नई दिल्ली। देश में हर साल यूनियन बजट पेश किया जाता है। कई नई योजनाओं और नियमों के साथ नए वित्तीय वर्ष के लिए तैयार किया गया लेखा-जोखा आने वाले साल में देश के खर्चों और निवेश का ब्योरा देता है। वित्त मंत्री 1 फरवरी को इसे पेश करते हैं जो कि 1 अप्रैल से 31 मार्च तक के लिए लागू किया जाता है।
ज्यादातर लोगों को रुचि बजट में होती है। लेकिन बजट क्या सस्ता हुआ और क्या महंगा, महज इन सूचनाओं का पुलिंदा भर नहीं है। क्या आप सच में यूनियन बजट के बारे में जानते हैं? यह सिर्फ एक सामान्य बजट नहीं होता, बल्कि इसमें पूंजी बजट और राजस्व बजट दोनों शामिल होते हैं। तो चलिए इसके असल मतलब को समझते हैं।
भारत के संविधान के अनुच्छेद 112 के अनुसार, प्रत्येक वित्तीय वर्ष की शुरुआत से पहले संसद में बजट पेश करना जरूरी होता है। ये केंद्रीय बजट या वार्षिक वित्तीय विवरण, आगामी वित्तीय वर्ष के लिए सरकार की प्राप्तियों और खर्चों के बारे में बताता है। यह बजट दो प्रमुख भागों-पूंजी बजट और राजस्व बजट में बांटा गया है। संपूर्ण रूप से यह यूनियन बजट कहलाता है।
पूंजी बजट या Capital Budget में सरकार की पूंजीगत प्राप्तियां और भुगतान शामिल होते हैं। पूंजीगत प्राप्तियां सरकार द्वारा जनता से लिए गए या बाजार ऋण होते हैं, जबकि पूंजीगत भुगतान में भूमि, भवन, मशीनरी और उपकरण जैसी संपत्ति के अधिग्रहण, केंद्र सरकार द्वारा राज्य और केंद्र शासित प्रदेश की सरकारों, सरकारी कंपनियों, निगमों को दिए गए ऋण और निवेश को शामिल किया जाता है।
राजस्व बजट में इसके नाम की तरह ही सरकार की सभी राजस्व व्यय और प्राप्तियां शामिल होती हैं। इसमें दैनिक कामकाज से मिलने वाली प्राप्तियां और खर्चों का विवरण होता है। उदाहरण के तौर पर, राजस्व प्राप्तियों के रूप में सरकार को कर और गैर-कर राजस्व मिलता है। वहीं, राजस्व व्यय के रूप में नागरिकों को दी जाने वाली विभिन्न सेवाएं हैं।
किसी भी काम को करने के लिए एक प्लान का होना जरूरी होता है, जिसमें उस काम को करने की प्रक्रिया के साथ ही उसमें होने वाले खर्चों के बारे में भी योजना तैयार की जाती है। ठीक उसी तरह, देश में तेजी से और संतुलित आर्थिक विकास करने के लिए एक प्लान की जरूरत होती है, जिसे केंद्रीय बजट या Union Budget के द्वारा लाया जाता है। इसके अलावा इसके कुछ और भी फायदे हैं-
बेरोजगारी और गरीबी के स्तर को कम करने के लिए नए प्लान लाना और नए रोजगार अवसर पैदा करना है।
सब्सिडी और करों के माध्यम से टैक्स दरों को तय करता है, ताकि देश में आमिर और गरीब तबकों के बीच के अंतर को कम किया जा सके।
आर्थिक उतार-चढ़ाव, मुद्रास्फीति और अपस्फीति के बीच उत्पादों के कीमतों में स्थिरता बनाए रखने में सहायता करता है।
आयकर दरों और टैक्स ब्रैकेट को तय करना, ताकि किसी भी वर्ग पर इसका ज्यादा बोझ न पड़े।
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