मुजफ्फरनगर: मुजफ्फरनगर से बीजेपी अपने जाट चेहरे संजीव बालियान को तीसरी बार मैदान में उतारा है तो सपा ने कांग्रेस से आये जाट नेता चौधरी हरेंद्र सिंह को अपना उम्मीदवार बनाया है. उत्तर प्रदेश की मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट की करें तो यह सीट 2013 दंगे के बाद से उत्तर प्रदेश की मुख्य सीटों में गिनी जाती है. क्योंकि 2013 दंगे के बाद 2014 में जो लोकसभा के चुनाव हुए थे उसमें भारतीय जनता पार्टी ने सभी पार्टियों का एक तरफ सुपड़ा साफ कर दिया था.
2014 के इस चुनाव में मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट पर भाजपा ने डॉक्टर संजीव बालियान को अपना प्रत्याशी बनाकर मैदान में उतारा था. बीजेपी की इस आंधी में संजीव बालियान को इस चुनाव में 653391 वोट मिले थे. जबकि दूसरे नम्बर पर रहे बसपा के प्रत्याशी कादिर राणा मात्र 252241 वोट ही मिल पाए थे. जिसके चलते भाजपा प्रत्याशी डॉक्टर संजीव बालियान ने इस चुनाव में बसपा प्रत्याशी कादिर राणा को 401150 रिकॉर्ड मतों से मात दी थी. इसके बाद 2019 के लोकसभा चुनाव में भी बीजेपी ने एक बार फिर से डॉक्टर संजीव बालियान पर अपना दाव लगाया था.
इस बार संजीव बालियान के सामने राष्ट्रीय लोक दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे स्वर्गीय अजीत सिंह थे. इस चुनाव में भी संजीव बालियान ने जीत हासिल करते हुए अजीत सिंह को 6526 वोट से हराकर यह चुनाव जीता था. इस चुनाव में डॉक्टर संजीव बालियान को 573780 वोट मिले थे जबकि अजीत सिंह को 567254 वोट मिल पाए थे.
मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट पर अगर जातिगत आंकड़ों की बात करें तो इसी सीट पर 2019 चुनाव के अनुमानित आकड़ो के मुताबिक लगभग 17 लाख के आसपास मतदाता है. जिसमें लगभग 5 लाख मुस्लिम, 2 लाख दलित ,डेढ़ लाख जाट, 130000 कश्यप, 120000 सैनी, 115000 वैश्य और लगभग 480000 ठाकुर ,गुर्जर ,त्यागी ,ब्राह्मण, पाल ,प्रजापत, सुनार और अन्य बिरादरियाँ है.
ब्रिटिश साम्राज्य के दौरान सितंबर 1774 ईस्वी में रामपुर रियासत का उदय हुआ यहां पर 1949 तक कुल 10 नवाबों में शासन किया है. देश की आजादी के बाद 1952 में हुए आम चुनाव में देश के पहले शिक्षा मंत्री मौलाना अबुल कलाम आजाद यहीं से चुनकर संसद तक पहुंचे थे. यहां पर नवाब खानदान के अलावा भाजपा कि मुस्लिम चेहरे मुख्तार अब्बास नकवी अभिनेत्री जयाप्रदा और सपा के फायर ब्रांड नेता आज़म खान जीत हासिल कर चुके हैं.
चुनावी आंकड़ों पर नजर डाली जाए तो 1952 से 2019 तक के चुनाव में यहां पर काफी उलट फेर देखने को मिले हैं. यहां से 10 बार कांग्रेस, चार बार भाजपा, तीन बार सपा और एक बार भारतीय लोकदल से निर्वाचित हुए सांसद लोकतंत्र के मंदिर यानी संसद में रामपुर का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं. मुस्लिम बाहुल्य इस सीट पर राजनीतिक एतबार से धर्म और जाति कोई खास मायने नहीं रखती है.
यही कारण है कि यहां के मतदाता दूसरे धर्म या जाति वाले प्रत्याशी को चुनने में किसी तरह का कोई गुरेज नहीं करते हैं. रामपुर लोकसभा की राजनीतिक पृष्ठभूमि के एतवार से इंडिया गठबंधन के सबसे बड़े दल के रूप में कांग्रेस की फेहरिस्त में यहां की सीट भी है. जबकि सपा भी यहां पर मजबूत दावा पेश करती देखी जा सकती है. वहीं दूसरी ओर भाजपा के दिग्गजों ने भी विरोधियों को कई मौके पर चुनावी रण में धूल चढ़ाने में कोई कोर कसर बाकी नहीं छोड़ी है.