शक्तियां इनकी संप्रभुता और स्वतंत्रता के लिए कभी भी खतरा नहीं बन सकेगी। इस समौझौते को बुडापेस्ट मेमोरंडम ऑन सिक्योरिटी अश्योरेंस नाम दिया गया था। इस समझौते के बदले में तीनों देशों को परमाणु अप्रसार संधि (एनपीटी) के तहत अपने परमाणु हथियारों का त्याग करना था।
साल 1996 के मध्य तक यूक्रेन ने परमाणु अप्रसार संधि (एनपीटी) के तहत अपने परमाणु हथियारों को रूस को सौंप दिया। हालांकि, कई विशेषज्ञों ने यूक्रेन को यह फैसला जल्दबाजी में लेने से मना किया था। इस कदम का खामियाजा यूक्रेन को अब भुगतना पड़ रहा है।
परमाणु हथियारों को त्यागने का खामियाजा यूक्रेन को सबसे पहले साल 2014 में भुगतना पड़ा, जब रूस ने यूक्रेन के क्रीमिया क्षेत्र पर सेना भेजकर कब्जा कर लिया था। रूस ने इसके बाद क्रीमिया में जनमत संग्रह करा कर इसे अपने में मिला लिया। इस वक्त अमेरिका समेत विभिन्न पश्चिमी देशों ने रूस पर आर्थिक प्रतिबंधों की घोषणा की थी। हालांकि, इन प्रतिबंधों का रूस पर कितना असर हुआ, यह वर्तमान में यूक्रेन पर हो रहे हमले से साबित हो गया है।