मुजफ्फरनगर : राष्ट्रीय लोकदल के मुखिया अजित सिंह को चुनाव हराया था. मुक़ाबला समाजवादी पार्टी (सपा) के हरेंद्र मालिक से हैं.बसपा ने दारा सिंह प्रजापति को चुनाव मैदान में उतारा है.
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में किसान सियासत का गढ़ है मुजफ्फरनगर. जाटलैंड के नाम से मशहूर मुजफ्फरनगर को गन्ने की भारी उपज के कारण इंडिया का ‘चीनी का कटोरा’ भी कहा जाता है. अखिलेश यादव की सरकार में हुए दंगे ने इस जिले की सियासत को बदला था और गन्ने तथा गुड़ के इस शहर के वोटर का मिजाज लहर के साथ ही बहने लगा. इस कारण से यूपी की सबसे चर्चित लोकसभा सीटों में से एक मुजफ्फरनगर सीट पर इस बार हर किसी की नजर टिकी है. इसकी एक वजह, तीसरी बार भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) द्वारा संजीव कुमार बालियान को चुनाव मैदान में उतारना भी है. संजीव बालियान केंद्र सरकार में पशुपालन राज्य मंत्री हैं. बीते लोकसभा चुनाव में वह 6526 वोटों से चुनाव जीते थे.
उन्होंने राष्ट्रीय लोकदल के मुखिया अजित सिंह को चुनाव हराया था. माना जा रहा था कि बहुत कम वोटों से जीतने के कारण उन्हें पार्टी चुनाव मैदान में नहीं उतरेगी, लेकिन अब वह चुनाव मैदान में हैं. उनका मुक़ाबला समाजवादी पार्टी (सपा) के हरेंद्र मालिक से हैं.
बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ने अपने मण्डल अध्यक्ष रहे दारा सिंह प्रजापति को चुनाव मैदान में उतारा है. केंद्र में नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद से इस सीट पर भाजपा अजेय बनी हुई है और अब उसकी नजर चुनावी जीत की हैट्रिक पर लगी है. संजीव बालियान यहां जीत की हैट्रिक लगाकर पार्टी की इस उम्मीद को पूरा कर पाएंगे या नहीं. इसका पता तो 4 जून को ही चलेगा.
फिलहाल दिल्ली के करीब स्थित यूपी के इस सबसे विकसित और समृद्ध शहर में चुनाव की सरगर्मी तेज हो गई है. पाकिस्तान के पहले पीएम लियाकत अली की कोठी के नजदीक बने पर्यटन विभाग के होटल में चुनाव प्रचार करने आने वाले नेताओं की संख्या बढ़ गई है. इस शहर से पंडित सुंदर लाल, लाला हरदयाल और खतौली के शांति नारायण तथा सिसौली के किसान नेता महेंद्र सिंह टिकैत का नाता रहा है.
फिलहाल पूरा मुजफ्फरनगर में चुनावी माहौल में रंगने लगा है. इस बार बीते लोकसभा चुनावों के मुक़ाबले थोड़ा अलग माहौल है. इस बार पक्ष और विपक्ष दोनों के लिए ही यहां उम्मीदों और चुनौतियों की तस्वीर बदली हुई है. इस लोकसभा सीट में बुढ़ाना, चरथावल, सरधना, मुजफ्फरनगर, खतौली विधानसभा की सीटें आती हैं.
वर्ष 2017 में यह पांचों सीटें भाजपा के पास थी, लेकिन वर्ष 2022 में हुए विधानसभा चुनाव में सपा-रालोद गठबंधन ने चार सीटें जीत ली और मुजफ्फरनगर सीट ही भाजपा जीतने में कामयाब हुई. ऐसे में अब विपक्ष की उम्मीद इन नतीजों से जुड़ी है. हालांकि रालोद अब भाजपा के साथ खड़ी हुई है, लेकिन अभी भी भाजपा इस सीट पर जीत का पूरा कॉन्फिडेंस नहीं है.
भाजपा नेता प्रतिक्रियात्मक ध्रुवीकरण के साथ जाट, ओबीसी व दूसरे वोटों की गोलबंदी के भरोसे अपनी जीत दावा कर रहे हैं. जबकि चार बार के विधायक और पूर्व राज्यसभा सदस्य सपा के हरेंद्र मालिक को जाट और पार्टी के अल्पसंख्यक वोट पाने का भरोसा है. सपा नेताओं का कहना हैं कि सपा का पीड़ीए (पिछड़े, दलित और अल्पसंख्यक) फार्मूला सपा को जीत दिलाएगा.
इस दावे की वजह इस सीट का जातीय समीकरण बताया जा रहा है. मुजफ्फरनगर जिले की आबादी 41,43,512 आबादी है. यहां करीब 42 फीसदी सवर्ण कैटेगरी के वोटर्स हैं, जबकि 20 फीसदी मुस्लिम और 12 फीसदी जाट वोटर्स हैं. इनके अलावा 18 फीसदी एससी और एसटी वोटर्स है जबकि 8 फीसदी अन्य जातियों के वोटर्स यहां रहते हैं. ऐसे में साफ है कि मुस्लिम और दलित मतदाता जिसके पक्ष में खड़ा हो गया, उसकी जीत सुनिश्चित है.
मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट के राजनीतिक इतिहास की बात करें तो यहां पर भाजपा वर्ष 2014 से चुनाव जीत रही है. वर्ष 1990 के बाद के चुनाव को देखें तो वर्ष 1991 से लेकर अब तक 8 लोकसभा चुनाव में मुजफ्फरनगर सीट से सिर्फ दो नेताओं को लगातार दो बार जीत मिली है. इस सीट पर अब तक कोई भी नेता जीत की हैट्रिक नहीं लगा सका है.
वर्ष 1989 के चुनाव में जनता दल के टिकट पर मुफ्ती मोहम्मद सईद चुनाव जीते थे. वर्ष 1991 से लेकर 1998 तक तीन बार भाजपा ने इस सीट पर जीत हासिल की. वर्ष 1991 में भाजपा के नरेश कुमार बालियान और वर्ष 1996 और वर्ष 1998 में भाजपा के सोहनवीर सिंह इस सीट से चुनाव जीते थे. कांग्रेस को आखिरी बार वर्ष 1999 में जीत मिली थी. वर्ष 2004 में समाजवादी पार्टी (सपा) के मुनव्वर हसन विजयी हुए थे. जबकि वर्ष 2009 में यहां बसपा के कादिर खान चुनाव जीते थे.