हल्द्वानी। दीप पर्व दीपावली नजदीक आ चुकी है। एेसे मेें दूसरों के घरों को रोशन करने के साथ ही अपने घर भी खुशियां लाने की उम्मीदों संब कुम्हारों का चाक घूमना शुरू हो गया है। हल्द्वानी के बरेली रोड पर दीयों के बाजार भी सज चुके हैं। चाइनीज सामानों के बहिष्कार इन कुम्हारों की उम्मीदें और बढ़ा रहा है।
दीपावली 24 अक्तूबर को मनाई जाएगी। दीप पर्व पर मिट्टी के दीयों से घर को रोशन करने की परंपरा सदियों पुरानी है। इसका अपना महत्व भी है। ऐसे में दीपावली के नजदीक आते ही कुम्हार दीये बनाने के काम में तेजी से जुट गए हैं। उन्हें उम्मीद है कि इस बार उनकी दीवाली भी रोशन रहेगी। मिट्टी के दीपक, मटकी आदि बनाने के लिए माता-पिता के साथ उनके बच्चे भी हाथ बंटा रहे हैं। कोई मिट्टी गूंथने में लगा है तो किसी के हाथ चाक पर मिट्टी के बर्तनों को आकार दे रहे हैं।
हालांकि पिछले कुछ समय में आधुनिकता के इस दौर में दीयों का स्थान बिजली के झालरों ने ले लिया है। ऐसे में कुम्हारों के सामने आजीविका का संकट गहरा गया है। चाइनीज झालरों ने इन कुम्हारों को और चोट पहुंचाई। इस कारण वर्ष भर इस त्योहार की प्रतीक्षा करने वाले कुम्हारों की दीवाली अब पहले की तरह रोशन नहीं रही। मगर पिछले कुछ वर्षों से स्वदेशी निर्मित उत्पादों के प्रयोग को लेकर कई स्वयंसेवी संगठन खड़े हुए हैं।
रक्षा बंधन पर्व पर चायनीज राखियों के विरोध का खासा असर दिखाई दिया था। इसके परिणाम स्वरूप स्वदेशी निर्मित उत्पादों की बिक्री में खासी बढ़ोतरी हुई थी।
कुम्हार दिवाली में भी ऐसे ही स्वदेशी दीयों को ग्राहक मिलने की उम्मीद कर रहे हैं। इसी उम्मीद में कुम्हारों के चाक फिर से चल पड़े हैं।
उन्हें उम्मीद है कि एक बार फिर से उनके अच्छे दिन लौटकर आएंगे। इसी उम्मीद में दीये तैयार करने का काम जोरों पर चल रहा है।
बरेली रोड पर दीये बना रहे कुम्हार प्रदीप ने बताया कि दीपावली दीयों का त्योहार है, इसी उम्मीद के साथ उनकी चाक का पहिया घूमने लगा है। उम्मीद है कि इस बार मिट्टी के दीए ज्यादा बिकेंगे। इससे उनकी दीपावली भी पहले से बेहतर रहेगी।