मुम्बई। भारतीय संस्कृति और इसके अतीत की जब भी बात होती है, हिंदी भाषी क्षेत्रों में दक्षिण भारत की बात कम ही होती है। संगीत भी हिंदुस्तानी संगीत से शुरू होकर कर्नाटक संगीत तक ही जाता है, कहानियों की बात और भी सीमित रह जाती है। ऐसे में कल्कि कृष्णमूर्ति के पांच हिस्सों में प्रकाशित उपन्यास ‘पोन्नियिन सेल्वन’ पर बनी एक तमिल फिल्म को दक्षिण भारत की अन्य प्रमुख भाषाओं के साथ हिंदी में भी डब करके रिलीज करना किसी चुनौती से कम नहीं है। चुनौती तब और बढ़ जाती है जब इसके रचयिता बातचीत में हिंदी से पूरी तरह परहेज करते हैं और हिंदी बोलने व समझने में समर्थ होने के बाद भी तमिल के अलावा सिर्फ अंग्रेजी में बात करना पसंद करते हैं। फिल्म ‘पोन्नियिन सेल्वन 2’ देखने से पहले जरूरी है कि आपने फिल्म ‘पोन्नियिन सेल्वन 1’ देखी हो और ध्यान से देखी हो क्योंकि बिना इस होमवर्क के मणिरत्नम की फिल्म का ये दूसरा हिस्सा समझ नहीं आएगा।
फिल्म ‘पोन्नियिन सेल्वन 2’ वहीं से शुरू होती है जहां नंदिनी ने चोल साम्राज्य को खत्म करना ही अपने जीवन का लक्ष्य बना रखा है। चोल राजा के दोनों राजकुमारों को अपने पिता के विरुद्ध हो रहे षडयंत्र को समाप्त करने का बुलावा पिछली फिल्म में ही मिल चुका है। बड़े राजकुमार को नंदिनी से किशोरवस्था में प्रेम था। नंदिनी ने विवाह किया चोल राज्य के कोषाध्यक्ष पर्वतेश्वर से और षडयंत्र का ताना बाना बुनते बुनते अब वहां तक आ पहुंची है जहां एक बार फिर उसका बड़े राजकुमार से सामना होना है। फिल्म ‘पोन्नियिन सेल्वन 2’ को देखने का असली आनंद इसी तनाव में आता है। विक्रम और ऐश्वर्या राय बच्चन इस फिल्म के दो विपरीत ध्रुव हैं और इनकी कड़क जब चमककर कहानी पर गिरती है तो इसके दूसरे सारे पात्र धूमिल होते नजर आते हैं। ऐश्वर्या का यह दूसरा रूप यहां खुलकर सामने आता है और कहानी का नया मस्तूल रचने की कोशिश भी करता है।
फिल्म ‘पोन्नियिन सेल्वन 2’ की अपनी कमजोरियां भी हैं और अपनी खूबियां भी। कमजोरियां फिल्म की ये हैं कि ये इंटरवल से पहले के हिस्से में काफी सुस्त चाल से चलती है। निर्देशक मणि रत्नम की ये अपनी खास शैली है। वह कथा के पूर्ण अंकुरण में विश्वास रखते हैं और कोपलें निकलने के बाद ही उस पर मौसम और वातावरण की मार करते हैं। लेकिन, अब सिनेमा का समय और स्वाद दोनों बदल गए है। ‘पोन्नियिन सेल्वन’ एक फिल्म है जिसे रिलीज दो हिस्सों में किया गया है, यह बात मणिरत्नम खुद कहते हैं, फिर इस फिल्म को एक सीक्वेल की तरह उन्होंने शुरू में क्यों दिखाया, ये बात थोड़ा खटकती है। खटकने वाली बात इस फिल्म में ये भी है कि उन तमाम किरदारों की अंतर्कथाएं ये फिल्म बिना इनको उपसंहार तक पहुंचाए ही छोड़ देती है, जिनके कथानक में दर्शकों ने अपना काफी समय पिछली फिल्म में लगाया था। पिछली फिल्म में सूत्रधार रहा कार्ति का किरदार यहां महज एक खानापूरी बनकर रह जाता है। फिल्म जब तक चलती रहती है, अपने नयनाभिराम दृश्यों और इंद्रधनुषी सजावट से आनंद देती रहती है। लेकिन, जब फिल्म खत्म होती है तो ऐसा महसूस होता है कि कुछ तो अधूरा कहीं रह गया है।
मणिरत्नम की फिल्म ‘पोन्नियिन सेल्वन’ के दोनों भाग सिर्फ और सिर्फ ऐश्वर्या राय बच्चन के लिए भी देखे जा सकते हैं। अपनी पहली फिल्म ‘इरुवर’ से लेकर ‘पोन्नियिन सेल्वन’ तक ऐश्वर्या ने अपने अभिनय कौशल की जिस उड़ान का प्रदर्शन सुनहरे पर्दे पर अब तक किया है, उसमें एक पूरा अध्याय ही मणिरत्नम के नाम का है। फिल्म ‘पोन्नियिन सेल्वन 2’ ऐश्वर्या राय का एक नया जन्म है। मणिरत्नम से मिला अभिनय का ये पुनर्जीवन ऐश्वर्या के आने वाले वर्षों के लिए एक नए रनवे का काम भी कर सकता है। सौंदर्य को उसकी पूरी गरिमा और पूरी आभा के साथ पेश करना ऐश्वर्या राय बच्चन से उनके इस किरदार से सीखा जा सकता है और फिल्म ‘हम दिल दे चुके सनम’ की नंदिनी को भी भला कौन भूल सकता है? निष्कपट नंदिनी से कपटपूर्ण नंदिनी तक की ऐश्वर्या की ये अभिनय यात्रा भारतीय सिनेमा की एक मिसाल बन रही है।
फिल्म ‘पोन्नियिन सेल्वन 2’ में हिंदी भाषी दर्शकों की पहचान के गिने चुने चेहरे हैं। फिर भी विक्रम अपने रौद्र, क्रोध और उद्वेग से अपनी पहचान छोड़ने में सफल रहते हैं। उनका संवेग उनके अभिनय को गतिमान बनाता है। जयम रवि और कार्ति के पास इस बार कुछ कर दिखाने का मैदान बचा नहीं, उनके सारे पैंतरे मणि रत्नम फिल्म के पिछले हिस्से में पहले ही दिखा चुके हैं। इस बार जिस बात ने सबसे ज्यादा निराश किया, वह था तृषा के दृश्यों की संख्या कम होना। फिल्म के पहले भाग में उनका रूप लावण्य दर्शकों को मोहित करने में सफल रहा था लेकिन इस बार नंदिनी के आगे उनके चरित्र का विस्तार बहुत सीमित है।
निराशा फिल्म के संगीत से भी होती है। फिल्म ‘पोन्नियिन सेल्वन 1’ में रहमान ने गीतकार महबूब के साथ संगत जमाई थी, इस बार उनके साथ गुलजार हैं, लेकिन मामला कम से कम इसके हिंदी गीतों में जमा नहीं और ये इसके बावजूद कि रहमान ने हिंदी संस्करण के लिए पूरा एक गाना राग यमन पर नए सिरे से रचा है। फिल्म में हालांकि युद्ध के दृश्य इस बार भी हैं लेकिन उनका असर मारक नहीं है। हां. रवि वर्मन की सिनेमैटोग्राफी लाजवाब है। उनके कैमरे का असली करिश्मा समझना हो तो फिल्म को आईमैक्स थियेटर में ही देखना चाहिए।