जयपुर। कांग्रेस में अध्यक्ष पद के चुनाव को लेकर सियासी सरगर्मियां अभी शुरू ही हुई थीं कि राजस्थान में पार्टी में नया अंदरूनी ड्रामा शुरू हो गया। दरअसल, राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की ओर से कांग्रेस अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ने के एलान के बाद ही सचिन पायलट को यह पद मिलने की उम्मीद थी। हालांकि, गहलोत समर्थक विधायकों ने उन्हें नेता मानने से इनकार कर दिया और अपना इस्तीफा लेकर विधानसभा स्पीकर के पास पहुंच गए।
ऐसे में हर तरफ यह सवाल उठ रहे हैं कि आखिर राजस्थान में चल क्या रहा है? गहलोत समर्थक विधायकों के विधानसभा स्पीकर को इस्तीफा सौंपने का क्या असर होगा? क्या राजस्थान में कांग्रेस सरकार पर कोई खतरा पैदा हो गया है? इसके अलावा अगर सचिन पायलट अलग-थलग पड़ जाते हैं तो उनके पास आगे क्या विकल्प होंगे? आइये जानते हैं…
मौजूदा समय में कांग्रेस में विवाद राजस्थान के सीएम पद को लेकर चल रहा है। राहुल गांधी के एक व्यक्ति, एक पद के सिद्धांत का हवाला देते हुए सचिन पायलट ने सीएम पद के लिए दावेदारी पेश की है। वहीं, गहलोत गुट ने पायलट को रोकने के लिए कोशिशें शुरू कर दी हैं। गहलोत समर्थक विधायकों ने कहा है कि सिर्फ अशोक गहलोत ही मुख्यमंत्री बनेंगे, अगर वे इस पद पर नहीं रहे तो सरकार खतरे में आ जाएगी। इतना ही नहीं पार्टी की बैठक में मांग उठी है कि 2020 में बगावत करने वाले 18 विधायकों में से किसी को भी मुख्यमंत्री न बनाया जाए।
राजस्थान में मौजूदा समय में 200 विधानसभा सीटें हैं और कोई भी सीट खाली नहीं है। यानी राज्य में बहुमत का आंकड़ा 101 विधायकों का है। सबसे ज्यादा 108 विधायक कांग्रेस के पास हैं। इसके बाद भाजपा के पास 71 विधायक हैं। इसके बाद 13 विधायक निर्दलीय हैं। इनमें से अधिकतर का समर्थन कांग्रेस के पास है। राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी (रालोपा) के पास 3 एमएलए हैं। वहीं भारतीय ट्राइबल पार्टी और मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के पास 2-2 विधायक हैं। राष्ट्रीय लोकदल के पास 1 विधायक है।
आमतौर पर किसी विधायक को विधानसभा से अपनी सदस्यता छोड़ने के लिए एक तय प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है। संविधान के अनुच्छेद 190 (3)(b) के तहत अगर किसी विधायक को अपनी सीट छोड़नी है तो वह स्पीकर को चिट्ठी लिखकर इस्तीफा दे सकता है। हालांकि, यह प्रक्रिया पूरी तभी होगी, जब विधानसभा अध्यक्ष इस्तीफा मंजूर कर ले।
क्या-क्या हैं संभावनाएं
राजस्थान की बात करें तो कहा जा रहा है कि कांग्रेस के 80 से ज्यादा विधायकों ने विधानसभा अध्यक्ष को इस्तीफा सौंप दिया है। अगर इस संख्या को 80 मान लिया, तो पार्टी के पास राजस्थान में सिर्फ 28 विधायक बचेंगे। अगर स्पीकर इन 80 विधायकों का इस्तीफा मंजूर कर लें, तो राजस्थान में विधानसभा सदस्यों की संख्या 120 पहुंच जाएगी। इस स्थिति में भाजपा 71 सीटों के साथ सदन में बहुमत का आंकड़ा पार कर जाएगी और राजस्थान में नई सरकार का गठन होगा। इस स्थिति में अगर पार्टी को किसी से समर्थन नहीं मिलता है तो भी उसकी सरकार बनी रहेगी।
एक संभावना यह भी है स्पीकर विधायकों का इस्तीफा मंजूर न करें। जब तक विधानसभा अध्यक्ष संतुष्ट न हो जाएं कि विधायकों ने बिना किसी दबाव के अपनी मर्जी से इस्तीफा दिया है, तब तक वह इस्तीफा मंजूर करने से इनकार भी कर सकते हैं। माना जा रहा है कि गहलोत कैंप फिलहाल इसी तरकीब को अपना रहा है। स्पीकर की कुर्सी पर सीपी जोशी हैं, जो कि गहलोत कैंप की ओर से सीएम पद के सबसे बड़े दावेदार हैं। ऐसे में संभावना है कि गहलोत कैंप अपना सीएम बनाए रखने और पायलट को इस पद पर न आने देने के लिए आलाकमान को संदेश दे रहा है।
इस पूरे खेल में भाजपा बड़ा रोड़ा अटका सकती है। इस पूरे खेल के बीच अगर भाजपा विधानसभा में कांग्रेस के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पेश करती है और बहुमत परीक्षण की मांग करती है तो गहलोत सरकार की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। दरअसल, इस स्थिति में कांग्रेस को बहुमत साबित करना होगा। हालांकि, यहां से आगे का खेल सचिन पायलट की सियासी पकड़ पर निर्भर होगा। अगर पायलट कांग्रेस के दो-तिहाई विधायकों को तोड़ लेते हैं और भाजपा को समर्थन देते हैं तो बिना दल-बदल कानून की जद में आए वे अपनी विधायकी बचा सकते हैं।
हालांकि, अगर पायलट इससे कम विधायक भी तोड़ते हैं और अपने समर्थक विधायकों (करीब 20-30 विधायकों) से इस्तीफा भी करवा लेते हैं, तो कांग्रेस के पास 78-88 सीटें बचेंगी और वह अल्पमत में आ जाएगी। इस स्थिति में भाजपा (71 विधायक) निर्दलीयों और अन्य पार्टियों के साथ बहुमत हासिल कर सरकार बनाने की कोशिश कर सकती है। अगर इस स्थिति में सरकार गठन नहीं हो पाता है और दोनों ही पार्टियां अल्पमत में रहती हैं तो राज्यपाल विधानसभा को भंग कर सकते हैं और राष्ट्रपति शासन की अपील कर सकते हैं। अगले विधानसभा चुनाव में भाजपा और कांग्रेस दोनों ही नए सिरे से चुनाव लड़ेंगी।