कांग्रेस छोड़कर सपा में शामिल हुए पूर्व विधायक पंकज मलिक सपा से चरथावल सीट के सबसे मजबूत दावेदारों में शामिल हैं। रालोद भी इस सीट पर अपना दावा कर रहा है और हाल ही में बघरा में एक बड़ी जनसभा कर अपनी ताकत भी दिखाई।
इनमें हाल ही में बसपा छोड़ रालोद में शामिल हुए पूर्व नूरसलीम राणा, पूर्व विधायक नवाजिश आलम, पूर्व एमएलसी मुश्ताक चौधरी के बेटे नदीम चौधरी, पूर्व सांसद मुनव्वर हसन के भाई कंवर हसन और रंजनवीर चौधरी शामिल हैं।
फिलहाल सीटों का बंटवारा नहीं होने के कारण टिकट के दावेदारों और समर्थकों के बीच ऊहापोह की स्थिति बनी हुई है। चरथावल सीट रालोद के पास जाने की स्थिति में शामली का विकल्प पंकज मलिक के पास बचता है, वह यहां से कांग्रेस के टिकट पर विधायक भी रह चुके हैं।
सियासत के पुराने महारथी हैं हरेंद्र
पंकज मलिक के पिता पूर्व सांसद हरेंद्र मलिक जिले की राजनीति के दिग्गजों में शामिल हैं। 1984 में लोकदल के टिकट पर खतौली से पहली बार विधायक बने थे। इसके बाद मलिक 1989, 1991 और 1993 में बघरा सीट से जीतकर विधानसभा पहुंचे।
1996 में भाजपा के प्रदीप बालियान के सामने वह चुनाव हार गए थे। इसके बाद हरियाणा से राज्यसभा सांसद भी रहे। सपा में शामिल हो चुके पूर्व विधायक पंकज मलिक भी 17 साल से राजनीति में सक्रिय हैं। पूर्व मंत्री अनुराधा चौधरी के सांसद बन जाने के कारण खाली हुई बघरा सीट से 2004 में पंकज मलिक ने उपचुनाव लड़ा था। लेकिन वह रालोद के परमजीत मलिक से हार गए थे।
2007 में पंकज मलिक बघरा से पहली बार विधायक बने। परिसीमन के बाद 2012 में बघरा के बजाए चरथावल सीट बन गई, तो पंकज मलिक कांग्रेस के टिकट पर शामली से चुनाव लड़े और जीते। शामली सीट से ही वह 2017 का चुनाव हार गए थे। इस बार वह फिर चरथावल सीट से वापसी के जुगाड़ में हैं।
नेतृत्व जहां से लड़ाएगा हम वहीं से तैयार
पूर्व विधायक पंकज मलिक का कहना है कि नेतृत्व जहां से लड़ाएगा, वहीं से चुनाव लड़ने के लिए तैयार हैं। शामली और चरथावल क्षेत्र से वह पहले भी चुनाव जीत चुके हैं। सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव के नेतृत्व में इस बार सरकार बनने जा रही है। आमजन पूरी तरह गठबंधन के साथ खड़ा है।
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