नई दिल्ली. भारत के प्रमुख उद्योगपतियों में से एक सायरस पलोनजी मिस्त्री का रविवार को मुंबई के पालघर में एक सड़क हादसे में निधन हो गया। दुनियाभर में उनके निधन पर शोक व्यक्त किया जा रहा है। वे 2012 से लेकर 2016 तक भारत की प्रमुख उद्योग समूह टाटा ग्रुप के चेयरमैन पद पर रहे। एक समय वह था, जब खुद रतन टाटा ने अपने रिटायरमेंट का एलान करते हुए टाटा ग्रुप की कमान सायरस को सौंपने की बात कही थी। हालांकि, महज चार साल बाद ही सायरस के कुछ फैसलों ने रतन टाटा को वापस ग्रुप का नेतृत्व करने के लिए लौटने पर मजबूर कर दिया। बाद में दोनों के बीच विवाद इतना बढ़ चुका था कि मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया।
टाटा और मिस्त्री दोनों ही पारसी परिवारों के बीच रिश्ते सिर्फ औद्योगिक स्तर पर ही नहीं थे, बल्कि यह रिश्ते पारिवारिक भी रहे। कहा जाता है कि दोनों के ही पूर्वज पर्शिया (अब ईरान) से भारत के गुजरात आए थे। माना जाता है कि शपूरजी-पलोनजी ग्रुप ने टाटा संस में तब शेयर हासिल किए थे, जब 1930 के दशक में टाटा ने एफई दिनशॉ एंड कंपनी को खरीदा था। हालांकि, टाटा कंपनी का कहना है कि मिस्त्री परिवार के पास 1965 तक टाटा के कोई शेयर नहीं थे। बाद में उन्होंने जेआरडी टाटा के भाइयों से इन शेयरों को खरीदा। अभी भी मिस्त्री समूह टाटा ग्रुप में शेयरधारक है। फिलहाल टाटा परिवार की चैरिटेबल ट्रस्ट के पास ग्रुप की 66 फीसदी हिस्सेदारी है।
टाटा-मिस्त्री परिवारों के रिश्ते पारिवारिक स्तर के भी रहे। रतन टाटा के सौतेले भाई नोएल टाटा की शादी अलू मिस्त्री से हुई थी, जो कि पलोनजी मिस्त्री की बेटी और सायरस मिस्त्री की बहन हैं। पलोनजी मिस्त्री खुद टाटा संस में निदेशक पद पर रहे। पलोनजी मिस्त्री को बॉम्बे हाउस (टाटा ग्रुप का हेडक्वार्टर) का लोकप्रिय चेहरा कहा जाता था। टाटा एंपायर में उनका प्रभाव भी जबरदस्त रहा। 2006 में इसी पद पर सायरस मिस्त्री भी रहे।
जब सायरस को 2011 में टाटा ग्रुप का डिप्टी चेयरमैन बनाया गया, तो रतन टाटा ने उनकी काफी तारीफ की थी। उन्होंने कहा था कि सायरस की नियुक्ति एक अच्छा और दूरदर्शी चुनाव रहा। टाटा ने कहा था, “वे (सायरस) अगस्त 2006 से ही टाटा संस के बोर्ड में रहे हैं और मैं उनकी गुणवत्ता, उनकी दक्ष समझ और विनम्रता से काफी प्रभावित रहा हूं। वे दी गई जिम्मेदारियों को निभाने के लिए समझदार और योग्य व्यक्तित्व हैं। मैं अगले कुछ साल उनके साथ काम करने के लिए प्रतिबद्ध हूं, जिससे उन्हें एक्सपोजर में मदद मिलेगी। इससे मेरे रिटायरमेंट के बाद उन्हें पूरी जिम्मेदारी उठाने में मदद मिलेगी।”
गौरतलब है कि रतन टाटा के रिटायरमेंट के बाद सायरस ने 2012 में ही चेयरमैन पद संभाल लिया था। हालांकि, टाटा ग्रुप के चेयरमैन पद पर वे चार साल से भी कम समय के लिए रहे। उन्हें अक्तूबर 2016 में कुछ विवादों के चलते चेयरमैन पद से हटा दिया गया। आगे जो घटनाक्रम हुआ, उसने पूरे कॉरपोरेट जगत को चौंका दिया। सायरस खुद नहीं जानते थे कि चेयरमैन पद से हटाए जाने के बाद ग्रुप में उनका क्या भविष्य होगा।
अलग-अलग पक्षों की ओर से उस समय का जो घटनाक्रम सामने आता है, उसके मुताबिक 24 अक्तूबर 2016 को जब सायरस को चेयरमैन पद से हटाया गया तब रतन टाटा और ग्रुप के एक और निदेशक नितिन नोहरिया सायरस के कमरे में गए और उनसे खुद ही इस्तीफा देने के लिए कहा। हालांकि, जब सायरस ने इससे इनकार कर दिया तो टाटा संस के बोर्ड की बैठक बुलाई गई। इसमें सायरस को चेयरमैन पद से हटाने का फैसला हुआ। टाटा ने उन्हें टाटा संस समेत सभी बोर्ड से हटा दिया, जिससे दोनों के बीच मतभेद जगजाहिर हो गए।
टाटा ग्रुप के चेयरमैन पद से हटाए जाने के बाद सायरस ने भी रतन टाटा से मतभेद की बात कही। सायरस का कहना था कि वे टाटा ग्रुप को कुछ व्यापारों से निकालना चाहते थे, जिस पर रतन टाटा खुश नहीं थे। इनमें टाटा स्टील का यूरोपीय बिजनेस, नैनो कार और टेलिकॉम शामिल थे। हालांकि, टाटा ने अपनी प्रतिक्रिया में कहा था कि सायरस के साथ प्रदर्शन से जुड़े कुछ मुद्दे थे।
टाटा ग्रुप के चेयरमैन पद से हटाए जाने के बाद सायरस मिस्त्री ने नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (एनसीएलटी) की मुंबई बेंच के सामने याचिका दायर की। मिस्त्री ने खुद को पद से हटाए जाने के साथ ही अल्पसंख्यक शेयरधारकों के हित दबाए जाने का मुद्दा भी उठाया था। 2017 में एनसीएलटी ने मिस्त्री की याचिका पर फैसला सुनाते हुए उनके चेयरमैन और निदेशक पद से हटाए जाने के फैसले को सही ठहराया था।
सायरस बाद में इस फैसले के खिलाफ नेशनल कंपनी लॉ अपॉलेट ट्रिब्यूनल गए, जहां उन्हें जीत मिली। एनसीएलएटी ने उन्हें चेयरमैन पद से हटाए जाने के टाटा ग्रुप के बोर्ड के फैसले को अवैध करार दिया था। बाद में टाटा ग्रुप और रतन टाटा ने इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। मार्च 2021 को चीफ जस्टिस एसए बोबडे की बेंच ने आखिरकार मामले का निपटारा करते हुए फैसला टाटा के पक्ष में सुनाया।