मुजफ्फरनगर : 19 अप्रैल को पहले चरण की आठ लोकसभा सीटों पर 60.25% वोटिंग हुई है। सहारनपुर, नगीना, कैराना, रामपुर, पीलीभीत, मुजफ्फरनगर, बिजनौर और मुरादाबाद में प्रत्याशियों का भाग्य ईवीएम में कैद हो चुका है। आठ में से 5 लोकसभा सीटें ऐसी हैं जहां 2019 और 2014 के मुकाबले इस बार कम वोट पड़े हैं। राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि कम वोटिंग से बीजेपी को नुकसान हो सकता है। बीजेपी ने डोर टू डोर कैंपेन किया। अगर इसके बाद भी लोग वोट करने नहीं निकले तो इसका मतलब है कि कहीं ना कहीं लोगों में नाराजगी है। जानकारों की मानें तो मुस्लिम, ठाकुर और किसानों की नाराजगी की वजह से बीजेपी को मुजफ्फरनगर और कैराना सीटों पर नुकसान हो सकता है।
गौरतलब है कि सहारनपुर लोकसभा सीट पर 65.95 %, कैराना में 61.17%, मुजफ्फरनगर में 59.29%, बिजनौर में 58.21%, नगीना लोकसभा सीट पर 59.54 प्रतिशत वोटिंग हुई है। इसके अलावा मुरादाबाद में 60.60%, रामपुर में 54.77 % और पीलीभीत सीट पर 61.91% वोटिंग हुई है। रामपुर में सबसे कम तो सहारनपुर सीट पर सबसे ज्यादा वोटिंग हुई है। 2019 और 2014 चुनाव की तुलना करें तो आठ सीटों में से 5 सीट पर कम वोटिंग हुई है। सहारनपुर, मुजफ्फरनगर, कैराना, बिजनौर और नगीना लोकसभा सीट पर कम वोट पड़े हैं।
2014 की अपेक्षा 2019 चुनाव के नतीजे बिल्कुल अलग थे। 2019 में इन 8 सीटों में से बीजेपी ने मुजफ्फरनगर, कैराना और पीलीभीत पर जीत हासिल की थी। रामपुर पर सपा के आजम खान ने जीत दर्ज की थी, लेकिन 2022 में हुए उपचुनाव में बीजेपी ने बाजी मार ली थी। सहारनपुर, नगीना और बिजनौर बसपा के खाते में गया था। मुरादाबाद सीट से सपा के कैंडिडेट चुनाव जीते थे। 2019 में सपा-बसपा गठबंधन में चुनाव लड़े थे। इस बार बसपा अकेले चुनाव लड़ रही है, जबकि सपा और कांग्रेस I.N.D.I.A. गठबंधन से चुनाव मैदान में हैं। इधर, बीजेपी के साथ आरएलडी के आने से पश्चिमी यूपी में NDA गठबंधन ज्यादा मजबूत होने का दावा किया जा रहा है।
शहरी मतदाता को बीजेपी का समर्थक माना जाता है, लेकिन इस बार ये लोग वोट देने के लिए ज्यादा नहीं आए। इसका मतलब लोगों में बीजेपी के प्रति नाराजगी है। कम मतदान होना कहीं ना कहीं बीजेपी को इस बार नुकसान पहुंचा सकता है।
उत्तर प्रदेश में ही नहीं बल्कि बिहार में भी वोट प्रतिशत कम रहा है। ऐसा माना जाता है कि जब मतदान ज्यादा होता है तो सत्तारूढ़ दल को नुकसान होता है। ज्यादा मतदान होने पर ऐसा समझा जाता है कि नाराजगी के चलते लोगों ने खुलकर सरकार के खिलाफ मतदान किया है। लेकिन इस बार जो वोटिंग हुई है, उसको इस नजरिए से नहीं देखा जाना चाहिए। बीजेपी नेता लगातार वोटरों के घर जाकर उन्हें मतदान के लिए जागरूक कर रहे थे पर इस बार वोटर्स घरों से ज्यादा निकले नहीं।