कानपुर: समाजवादी पार्टी ने नगर निकाय चुनाव में पहली बार कांग्रेस को पीछे छोड़कर सीधा मुकाबला किया। विधानसभा चुनाव में तीन सीटों पर जीत दर्ज कराने वाली सपा ने स्थानीय राजनीति में दबदबा भी बढ़ाया है। पार्टी यह संदेश देने में भी कामयाब रही कि शहर में अब वही मुख्य विपक्षी दल है। भाजपा विरोधी मतदाता वर्ग को लुभाने वाली सपा अपना नया वोट बैंक तैयार नहीं कर सकी। भाजपा के बढ़ते जनाधार के मुकाबले सपा की यह बड़ी रणनीतिक चूक रही जिसने उसे प्रदेश में सबसे बड़े अंतर के साथ हार का कड़वा घूंट पीने को मजबूर कर दिया।
समाजवादी पार्टी ने भाजपा के ब्राह्मण मतदाता वर्ग में बड़ी सेंध का ऐसा माहौल बनाया कि अखिलेश यादव और डिंपल यादव भी रोड शो के लिए दौड़कर चले आए। शिवपाल सिंह यादव ने भी चुनावी सभाओं से माहौल बनाया। इससे सपा पूरे चुनाव प्रचार के दौरान मुख्य लड़ाई में बनी रही। सपा ने इस बार चुनाव में कांग्रेस को शुरू से आगे बढ़ने का मौका नहीं दिया। इसका फायदा उसे बढ़े हुए वोट प्रतिशत के तौर पर मिला है। सपा ने उन मतदाताओं को अपने साथ आने के लिए मजबूर कर दिया जो पिछले चुनावों तक कांग्रेस के साथ पूरी ताकत से खड़े रहे हैं। यही वजह है कि इस बार उसे पिछले नगर निगम चुनाव के मुकाबले दोगुने से भी ज्यादा 262507 वोट मिले हैं।
विपक्ष की झोली भी हुई खाली नगर निगम की चुनावी बिसात पर भाजपा की रणनीति का जवाब देने में भी सपा नाकाम दिखी। विपक्ष की अगुवाई करने के बावजूद सपा अपने साथ नया वोट बैंक जोड़ नहीं सकी। यही वजह है कि उसे पिछले नगर निगम चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी के 2.91 लाख से भी कम वोट मिले हैं। पिछले चुनाव में सपा, बसपा और कांग्रेस को कुल पांच लाख से भी ज्यादा वोट मिले थे लेकिन इस बार कुल वोट 405130 है। भाजपा प्रत्याशी की जीत का बड़ा अंतर भी इसी ओर इशारा कर रहा है। पिछले चुनाव तक गैर भाजपाई रहे मतदाताओं को भी अपने साथ जोड़ने में भाजपा कामयाब रही और सपा प्रत्याशी विपक्षी मतदाताओं का आधार बढ़ाने में नाकाम रहे।