नई दिल्ली। पेशेवर चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर की कांग्रेस में एंट्री एक बार फिर तय दिख रही थी। पिछले साल भी उनके कांग्रेस का दामन थामने की चर्चाएं जोर-शोर से चली थी लेकिन अचानक पीके कांग्रेस नेतृत्व और पार्टी की कार्यशैली की आलोचना करते देखे जाने लगे। तब तक ये साफ हो चुका था कि उनके लिए कांग्रेस के दरवाजे बंद हो चुके हैं। हालांकि, इस बार तो उनकी कांग्रेस में एंट्री पक्की मानी जा रही थी। खुद पीके भी देश की सबसे पुरानी पार्टी का दामन थामने को बेचैन थे। ग्रैंड ओल्ड पार्टी किस तरह अपना पुराना वैभव और रुतबा हासिल कर सकती है, इसका एक रोडमैप तक तैयार कर रखा था। 600 स्लाइड्स में इसका एक पावर पॉइंट प्रेजेंटेशन भी पेश किया लेकिन इस बार भी बात अटक गई। सारा पेच 2 स्लाइड्स पर फंस गया।
दरअसल, कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी ने लोकसभा चुनाव की तैयारी और पार्टी के सामने जो राजनीतिक चुनौतियां हैं, उससे पार पाने के लिए एक ’एम्पावर्ड एक्शन ग्रुप 2024’ को बनाया है। जैसा कि नाम से ही साफ है कि ये एक्शन ग्रुप काफी ताकतवर होगी जिसके पास रणनीति तैयार करने के अलावा उस पर अमल कराने का भी अधिकार होगा। कांग्रेस ने पीके को इसी एम्पावर्ड एक्शन ग्रुप में शामिल होने का न्योता दिया था। यानी उन्हें कांग्रेस के चुनिंदा नेताओं के एक ताकतवर समूह के साथ मिलकर काम करने की पेशकश की गई थी। जाहिर है, पीके खुद के लिए जिस तरह की स्वतंत्रता चाहते थे, वह उन्हें नहीं मिल रहा था। वह तो चाहते थे कि पार्टी उनकी बनाई रणनीतियों की राह पर चले लेकिन यहां तो उनसे ये उम्मीद की जा रही थी कि वह कांग्रेस के कुछ चुनिंदा नेताओं के एक समूह के साथ मिलकर रणनीति बनाएं। ग्रुप के सभी नेताओं की जिम्मेदारियां भी पहले से तय रहेगी। लिहाजा बात नहीं बनी। दोनों के रास्ते फिर एक होते-होते अलग हो गए।
कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने ट्वीट कर बताया, ’प्रशांत किशोर के साथ चर्चा और एक प्रेजेंटेशन के बाद कांग्रेस अध्यक्ष ने उन्हें एक समूह के हिस्से के तौर पर पार्टी में शामिल होने का न्योता दिया ता। समूह की जिम्मेदारी साफ-साफ तय है। उन्होंने इसे ठुकरा दिया। हम उनके प्रयासों और पार्टी को दिए गए सुझावों की प्रशंसा करते हैं।’
एक तरफ कांग्रेस कह रही है कि पीके को एक ’स्पष्ट और तय’ जिम्मेदारी दी जा रही थी जबकि किशोर का दावा है कि उनसे ’चुनावों की जिम्मेदारी’ लेने को कहा गया था। पीके ने अपने ट्वीट से ये जाहिर करने की कोशिश की कि कांग्रेस ने संगठन में आमूल-चूल बदलाव और सुधार के उनके सुझाव पर अमल के लिए तैयार नहीं थी और उन्हें सिर्फ चुनावी रणनीति तक सीमित रखना चाहती थी। उन्होंने कांग्रेस को सुझाव दिया था कि पार्टी को निर्णय लेने की प्रक्रिया को तेज करने की जरूरत है। इसके अलावा चुनाव प्रबंधन और ऑर्गनाइजेशनल मैनेजमेंट के लिए अलग-अलग डेडिकेटेड टीमें हों। वह सुधारों और उस पर अमल सुनिश्चित कराने के लिए खुली छूट चाहते थे जो कांग्रेस के सीनियर नेताओं को मंजूर नहीं था। पीके अपनी शर्तों पर कांग्रेस में शामिल होना चाहते थे लेकिन उनके दो स्लाइड्स को पार्टी ने दिल पर ले लिया।
आखिर वे कौन सी दो स्लाइड्स थीं, जहां पेच फंसा? उन स्लाइड्स में आखिर था क्या? एक स्लाइड में पीके ने प्रियंका गांधी वाड्रा को राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाने का सुझाव दिया था। कांग्रेस के एक पदाधिकारी ने दावा किया कि प्रशांत किशोर चाहते थे कि पीएम कैंडिडेट और पार्टी अध्यक्ष दो अलग-अलग शख्स हों। वह प्रियंका वाड्रा को अध्यक्ष के रूप में चाहते थे जबकि पार्टी राहुल गांधी को फिर अध्यक्ष बनाना चाहती है। दूसरी स्लाइड वो थी जिसमें पीके ने गठबंधन को लेकर कांग्रेस को सुझाव दिए थे। किशोर चाहते थे कि कांग्रेस बिहार, महाराष्ट्र और जम्मू-कश्मीर जैसे अहम राज्यों में अपने पुराने सहयोगियों को झटक दे।
इन दो स्लाइड्स को कांग्रेस पचा नहीं पा रही थी। इसी बीच प्रशांत किशोर ने तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चन्द्रशेखर राव से से मुलाकात कर ली। उनकी फर्म प्च्।ब् ने राव की पार्टी ज्त्ै के साथ कॉन्ट्रैक्ट साइन हो गई। पहले ही पीके के सुझावों से असहज कांग्रेस को उनका राव से मिलना और टीआरएस के साथ उनकी डील रास नहीं आई और एक बार फिर पीके कांग्रेसी होते-होते रह गए। अब सारी नजरें एम्पावर्ड ग्रुप के गठन पर है। इसका चेयरमैन कौन होता है और किन नेताओं को इसका हिस्सा बनाया जाता है, इससे भविष्य को लेकर कांग्रेस की सोच और रणनीति का अंदाजा मिल सकेगा।